पीएमएलए | आरोपी की गिरफ्तारी अगर धारा 19 के अनुसार वैध नहीं है तो रिमांड का आदेश फेल हो जाएगा: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रवर्तन निदेशालय ने अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया है और कोर्ट धारा 167 सीआरपीसी के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए उसे रिमांड पर ले रही हैं तो यह सत्यापित करना और सुनिश्चित करना उसका कर्तव्य है कि गिरफ्तारी धारा 19 पीएमएल एक्ट, 2002 की आवश्यकताओं के अनुसार वैध है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि अगर अदालत इस कर्तव्य को उचित गंभीरता और परिप्रेक्ष्य के साथ नहीं निभा पाती है तो रिमांड का आदेश उसी आधार पर विफल हो जाता है। उल्लेखनीय है कि पीएमएलए एक्ट की धारा 19 के तहत अधिकृत अधिकारियों के लिए अंतर्निहित सुरक्षा उपायों का प्रावधान किया गया है, जिसका अनुपालन आवश्यक है, जैसे मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में किसी व्यक्ति की संलिप्तता पर विश्वास करने के कारणों को लिखित रूप में दर्ज करना और गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण बताना। कोर्ट ने वी सेंथिल बालाजी बनाम राज्य, जिसका उप निदेशक की ओर से प्रतिनिधित्व किया गया और अन्य 2023 लाइव लॉ (एससी) 611 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के अगस्त 2023 के फैसले का जिक्र करते हुए, कहा कि उस मामले में यह पुष्टि की गई है कि ईडी के अधिकृत अधिकारी का यह बाध्यकारी कर्तव्य है कि कोई व्यक्ति दोषी है, और उसे गिरफ्तार करने की आवश्यकता है, इस पर अपने विश्वास के कारणों को वह दर्ज करे। कोर्ट ने कहा था कि यह सुरक्षा निष्पक्षता और जवाबदेही के तत्व को शामिल करने के लिए है। न्यायालय ने यह भी कहा कि 2002 के अधिनियम की धारा 19 और सीआरपीसी की धारा 167 की परस्पर क्रियाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मजिस्ट्रेट से संतुलन की अपेक्षा की जाती है क्योंकि जांच 24 घंटे के भीतर पूरी की जानी है। यह नियम का मामला है और इसलिए, यह जांच एजेंसी का काम है कि वह मजिस्ट्रेट को आरोपी की हिरासत की आवश्यकता पर पर्याप्त सामग्री पेश कर संतुष्ट करे। सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गुरुग्राम स्थित रियल्टी समूह एम3एम के निदेशकों पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को अवैध घोषित करते हुए ये टिप्पणियां कीं। मामले की सुनवाई करते हुए जब सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि वैकेशन जज/अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पंचकुला ने रिमांड आदेश (15 जून, 2023) में अपेक्षित मानक के अनुसार अपने कर्तव्य का निर्वहन नहीं किया है, उसके बाद उक्त टिप्पणियां की। अदालत ने कहा कि संबंधित जज ने बंसल को रिमांड पर लेते समय यह निष्कर्ष भी दर्ज नहीं किया कि उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए गिरफ्तारी के कारणों का अध्ययन किया था कि क्या ईडी ने यह मानने के कारण दर्ज किए थे कि अपीलकर्ता 2002 के अधिनियम के तहत अपराध के दोषी थे और कि 2002 के अधिनियम की धारा 19 के मैंडेट का उचित अनुपालन किया गया था। अदालत ने कहा कि आदेश में संबंधित जज ने केवल यह कहा है कि अपराधों की गंभीरता और जांच के चरण को ध्यान में रखते हुए, वह आश्वस्त थे कि वर्तमान मामले में आरोपी व्यक्तियों से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है और उन्हें ईडी की हिरासत में रिमांड पर लिया गया है। न्यायालय ने ईडी की कार्यप्रणाली के खिलाफ भी सख्त टिप्पणी। उन्होंने कहा कि यह मामला ईडी की कार्यशैली को खराब तरीके से दिखाता है। फैसले में बंसल की गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति को पीएमएलए, 2002 की धारा 50 के तहत जारी समन के जवाब में केवल असहयोग के लिए प्रवर्तन निदेशालय गिरफ्तार नहीं कर सकता है। अदालत ने कहा कि ईडी द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देने में आरोपियों की विफलता जांच अधिकारी के लिए यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगी कि वे धारा 19 के तहत गिरफ्तार किए जाने के लिए उत्तरदायी हैं। इसी फैसले में कोर्ट ने यह भी माना है कि गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित में देना ईडी का अनिवार्य कर्तव्य है। Tags Supreme CourtPMLA Case Next Story दिल्ली शराब नीति: राजनीतिक दल को आरोपी क्यों नहीं बनाया, जबकि वह कथित लाभार्थी है? सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसौदिया की जमानत पर ईडी से पूछा Avanish Pathak 4 Oct 2023 4:40 PM सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आम आदमी पार्टी नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की। सिसोदिया के खिलाफ दिल्ली शराब नीति संबंधित कथित घोटोले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबाआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दो मामले दर्ज किए हैं। बुधवार को जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबाआई और ईडी ने पूछा कि कथित तौर पर लाभार्थी होने के बाद भी राजनीतिक दल को पीएमएलए के तहत मामले में आरोपी क्यों नहीं बनाया गया है? Advertisement जस्टिस संजीव खन्ना और जसिटस एसवीएन भट्टी की पीठ सिसौदिया द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीबीआई और ईडी द्वारा जांच किए जा रहे मामलों में सिसौदिया को जमानत देने से इनकार करने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी। जैसे ही पीठ आज