चेक बाउंस केस में सज़ा होने पर क्या किया जाए
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चेक बाउंस के केस दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। अदालतों में चेक बाउंस केस की अधिकता हो गई है। चेक बाउंस का प्रकरण परिवादी के परिवाद पर निगोशिएबल इंट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 138 के अंतर्गत दर्ज करवाया जाता है। इस केस में अदालत यह उपधारणा लेकर चलती है कि अभियुक्त ने चेक किसी आर्थिक जिम्मेदारी के बदले ही दिया होगा। इस कारण चेक बाउंस के अधिकतर प्रकरणों में राजीनामा नहीं होने पर अदालत द्वारा अभियुक्त को सज़ा दे दी जाती है। चेक बाउंस के बहुत कम प्रकरण ऐसे होते है जिनमे अभियुक्त बरी किए जाते है। चेक बाउंस के केस में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 138 के अंतर्गत 2 वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है। लेकिन यह इस अपराध में अधिकतम सज़ा है, अदालत साधारणतः से छः माह या फिर एक वर्ष तक का कारावास देती है इसके साथ ही अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के अंतर्गत परिवादी को प्रतिकर दिए जाने हेतु भी निर्देशित किया जाता है। यह प्रतिकर चेक राशि का दुगना भी हो सकता है। चेक बाउंस का अपराध सात वर्ष से कम की सज़ा का अपराध है इसलिए इस अपराध को जमानती अपराध बनाया गया है। इस अपराध के अंतर्गत चलने वाले प्रकरण में अंतिम निर्णय तक अभियुक्त को जेल नहीं पहुंचाया जाता है। अभियुक्त के पास वह अधिकार उपलब्ध होते हैं कि वह अंतिम निर्णय तक जेल से बच सकता है। सज़ा होने पर अभियुक्त ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपील अवधि तक सज़ा को निलंबित किये जाने हेतु दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के अंतर्गत एक आवेदन पत्र प्रस्तुत कर सकता है। किसी भी जमानती अपराध में जमानत लेना अभियुक्त का अधिकार होता है इसलिए इस अपराध के अंतर्गत अभियुक्त को दी गई सज़ा को निलंबित कर दिया जाता है। दोषसिद्धि होने पर अभियुक्त अपीलार्थी के रूप में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों में सत्र न्यायालय के समक्ष तीस दिनों के भीतर अपील प्रस्तुत कर सकता है। ऐसी अपील के साथ अभियुक्त को सज़ा के निलंबन हेतु एक आवेदन पत्र दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(1) के अंतर्गत सत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। सत्र न्यायालय अपील के विनिश्चय तक सज़ा को निलंबित कर देता है क्योंकि यह जमानती अपराध है इस कारण सत्र न्यायालय भी सरलतापूर्वक सज़ा को निलंबित कर देता है। फिर यह सजा तब तक निलंबित रहती है जब तक अपील पर अदालत अपना अंतिम निर्णय नहीं दिए देती है। अंतिम निर्णय में भी यदि अपीलार्थी दोषी पाया जाता है तो अपील अदालत सज़ा को बरकरार रखते हुए अपना निर्णय दिए देती है। सत्र न्यायालय से भी सज़ा बरकरार रहने पर हाई कोर्ट के समक्ष रिवीजन के रूप में मामला लाया जा सकता है। चेक बाउंस के प्रकरण में अभियुक्त के प्रति अदालत उपधारणा लेकर चलती है कि अभियुक्त ने उक्त अपराध किया ही होगा इसलिए चेक बाउंस के केस में अंतरिम प्रतिकर जैसे प्रावधान भी वर्ष 2019 में जोड़े गए है। निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट,1881 की धारा 139 में प्रावधान करते हुए अंतरिम प्रतिकर के प्रावधान जोड़े गए है। जहां अभियुक्त को प्रथम बार अदालत के समक्ष उपस्थित होने पर परिवादी को चेक राशि की बीस प्रतिशत रकम दिए जाने के प्रावधान है। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बदल कर अपील के समय अंतरिम प्रतिकर दिलवाए जाने के प्रावधान के रूप में कर दिया है। ऐसी स्थिति में अभियुक्त को अंतरिम प्रतिकर के रूप में अपील करते समय चेक राशि के बीस प्रतिशत अदालत में जमा करने होते है। यदि अभियुक्त की अपील स्वीकार हो जाती है तब अभियुक्त को यह राशि वापस दिलवाई जाती है। इस प्रकार किसी चेक बाउंस के प्रकरण में सज़ा होने के पश्चात भी अभियुक्त के पास अनेक अवसर होते हैं जहां वह अपना पक्ष अदालत के समक्ष साफ तौर पर रख सकता है।