'सिर्फ कहने के लिए खेद है', पतंजलि के हलफनामे पर सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवाल
Supreme Court: सर्वोच्च अदालत को दिए गए वचन का घोर उल्लंघन करते हुए एमडी आचार्य बालकृष्ण आपत्तिजनक विज्ञापन दिया था. जिसके बाद आज कोर्ट में पतंजलि एमडी ने हलफनामा दिया है. जिसपर कोर्ट ने सवाल खड़े किए हैं.
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एमडी आचार्य बालकृष्ण के दिए गए हलफनामे पर नाराजगी जताई है. कोर्ट के न्यायमूर्ति ने कहा कि एमडी "अज्ञानता का बहाना" नहीं कर सकते. जस्टिस कोहली ने अपने सवालों में कहा कि "एक बार जब अदालत को वचन दे दिए जाते हैं, तो फिर पूरी श्रृंखला तक इसे पहुंचाना किसका कर्तव्य है?
कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा कि यह देश की सर्वोच्च अदालत को दिए गए वचन का घोर उल्लंघन है, जिसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. जबकि सांघी ने इस मामले के लिए खेद जताया है. जिसपर कोर्ट ने कहा कि सिर्फ यह कहने के लिए कि अब आपको खेद है, हम यह भी कह सकते हैं कि हमें खेद है. आपका मीडिया विभाग एक स्टैंडअलोन विभाग नहीं है. उसे पता ही नहीं चलेगा कि अदालती कार्यवाही में क्या हो रहा है. दरअसल कोर्ट ने ड्रग्स व मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) के लिए अधिनियम 1954 के तहत पतंजलि के बयानों पर नाराजगी जताई है.
27 फरवरी का पारित आदेश
बीते 27 फरवरी को पारित आदेश के मुताबिक कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को अपने उत्पादों का विज्ञापन करने के लिए रोका था. इसके बाद यानी मंगलवार को पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण हलफनामा दायर करके कहा कि यह अधिनियम "पुरानी स्थिति में" था. उनका कहना था कि यह अधिनियम जब लागू किया गया था तब आयुर्वेदिक दवाओं के संबंध में वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी थी.
जानें न्यायमूर्ति ने क्या-क्या कहा
न्यायमूर्ति की पीठ ने कहा कि क्या हम मान लें कि हर अधिनियम जो पुरातन है, उसे कानून में लागू नहीं किया जाना चाहिए? इस समय हम सोच रहे हैं कि जब एक अधिनियम है जो क्षेत्र को नियंत्रित करता है, तो आप इसका उल्लंघन कैसे कर सकते हैं? आपका सब कुछ विज्ञापन उस अधिनियम के दायरे में हैं" आगे कहा सबसे बढ़कर, और यह घाव पर नमक छिड़क रहा है, आप इस न्यायालय को एक गंभीर वचन देते हैं और आप दण्ड से मुक्ति के साथ इसका उल्लंघन करते हैं?
न्यायालय ने की माफी को स्वीकार नहीं किया
न्यायमूर्ति कोहली ने वकील से पूछा की क्या आपने संबंधित मंत्रालय से यह कहने के लिए संपर्क किया है कि अधिनियम में संशोधन करें? जिसके बाद सांघी ने कहा उन्होंने अपना परीक्षण स्वयं किया है. कोर्ट ने रामदेव जोरदार फटकार लगाई जस्टिस कोहली ने बताया कि संगठन का सह-संस्थापक होने के नाते यह अविश्वसनीय है.कोर्ट के आदेश की जानकारी नहीं थी तो पिछले साल के नवंबर में कोर्ट के आदेश के 24 घंटे के भीतर रामदेव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस क्यों किया.
इससे कहा जा सकता है कि आपको आदेश की जानकारी थी और इसके बावजूद आपने इसका उल्लंघन किया है. पतंजलि और रामदेव की तरफ से झूठी गवाही दी गई थी. झूठी गवाही न्यायालय के समक्ष शपथ के तहत गलत बयान देने का एक कार्य है. कोर्ट ने कहा यह झूठी गवाही का एक स्पष्ट मामला है! हम आपके लिए दरवाजे बंद नहीं कर रहे हैं, मगर हमने बातों को नोट किया है.