आईपीसी की धारा 376(3) के तहत अपराध के मामले में गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका पर रोक है, लेकिन अगर सामग्री प्रथम दृष्टया अपराध को आकर्षित नहीं करती है तो इस पर विचार किया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट
Source: https://hindi.livelaw.in/
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में अपनी नाबालिग बेटी के यौन शोषण के आरोपी एक पिता द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस जियाद रहमान की एकल पीठ ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 438 (4) के अनुसार, जहां आरोप भारतीय दंड संहिता की धारा 376(3) या धारा 376एबी या धारा 376डीए या धारा 376डीबी के तहत है, वहां अग्रिम जमानत के लिए एक आवेदन पर विचार करने के खिलाफ एक विशिष्ट रोक है। हालांकि, न्यायालय अग्रिम ज़मानत के लिए एक आवेदन पर विचार कर सकता है यदि न्यायालय के समक्ष रखी गई सामग्री आईपीसी की धारा 376 के तहत विशिष्ट अपराधों को आकर्षित नहीं करती है। "सीआरपीसी की धारा 438 की उपधारा 4 के अनुसार, इस संबंध में एक आवेदन पर विचार करने पर रोक तब लागू होगी जब अभियुक्त के खिलाफ उसमें उल्लिखित अपराधों में शामिल होने का आरोप लगाया गया हो। इसलिए, जो प्रासंगिक है वह याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाया गया आरोप है।" इस मामले में, आईपीसी की धारा 376 (3) के तहत अपराध गठित करने वाले आरोपों को पीड़िता द्वारा विद्वान मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए गए विभिन्न बयानों के रूप में पाया जा सकता है। उक्त आरोपों से प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इस प्रकार धारा 438 की उप धारा 4 के तहत विचार किया गया बार चलन में आ जाएगा। अदालत अपनी नाबालिग बेटी के यौन शोषण के आरोपी पिता की अग्रिम जमानत अर्जी पर विचार कर रही थी। आरोप था कि पिता ने घर में घुसकर यौन मंशा से नाबालिग के होठों को चूमा। यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी ने नाबालिग के निजी अंगों को छुआ। अपने निष्कर्ष में न्यायालय ने सरकारी वकील की ओर से दिए गए तर्क पर सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि यदि धारा 376 आईपीसी के तहत अपराध शामिल हैं, तो धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन पर विचार करने पर एक विशिष्ट रोक है। इसलिए कोर्ट ने अर्जी पर भी मेरिट के आधार पर विचार किया। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनती है और इसलिए अग्रिम जमानत के लिए उसका आवेदन खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि याचिकाकर्ता आत्मसमर्पण करने के बाद नियमित जमानत लेने के लिए स्वतंत्र है।