राजस्थान हाईकोर्ट ने नाबालिग को कस्टडी में लेने की मांग करने वाले दादा-दादी से मां के पक्ष में 50 हजार रुपये की अग्रिम मुकदमेबाजी की लागत जमा करने को कहा
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राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष पचास वर्षीय दंपति ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus Petition) दायर कर दुर्लभ बीमारी से पीड़ित अपने 5+ साल के पोते को उसकी मां की कथित अवैध कस्टडी से रिहा करने की मांग की। जयपुर बेंच ने नोटिस जारी करते हुए याचिकाकर्ताओं को पहले एक लाख रुपये जमा करने का आदेश दिया। इसमें से मुकदमे की लागत के लिए 50,000 मां को दिए जाने को कहा, जो मां द्वारा खर्च हो सकता है। याचिकाकर्ताओं का मामला यह है कि बच्चा डीएमडी से पीड़ित है और बच्चे की मां और उसके माता-पिता - जिनके साथ बच्चा रह रहा था- बच्चे के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
याचिका में कहा गया कि बच्चे को "कुपोषण की ओर धकेला जा रहा है" और बच्चे को विभिन्न स्थितियों, जैसे असामान्य यकृत एसजीपीटी रेंज, मांसपेशियों में गिरावट और विटामिन डी की कमी के लिए कोई उपचार नहीं दिया जा रहा है। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करते हुए उनकी वकील भावना चौधरी और मोहित बलवाड़ा ने आगे कहा, "बच्चा कुछ हफ्तों में छह साल का हो जाएगा लेकिन फिर भी उसे स्कूल नहीं भेजा जाता। यह बच्चे के मौलिक अधिकारों और जरूरतों का स्पष्ट उल्लंघन है। कुल मिलाकर सामाजिक, भावनात्मक और मानसिक विकास का बहुत कम या कोई विकास नहीं हुआ है। पिछले तीन वर्षों के दौरान बच्चा अपनी मां और उसके परिवार के साथ रह रहा है। बच्चे को अन्य बच्चों के साथ खेलने की अनुमति नहीं है, उसे स्कूल भी नहीं भेजा जाता और उसे कुपोषित बच्चा होने की ओर धकेला जा रहा है।"
सहायक सरकारी वकील ने मामले में प्रतिवादी नंबर एक से चार की ओर से नोटिस स्वीकार किया। जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ ने हालांकि याचिकाकर्ताओं को रजिस्ट्री के पास 50,000 रुपये जमा करने का आदेश दिया, जिस पर हाईकोर्ट ने प्रतिवादी-मां को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने कहा: "मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हम याचिकाकर्ता को प्रतिवादी नंबर पांच (मां) के नाम पर मुकदमेबाजी की लागत के रूप में रजिस्ट्रार (सामान्य) राजस्थान हाईकोर्ट, जयपुर बेंच, जयपुर के पक्ष में रजिस्ट्रार (न्यायिक) के रूप में 50,000 रुपये का डिमांड ड्राफ्ट/चेक जमा करने का निर्देश देना उचित समझते हैं।"