धारा 50 एनडीपीएस | यदि अभियुक्तों को मजिस्ट्रेट/राजपत्रित अधिकारी के समक्ष तलाशी लेने के उनके अधिकार के बारे में सूचित नहीं किया गया तो दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती: सुप्रीम कोर्ट

Aug 31, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि अगर आरोपियों को मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष तलाशी के उसके अधिकार के बारे में सूचित नहीं किया गया है तो यह एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के तहत प्रदान की गई सुरक्षा का उल्लंघन है। इस मामले में आरोपियों को ट्रायल कोर्ट ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 20(बी)(ii)(सी) के तहत दोषी ठहराया था। उनकी अपीलों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। अभियुक्त ने दस साल के कठोर कारावास की पूरी मूल सजा और जुर्माना अदा न करने पर छह महीने की अवधि की सजा काट ली। शीर्ष अदालत के समक्ष अपील में यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ताओं को सूचित नहीं किया गया था कि उन्हें यह कहने का अधिकार है कि उनकी तलाशी मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष कराई जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि आरोपियों की ओर से एक हस्ताक्षरित सहमति पत्र दिया गया था, जिसमें कहा गया है कि वे स्वेच्छा से अपनी तलाशी के लिए सहमत हुए थे। "हालांकि, अपीलकर्ताओं को मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के समक्ष तलाशी लेने के उनके अधिकार के बारे में सूचित नहीं किया गया था। विजयसिंह जडेजा बनाम गुजरात राज्य में इस न्यायालय की संविधान पीठ ने निर्धारित कानून के मद्देनजर, यह बिल्कुल स्पष्ट है कि वहां यह एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के तहत प्रदान की गई सुरक्षा का उल्लंघन था।" विजयसिंह जाडेजा मामले में संविधान पीठ ने कहा था, जहां तक एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 की उप-धारा (1) के तहत अधिकृत अधिकारी के दायित्व का संबंध है, यह अनिवार्य है और इसके सख्त अनुपालन की आवश्यकता है। प्रावधान का अनुपालन करने में विफलता अवैध वस्तु की बरामदगी को संदिग्ध बना देगी और दोषसिद्धि को निष्फल कर देगी, यदि इसे केवल ऐसी तलाशी के दौरान आरोपी के पास से अवैध वस्तु की बरामदगी के आधार पर दर्ज किया गया हो। इस प्रकार यह देखते हुए, अदालत ने कहा कि सजा बरकरार नहीं रखी जा सकती और अगर अपीलकर्ता हिरासत में है तो उन्हें तुरंत रिहा कर दिया जाए।