सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के दोषी पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह को सजा पर सुनवाई के लिए वर्चुअली पेश होने की अनुमति दी
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (25.08.2023) को पूर्व सांसद (एमपी) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नेता प्रभुनाथ सिंह को वर्चुअली पेश होने की अनुमति दी। सिंह को 1995 के दोहरे हत्याकांड में 18 अगस्त 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी ठहराया था। 18 अगस्त के अपने फैसले में न्यायालय ने सिंह को 01.09.2023 को सचिव, गृह विभाग, बिहार राज्य और पुलिस महानिदेशक, बिहार द्वारा न्यायालय के समक्ष पेश करने का निर्देश दिया। हालांकि, सिंह के आवेदन पर आदेश को संशोधित किया गया। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने सिंह को 01.09.2023 को अदालत के समक्ष वर्चुअली उपस्थित होने की अनुमति दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "आवेदक/प्रतिवादी नंबर 2 को सज़ा के प्रश्न पर सुनवाई के लिए 01.09.2023 को भौतिक उपस्थिति के बजाय वस्तुतः वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित होने की अनुमति दी जाती है, जैसा कि दिनांक 18.08.2023 के फैसले में निर्देशित किया गया।" अदालत ने हाल ही में सिंह को 1995 के दोहरे हत्याकांड मामले में दोषी ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने सिंह को निचली अदालत द्वारा दिए गए बरी करने के फैसले को पलट दिया। सिंह को बरी किए जाने के फैसले की पटना हाईकोर्ट ने इसकी पुष्टि की। अपराध के समय सिंह बिहार पीपुल्स पार्टी (बीपीपी) के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे थे। मगर उनके सुझाव के अनुसार मतदान नहीं करने पर मार्च 1995 में छपरा में एक मतदान केंद्र के पास दो व्यक्तियों की हत्या करने का आरोप लगाया गया। कड़े शब्दों में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को "जर्जर" और जांच को "दागदार" कहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह "अभियुक्त-प्रतिवादी नंबर 2 की मनमानी को दर्शाता है, जो शक्तिशाली व्यक्ति है और सत्तारूढ़ पार्टी का मौजूदा सांसद है।" 2008 में पटना की एक अदालत ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए सिंह को बरी कर दिया था। बाद में 2012 में पटना हाईकोर्ट ने बरी किए जाने के फैसले को बरकरार रखा। परिणामस्वरूप, पीड़ितों में से एक के भाई ने बरी किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया, "इस प्रकार प्रभुनाथ सिंह (अभियुक्त नंबर 1) को गैर इरादतन हत्या और हत्या के प्रयास के लिए आईपीसी की धारा 302 और 307 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है।" मुकदमे में कई खामियों की ओर इशारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले को "हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली का असाधारण दर्दनाक प्रकरण" कहा।