स्थानीय निकाय चुनाव: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उप्र सरकार को ओबीसी आयोग की रिपोर्ट चार दिनों में अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को शहरी स्थानीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के प्रतिनिधित्व का अध्ययन करने के लिए समर्पित उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि इस साल जनवरी में आयोग की स्थापना की गई, जिसे समुदाय के राजनीतिक पिछड़ेपन पर अनुभवजन्य डेटा एकत्र करने और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को आरक्षण के मुद्दे को देखने की प्राथमिक जिम्मेदारी सौंपी गई। जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस मनीष कुमार की खंडपीठ ने निघासन नगर पंचायत को आरक्षण के संबंध में 30 मार्च, 2023 को जारी सरकारी अधिसूचना को चुनौती देते हुए विकास अग्रवाल द्वारा दायर रिट याचिका पर यह आदेश पारित किया। अब याचिकाकर्ता का मामला यह है कि आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक डोमेन में नहीं है, जिससे उसके लिए अपनी आपत्तियां दर्ज करना असंभव हो गया। इसलिए उन्होंने मामले में कुछ राहत पाने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया। न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार के वकील ने प्रस्तुत किया कि यद्यपि उक्त रिपोर्ट प्रदान करने के लिए कानून की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन यदि न्यायालय आदेश देता है तो इसे शहरी विकास विभाग, यूपी सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा। तदनुसार, न्यायालय ने राज्य सरकार को चार दिनों के भीतर उक्त रिपोर्ट को उपरोक्त वेबसाइट पर अपलोड करने का निर्देश दिया। गौरतलब है कि आयोग की रिपोर्ट पिछले महीने यूपी सरकार को सौंपी गई। इसके बाद यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि रिपोर्ट को यूपी कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (27 मार्च) को उत्तर प्रदेश राज्य में ओबीसी कोटे के साथ स्थानीय निकायों के लिए दो दिनों के भीतर चुनाव प्रक्रिया की स्थापना के लिए अधिसूचना जारी करने की अनुमति दी। इसने राज्य चुनाव आयोग को उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के संदर्भ में ओबीसी कोटा के साथ दो दिनों में इस संबंध में अधिसूचना जारी करने की अनुमति दी। इसके बाद शहरी स्थानीय निकाय चुनावों को 30 मार्च, 2023 को अधिसूचित किया गया, जिसमें स्थानीय निकायों के चुनावों के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों को भी अधिसूचित किया गया। सरकार ने छह अप्रैल तक पीड़िता से आपत्ति मांगी है।