अगर अविवाहित मुस्लिम बेटी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार नहीं है तो फैमिली कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दावे पर विचार कर सकता है : केरल हाईकोर्ट

May 01, 2023
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केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि अगर सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक अविवाहित मुस्लिम बेटी (जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है) द्वारा किए गए भरण-पोषण का दावा वैध नहीं है, तो वही दावा मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत किया जा सकता है और फैमिली कोर्ट कार्यवाही की बहुलता को रोकने के लिए इस पर विचार कर सकता है। जस्टिस अलेक्जेंडर थॉमस और जस्टिस जियाद रहमान की खंडपीठ ने कहा किः ‘‘हम मानते हैं कि एक बालिग अविवाहित मुस्लिम बेटी के लिए, जो किसी भी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट से पीड़ित नहीं है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 125 की उप-धारा 1 के खंड (सी) में परिकल्पित है, तो सीआरपीसी की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट के समक्ष किया गया दावा बनाए रखने योग्य नहीं होगा। हालांकि, यदि दावाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ के संदर्भ में भरण-पोषण के लिए अन्यथा पात्र प्रतीत होती है, तो फैमिली कोर्ट को वादी को एक नया दावा दायर करने के लिए बाध्य करने की आवश्यकता नहीं है और भरण-पोषण के दावों में कार्यवाही की बहुलता से बचने के हितकर उद्देश्य के साथ, फैमिली कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत भरण-पोषण याचिका पर विचार कर सकता है।’’ अदालत फैमिली कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें फैमिली कोर्ट ने 20 वर्ष की आयु की अविवाहित मुस्लिम बेटी को 4000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण के तौर पर देने का निर्देश दिया था। बेटी अपनी मां के साथ रह रही थी, क्योंकि उसके माता-पिता वैवाहिक कलह के कारण अलग रह रहे थे। इसलिए बेटी ने सीआरपीसी की धारा के तहत अपने पिता से भरण-पोषण पाने के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ पिता ने बाद में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस सवाल पर विचार करते हुए कि क्या एक अविवाहित मुस्लिम बेटी, जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, सीआरपीसी की धारा 125 (1) (सी) के तहत भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है?,हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस मामले को दो सदस्यीय खंडपीठ को संदर्भित किया था क्योंकि इस सवाल पर दो सदस्यीय खंडपीठ के दो परस्पर विरोधी फैसले थे। मोहम्मद बनाम कुन्हायशा ,2003 (3) केएलटी 106 और चोलामारक्कर व अन्य बनाम पथुमम्मा उर्फ पथुम्मा व अन्य,2008 (3) केएचसी 973 (डीबी), जिनमें माना गया कि केवल अविवाहित होने के कारण, एक बालिग बेटी अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं होगी। निर्णयों में यह कहा गया था कि एक अविवाहित बेटी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की हकदार होगी, यदि वह शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट के कारण खुद को बनाए रखने में असमर्थ है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 125 (1) (सी) में निर्धारित है। जबकि यूसुफ बनाम रुबीना ,(2010 (4) केएलटी 1 (डीबी), में यह माना गया था कि एक मुस्लिम पिता अपनी अविवाहित बेटी को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है, अगर वह खुद को बनाए रखने में सक्षम नहीं है। इस केस में यह भी माना गया था कि सीआरपीसी की धारा 125, जो सभी समुदायों पर लागू होती है, मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक पिता के दायित्व को समाप्त नहीं करेगी। उपरोक्त स्पष्ट परस्पर विरोधी निर्णयों के मद्देनजर, मामला दो सदस्यीय खंडपीठ को संदर्भित किया गया था। याचिकाकर्ता पिता की तरफ से एडवोकेट वी फिलिप मैथ्यू पेश हुए। एडवोकेट एम.दिनेश, बेटी की तरफ से पेश हुए और एडवोकेट सैगी जैकब पलाट्टी राज्य के लिए पेश हुए। अदालत ने मोहम्मद और चोलामारक्कर के मामले में दिए गए विचार के साथ सहमति व्यक्त की, जिसमें कहा गया था एक बालिग अविवाहित मुस्लिम बेटी के लिए अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने के योग्य होने के लिए कि सीआरपीसी की धारा 125 (1) (सी) में दी गई पूर्व-शर्तों को पूरा करना होगा। हालांकि, इन दोनों फैसलों में अदालत बालिग मुस्लिम अविवाहित बेटी के भरण-पोषण के संबंध में मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रभाव पर विचार करने में विफल रही है। अदालत ने कहा कि यूसुफ के मामले में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के दावे के संबंध में मामला तय नहीं किया गया था। इस दावे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों का हवाला देते हुए विचार किया गया था। इस मामले में यह माना गया था कि एक बालिग अविवाहित मुस्लिम बेटी, जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है, अपने पिता से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है, जो भरण-पोषण प्रदान करने में सक्षम है। कोर्ट ने कहा कि दोनों खंडपीठों के फैसलों में कोई विरोध नहीं है। ‘‘हमारा विचार है कि, तकनीकी रूप से चोलामारक्कर,2008 (3) केएचसी 973 (डीबी) और साथ ही यूसुफ ,2010 (4) केएलटी 1 (डीबी) सुप्रा के मामलों में इस अदालत की खंडपीठ के फैसलों के विचारों में कोई विरोध नहीं है क्योंकि पहला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दावे के संबंध में था और बाद वाला मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दावे के संबंध में था।’’ कोर्ट ने कहा यदि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दायर भरण-पोषण का दावा खारिज कर दिया जाता है, लेकिन दावेदार मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत समान दावा करने का हकदार है, तो फैमिली कोर्ट बाद के दावे को ध्यान में रख सकता है, भले ही पूर्व का दावा खारिज कर दिया गया हो। कोर्ट ने कहा, ‘‘इसके लिए सरल तर्क, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में बताया गया है, अन्यथा दावेदार को, जिसने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है, यदि पूर्व याचिका को खारिज कर दिया गया है या बनाए रखने योग्य नहीं पाया जाता है, तो बाद की याचिका के साथ फिर से फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से इस प्रभाव का है कि ऐसे मामलों में हाइपर-तकनीकी दृष्टिकोण का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं है, जहां ऐसे मामले भरण-पोषण के दावों से संबंधित हैं और यदि दावा अन्यथा बनाए रखने योग्य है, जैसा कि ऊपर कहा गया है, तो फ़ैमिली कोर्ट, जिसके पास इस संबंध में अधिकार क्षेत्र है, वादी को नया दावा दायर करने के लिए प्रेरित किए बिना ऐसे दावों पर विचार कर सकता है। बेशक, यह विकल्प केवल वहीं उपलब्ध है जहां फैमिली कोर्ट के समक्ष दावा किया गया है, क्योंकि फैमिली कोर्ट के पास न केवल सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दावों पर विचार करने का अधिकार होगा, बल्कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम के साथ-साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ आदि के तहत किए गए दावों पर भी विचार करने का अधिकार होगा।’’ तदनुसार, इस मामले में अदालत ने फैमिली कोर्ट को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत बेटी की याचिका पर विचार करने का निर्देश दिया है।