सुप्रीम कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को बाल विवाह निषेध अधिनियम को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा
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सुप्रीम कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को बाल विवाह निषेध अधिनियम को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों की स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। ये निर्देश CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने पारित किया। शुरुआत में, याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि बाल विवाह का मुद्दा अभी भी बना हुआ है। इसके लिए, भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल, वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान ने प्रस्तुत किया कि एक विधेयक था जो 2021 से लंबित है, जिसके अनुसार महिलाओं की शादी करने की उम्र 21 वर्ष होनी थी। उन्होंने कहा कि यह स्थायी समिति के समक्ष लंबित है। हालांकि, पीठ ने कहा कि ये अभी भी बाल विवाह निषेध अधिनियम के कार्यान्वयन के मुद्दे को संबोधित नहीं करेगा। इस प्रकार, पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को विशेष रूप से निम्नलिखित को स्पष्ट करते हुए एक अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया, 1. बाल विवाह की प्रकृति और सीमा को प्रभावित करने वाले विभिन्न राज्यों से एकत्रित आंकड़े; 2. बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के प्रावधानों को लागू करने के लिए उठाए गए कदम; 3. अधिनियम के उद्देश्य को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीति। बेंच ने आगे कहा, "भारत सरकार को भी बाल विवाह निषेध अधिकारी की नियुक्ति के लिए धारा 16(3) के प्रावधान के राज्यों द्वारा अनुपालन पर अदालत को अवगत कराने के लिए राज्य सरकारों के साथ संलग्न होना चाहिए। एफिडेविट ये भी स्पष्ट करेगा कि क्या अधिकारी नियुक्त या अन्य विविध कर्तव्य दिए गए हैं।“ मामला अब जुलाई 2023 में लिस्ट है।