सुनवाई पूरी करने के बाद उठने वाली थी, जस्टिस खन्ना ने ईडी और सीबीआई की ओर से पेश हो रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा, "जहां तक पीएमएलए का सवाल है, आपका पूरा मामला यह है कि यह एक राजनीतिक दल के पास गया था। वह राजनीतिक दल अभी भी आरोपी नहीं है। आप इसका उत्तर कैसे देंगे? वह लाभार्थी नहीं है, राजनीतिक दल लाभार्थी है।" एएसजी ने कहा कि वह इस सवाल का जवाब कल देंगे। जस्टिस खन्ना ने आज की सुनवाई का समापन करते हुए कहा,"जो कुछ भी है, आप इसका उत्तर दें। मैंने सिर्फ सवाल रखा है। यह वह मुद्दा नहीं है, जिसे उन्होंने (सिसोदिया की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट एएम सिंघवी) ने सीधे तौर पर उठाया है। मैंने इसे सीधे तौर पर रखा है।" इससे पहले, सिंघवी ने दोनों मामलों में सिसोदिया के लिए जमानत की मांग करते हुए दो घंटे से अधिक समय तक पीठ को संबोधित किया। जहां सीबीआई भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोपों की जांच कर रही है, वहीं ईडी धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत मनी लॉन्ड्रिंग मामले को देख रही है। आरोप राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सरकार द्वारा 2021 में बनाई गई उत्पाद शुल्क नीति से संबंधित हैं, जिसे बाद में कार्यान्वयन में अनियमितताओं के आरोप लगने के बाद वापस ले लिया गया था। उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना की शिकायत पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के संदर्भ के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो ने शराब नीति की जांच शुरू की थी। मनीष सिसौदिया को पहली बार केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था और तब से वह सलाखों के पीछे हैं। बाद में प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें इसी साल 9 मार्च को गिरफ्तार कर लिया। केस डिटेलः मनीष सिसौदिया बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 8167 2023 मनीष सिसौदिया बनाम प्रवर्तन निदेशालय | विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 8188, 2023 Tags Supreme CourtManish Sisodia Similar Posts दिल्ली शराब नीति: राजनीतिक दल को आरोपी क्यों नहीं बनाया, जबकि वह कथित लाभार्थी है? सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसौदिया की जमानत पर ईडी से पूछा सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आम आदमी पार्टी नेता और दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई की। सिसोदिया के खिलाफ दिल्ली शराब नीति संबंधित कथित घोटोले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबाआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दो मामले दर्ज किए हैं।बुधवार को जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने याचिका पर सुनवाई... सुप्रीम कोर्ट ने पीएफआई के साथ कथित संबंधों के लिए एनआईए द्वारा यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए वकील को जमानत देने के मद्रास हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (03.10.2023) को मदुरै के वकील मोहम्मद अब्बास को जमानत देने के मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) संगठन के साथ कथित संबंधों के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया था।जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने... ईडी के समन में केवल असहयोग करना पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी का आधार नहीं, ईडी समन किए गए व्यक्ति से अपराध स्वीकार करने की उम्मीद नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है कि धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 की धारा 50 के तहत जारी समन के जवाब में केवल असहयोग के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा, "2002 के अधिनियम की धारा 50 के तहत जारी किए गए समन के जवाब में एक गवाह का असहयोग... सुप्रीम कोर्ट इतिहास में पहली सात-न्यायाधीशों की बेंच लाइव-स्ट्रीम के लिए तैयार सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ बुधवार (4 अक्टूबर) को 1998 के पीवी नरसिम्हा राव फैसले के संदर्भ पर सुनवाई शुरू करेगी, जिसे पिछले महीने सात न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ ( सीता सोरेन बनाम भारत संघ) को भेजा गया था। पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला,... ईडी पर सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, कहा- प्रतिशोधी न बने, गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में दें मंगलवार (3 अक्टूबर) को सुनाए गए महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में बताना चाहिए।जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ ने इसके साथ ही रियल एस्टेट समूह एम3एम के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को रद्द करते हुए... क्या अदालत फैक्ट फाइंडिंग कोर्ट के रूप में जाति के दावों पर निर्णय ले सकती है? सुप्रीम कोर्ट ने संदेह व्यक्त किया सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की खंडपीठ ने मंगलवार (3 अक्टूबर) को इस प्रस्ताव पर संदेह व्यक्त किया कि वह फैक्ट-फाइंडिंग कोर्ट के रूप में जाति के दावों पर फैसला कर सकता है। न्यायालय जाति के दावों (महाराष्ट्र आदिवासी ठाकुर जमात स्वरक्षा समिति बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य) का सवाल उठाने वाली अपीलों के समूह में आगे की कार्रवाई पर विचार कर रहा था