जस्टिस कुरियन जोसेफ ने NJAC मामले में अपने फैसले पर खेद व्यक्त किया, कहा-2018 की चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस खोई हुई उम्‍मीदों की कहानी

Jun 05, 2023
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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस कुरियन जोसेफ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) मामले में अपने फैसले पर खेद व्यक्त किया है। उन्होंने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव साउथ में 'ज्यूडिशियल ओवररीच वर्सस एक्जीक्यूटिव इंटरफेरेंस: हाउ टू स्ट्राइक अ बैलेंस' विषय पर आयोजित चर्चा में उक्त टिप्पणी की। उल्लेखनीय है कि जस्टिस जोसेफ सुप्रीम कोर्ट की उसी संविधान पीठ के सदस्य थे, जिसने अक्टूबर 2015 में 4:1 बहुमत से संवैधानिक अदालतों में न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली को बदलने के लिए NJAC की शुरुआत करने वाले 99वें संविधान संशोधन को रद्द कर दिया था। "कार्यपालिका या अन्य गैर-न्यायिक तत्वों की प्रत्यक्ष भागीदारी अंततः नियुक्तियों में संरचित सौदेबाजी की ओर जाएगी, यदि नहीं, तो इससे भी बुरा कुछ भी हो सकता है। प्रतिबद्ध न्यायपालिका बनाने के लिए बुनियादी ढांचे को कमजोर करने का कोई भी प्रयास, चाहे इसकी संभावना कितनी ही दूर क्यों न हो, को शुरुआत में ही कुचल दिया जाना चाहिए।" यह दूसरी बार है जब जस्टिस जोसेफ सार्वजनिक रूप से अपने फैसले के प्रति खेद व्यक्त कर रहे हैं। 2019 में भी जस्टिस जोसेफ ने कुछ ऐसी ही भावना व्यक्त की थी। "अब मुझे NJAC को रद्द करने के अपने फैसले पर पछतावा है। मुझे दृढ़ विश्वास था, और मुझे अब भी विश्वास है, कि यदि कॉलेजियम प्रणाली का पालन किया जाता है, तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता बेहतर ढंग से सुरक्षित रहेगी। लेकिन कॉलेजियम प्रणाली काम कैसे करती है? यह बड़ा सवाल है। वास्तव में, यदि आपने मेरे फैसले के अंतिम पैराग्राफ को पढ़ा होता तो मैंने कहा था कि सिस्टम को पारदर्शिता की आवश्यकता है। एक सचिवालय होना चाहिए। यह सब सिर्फ एक सहायक के हाथ में है ... देश में केवल एक व्यक्ति के पास सभी प्रभार की फाइलें थीं। हमने कहा कि इसे इस तरह से काम नहीं करना चाहिए। लेकिन यह कहते हुए, और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बरकरार रखकर, और एनजेएसी को खत्म कर, मैंने जो तस्वीर देखी वह निराशाजनक थी।" जस्टिस जोसेफ ने कहा कि प्रत्येक निर्णय एक व्यक्ति द्वारा लिया गया था और कॉलेजियम द्वारा इसका समर्थन किया गया था। उन्होंने कहा, "यही वह जगह है जहां मैंने कहा था कि नियुक्त आयोग उस अर्थ में बेहतर होगा।" कार्यक्रम में जस्टिस जोसेफ ने 2018 जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में भी चर्चा की। उल्लेखनीय है कि उस विवादास्पद और अभूतपूर्व प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज- जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस तरुण गोगोई और जस्टिस लोकुर शामिल थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस जस्टिस चेलमेश्वर के आवास पर हुई ‌थी, जिसमें उन चार जजों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा के खिलाफ विद्रोह किया था। उन्होंने जस्टिस मिश्रा पर मनमाना निर्णय और मामलों के मनामाने आवंटन का आरोप लगाया था। प्रेस कॉन्फ्रेंस ने पत्रों के आदान-प्रदान के अलावा साप्ताहिक बैठकों और दैनिक बातचीत जैसे अनौपचारिक तंत्र के अस्तित्व के बावजूद, जजों के बीच मतभेदों को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के भीतर अंतर्निहित संस्थागत उपायों की कमी को उजागर किया था। चार जजों ने 12 जनवरी, 2018 को सार्वजनिक रूप से प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। सीजेआई दीपक मिश्रा को दो महीने पहले भेजे गए उनके आम पत्र में विवाद के विशिष्ट मुद्दों को उठाया गया था, हालांकि उन्होंने उन पर ध्यान नहीं दिया था। उक्त कॉन्फ्रेंस के बारे में जस्टिस जोसेफ ने कहा कि "वह बड़ी उम्मीदों की कहानी थी, लेकिन यह खोई हुई उम्मीदों की कहानी बन गई।"