केवल वैवाहिक कलह के कारण पति द्वारा किया गया उत्पीड़न और व्यंग्यात्मक टिप्पणियां ‘आत्महत्या के लिए उकसाना’ नहींः जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

Jul 03, 2023
Source: https://hindi.livelaw.in/

हाल ही में जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल वैवाहिक कलह के कारण पति या ससुराल वालों द्वारा पत्नी को प्रताड़ित करना या व्यंग्यात्मक टिप्पणियां करना आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध के दायरे में नहीं आता है। जस्टिस राजेश सेखरी की एकल पीठ ने एक व्यक्ति को रणबीर दंड संहिता (आरपीसी) की धारा 306 के तहत आरोपों से बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है। इस व्यक्ति की पत्नी ने खुद को आग लगा ली थी और उसकी मौत हो गई। ‘‘पति और पत्नी के बीच वैवाहिक कलह की कई घटनाएं हो सकती हैं और कभी-कभी ससुराल में पत्नी को लगातार ताने दिए जाते हैं और व्यंग्यात्मक टिप्पणियां की जाती हैं, तो वह आत्महत्या करने के लिए प्रेरित हो सकती है। हालांकि, ऐसे उदाहरण एक वैवाहिक जीवन के सामान्य झगड़े हैं। मेरी राय में केवल वैवाहिक कलह के कारण पति या ससुराल वालों द्वारा पत्नी को प्रताड़ित करना या व्यंग्यात्मक टिप्पणियां करना आरपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत नहीं आता है।’’ मरने से पहले दिए गए बयान में, प्रतिवादी की पत्नी ने दावा किया था कि उसकी प्रतिवादी से शादी को लगभग ढाई साल हो गए थे, लेकिन वह बच्चे को जन्म देने में सक्षम नहीं थी। वे अलग-अलग रह रहे थे और उसका पति काम पर गया हुआ था। जब उसने उसे फोन करके वापस लौटने का अनुरोध किया, तो उसने इनकार कर दिया और उसे जाने के लिए कहा। इससे आहत होकर उसने अपने ऊपर मिट्टी का तेल छिड़क लिया और आग लगा ली। अपने बयान में उसने यह भी कहा था कि उसे यह कदम उठाने के लिए प्रेरित करने के लिए केवल उसका पति जिम्मेदार है और इसमें कोई अन्य व्यक्ति शामिल नहीं है। प्रतिवादी को बरी किए जाने की आलोचना करते हुए अभियोजन पक्ष ने कहा कि निचली अदालत अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों को सही परिप्रेक्ष्य में समझने में विफल रही, क्योंकि पत्नी ने अपने पति की प्रतिक्रिया से क्रोधित होकर खुद को आग लगा ली थी। मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस सेखरी ने कहा कि किसी अपराध के लिए उकसाने के मामले में उकसाने वाले द्वारा जानबूझकर सहायता करना और उसकी सक्रिय भागीदारी स्थापित की जानी चाहिए। इस मुद्दे पर विचार करते हुए कि क्या यह इंगित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि पति पीड़िता को आत्महत्या के लिए उकसाने, साजिश में शामिल होने या जानबूझकर मदद करने का दोषी था, पीठ ने कहा कि प्रतिवादी के बयान से यह स्पष्ट है कि पीड़िता को उकसाने या आत्महत्या के लिए उसकी सहायता करने का न तो उसकी ओर से कोई इरादा था और न ही उसके द्वारा कोई सकारात्मक कदम उठाया गया था। पीठ ने रेखांकित किया कि ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे पता चले कि पति को यह अनुमान था कि उसकी पत्नी उसकी टिप्पणियों के कारण आत्महत्या कर लेगी। कोर्ट ने कहा, ‘‘प्रतिवादी के बयान से यह स्पष्ट है कि पीड़िता को उकसाने या आत्महत्या के लिए उसकी मदद करने का न तो उसका कोई इरादा था और न ही उसने कोई सकारात्मक कदम उठाया। ऐसा प्रतीत होता है कि उसका इरादा केवल पीड़िता से छुटकारा पाने का था और उसने किसी भी ऐसे परिणाम के बारे में नहीं सोचा होगा कि उसकी पत्नी ऐसी बातों के कारण आत्महत्या कर लेगी।’’ अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए स्वतंत्र गवाहों के बयानों की ओर इशारा करते हुए, पीठ ने कहा कि दंपति के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण थे और वह एक खुशहाल वैवाहिक जीवन जी रही थी, हालांकि अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष के बयान से संकेत मिलता है कि मृतक पीड़िता वैवाहिक जीवन की सामान्य नोकझोंक के प्रति अतिसंवेदनशील थी। इसी के मद्देनजर अदालत ने अपील को खारिज कर दिया और यह राय दी कि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह सुझाव दे कि प्रतिवादी का कभी भी पीड़िता को आत्महत्या के लिए उकसाने का इरादा किया था या इसमें उसने भाग लिया था।