सुप्रीम कोर्ट ने उस आईपीएस अधिकारी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जिसने कथित तौर पर भ्रष्टाचार की जांच को प्रभावित करने के लिए कॉनमैन को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में पेश किया था

Nov 13, 2023
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आईपीएस अधिकारी और पूर्व पुलिस अधीक्षक आदित्य कुमार को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जिन्होंने कथित तौर पर अपने खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच को प्रभावित करने के लिए एक ठग को खुद को पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बताने के लिए इसमें शामिल किया था। जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह कहते हुए उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया कि कथित अपराध गंभीर प्रकृति के हैं। आईपीएस अधिकारी पर आरोप है कि उन्होंने अपने खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही रद्द करने के लिए अपने सह आरोपियों के साथ मिलकर साजिश रची थी। उनके खिलाफ आरोप यह है कि उनके सह-अभियुक्तों द्वारा उनकी जानकारी में व्हाट्सएप अकाउंट बनाया गया, जिसमें पटना हाईकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस, जो अब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश हैं, उनकी तस्वीर थी। इस व्हाट्सएप अकाउंट से बिहार के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक को अपने पक्ष में फैसला कराने के लिए कॉल और मैसेज किए गए। पटना हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार कर दिया था। उन पर भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 353, 387, 419, 420, 467, 468 और 120बी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66सी और 66डी के तहत अपराध का आरोप लगाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपराध की गंभीरता को देखते हुए उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को सीलबंद लिफाफे में यह विवरण देने का भी निर्देश दिया कि हाईकोर्ट ने इस मामले में अब तक क्या कार्रवाई की है। अदालत ने जांच एजेंसी को मामले की पूरी अद्यतन केस डायरी सीलबंद लिफाफे में जमा करने का भी निर्देश दिया। “यह न्यायालय निश्चित रूप से खोदी गई सामग्रियों पर अपनी आंखें बंद नहीं करेगा, क्योंकि यह न केवल न्यायिक कार्यवाही में शुद्धता बनाए रखने से संबंधित है, बल्कि बड़े पैमाने पर सिस्टम में जनता के विश्वास को बनाए रखने से संबंधित है। हमारा दृढ़ मत है कि आगे के निर्देशों की आवश्यकता है।” सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने याचिकाकर्ता की ओर से तर्क दिया कि उन्होंने अब तक जांच एजेंसी के साथ सहयोग किया है और आरोप पत्र जल्द ही दाखिल किए जाने की संभावना है। उन्होंने यह भी दलील दी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिला है। हालांकि, अपराध की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा, "..इस अदालत की राय है कि याचिकाकर्ता कथित अपराधों की गंभीरता और स्पष्ट असहयोग के कारण अग्रिम जमानत के लाभ का हकदार नहीं है।" कोर्ट ने सुमिता प्रदीप बनाम अरुण कुमार सीके, 2022 लाइव लॉ (एससी) 870 में फैसले का संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया कि भले ही हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह अग्रिम जमानत देने का आधार नहीं हो सकता है। न्यायालय ने धर्मराज बनाम हरियाणा राज्य, 2023 लाइव लॉ (एससी) 739 मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि जमानत की तरह अग्रिम जमानत देने का प्रयोग न्यायिक विवेक के साथ किया जाना है। अतुलभाई विट्ठलभाई भंडेरी बनाम गुजरात राज्य, 2023 एससीसी ऑनलाइन एससी 5602 पर भी भरोसा किया गया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि जमानत के लिए कानून का निर्धारण अग्रिम जमानत मामलों पर समान रूप से लागू होगा। पटना हाईकोर्ट ने उन्हें गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था, "भ्रष्टाचार हमेशा किसी भी राष्ट्र की वृद्धि और समृद्धि के लिए संभावित खतरा रहा है और वह भी वर्दीधारी व्यक्ति द्वारा, जिसे ऐसी गतिविधियों पर अंकुश रखना होता है।"

आपकी राय !

uniform civil code से कैसे होगा बीजेपी का फायदा ?

मौसम