सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट में वकीलों की हड़ताल की निंदा की; बार एसोसिएशन को नोटिस जारी

Sep 29, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन को हड़ताल करने पर एक बार फिर फटकार लगाई है। कोर्ट ने निराशा के साथ कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राजस्थान में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने अदालती काम से दूर रहने का फैसला किया, इसलिए, हाईकोर्ट को सहायता नहीं मिल सकी।" जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मिथल की वकीलों की गैर-हाजिरी के कारण हाईकोर्ट की ओर से पारित एक प्रतिकूल आदेश के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हड़ताल के कारण वकील उपस्थित नहीं हुए थे। एसोसिएशन के आचरण की निंदा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को एसोसिएशन के साथ-साथ बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भी नोटिस जारी किया। बेंच ने आदेश दिया, "बार एसोसिएशन के आचरण पर विचार करते हुए, हम याचिकाकर्ता को निर्देश देते हैं कि वह राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर पीठ में प्रै‌क्टिस कर रहे संबंधित बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं के साथ-साथ बार काउंसिल ऑफ इंडिया को क्रमशः प्रतिवादी संख्या 3 और 4 के रूप में शामिल करें।" मामले की अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी। उल्लेखनीय है कि राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, जयपुर ने 2021 में हड़ताल के हिस्से के रूप में हाईकोर्ट की एक पीठ का बहिष्कार करने के लिए अपने खिलाफ शुरू की गई अवमानना कार्यवाही के संबंध में सुप्रीम कोर्ट से 'बिना शर्त माफी' मांगी थी। एसोसिएशन ने भविष्य में अदालत का बहिष्कार न करने का भी वादा किया था। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने माफी स्वीकार करते हुए तब कहा था, “बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बिना शर्त माफी मांगी गई है और हलफनामे पर उनका बयान है कि वे भविष्य में किसी भी आधार पर हड़ताल पर नहीं जाएंगे या मुख्य न्यायाधीश या किसी अन्य न्यायाधीश पर विशेष न्यायाधीश या बेंच के रोस्टर को बदलने के लिए दबाव नहीं डालेंगे और भविष्य में कोई दबाव रणनीति नहीं अपनाई जाएगी और वे अपने विवादों को वैध तरीकों से हल करेंगे, हम बिना शर्त माफी स्वीकार करते हैं और हम अवमानना कार्यवाही बंद करते हैं। अवमानना नोटिस खारिज किए जाते हैं।” हाईकोर्ट ने मौजूदा मामले में आक्षेपित आदेश 22 नियम 10 सीपीसी (मुकदमे में अंतिम आदेश से पहले असाइनमेंट के मामले में प्रक्रिया) के तहत एक आवेदन में पारित किया था। यह देखते हुए कि वकीलों की गैर-उपस्थिति स्पष्ट रूप से अवैध है और एक्स कैप्टन हरीश उप्पल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य, 2003 (2) एससीसी 45 मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश का उल्लंघन है, हाईकोर्ट ने किसी भी पक्ष को सुने बिना उक्त आवेदन को अनुमति दे दी। हरीश उप्पल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में तीन जजों की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि वकीलों को हड़ताल पर जाने या बहिष्कार का आह्वान करने का कोई अधिकार नहीं है, उन्हें सांकेतिक हड़ताल का भी अधिकार नहीं है। आदेश में कहा गया था कि यदि कोई विरोध आवश्यक है तो प्रेस वक्तव्य देकर, टीवी साक्षात्कार देकर, अदालत परिसर के बाहर या दूर बैनर और/या तख्तियां लेकर, काली या सफेद या किसी भी रंग की बांधकर, शांतिपूर्ण विरोध मार्च किया जा सकता है, धरान या रिले फास्ट किया जा सकता है। अदालत ने कहा था, सभी वकीलों को हड़ताल या बहिष्कार के किसी भी आह्वान से इनकार करना चाहिए। एसोसिएशन या परिषद किसी वकील को किसी प्रतिकूल परिणाम और निष्कासन सहित किसी भी प्रकृति की कोई धमकी नहीं दे सकती या जबरदस्ती नहीं कर सकती। वकीलों की हड़ताल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे आदेश पहले भी पारित किए हैं। इसी महीने 12 सितंबर को जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने ओडिशा में एक बार एसोसिएशन को अपने एक सदस्य की मौत का हवाला देते हुए एक दिन के लिए अदालती काम से दूर रहने के लिए नोटिस जारी किया था। वहीं 14 सितंबर को हापुड की घटना के बाद वकीलों की हड़ताल के कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुझाव दिया था कि दोषी अधिकारियों और नौकरशाहों अदालत में बुलाया जाना चाहिए। एक अन्य आदेश में, कानपुर बार एसोसिएशन और लॉयर्स एसोसिएशन, कानपुर की हड़ताल के कारण दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर बार एसोसिएशन और लॉयर्स एसोसिएशन, कानपुर नगर के पदाधिकारियों के खिलाफ अवमानना का आरोप तय किया था। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया से एक हलफनामा दाखिल करने को कहा था, जिसमें यह बताने के लिए कहा गया था जब बार एसोसिएशनों ने हड़ताल का आह्वान किया है तो क्या कार्रवाई की गई है। अप्रैल 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट्स को शिकायत निवारण कक्ष गठित करने का निर्देश दिया था, जिसके जर‌िए वकील हड़ताल का सहारा लिए बिना अपने मुद्दे उठा सकें।