क्या किसी पक्ष द्वारा अदालत का दरवाजा खटखटाने के बाद विरोध प्रदर्शन किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की

Sep 26, 2023
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सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने किसानों के समूह 'किसान महापंचायत' द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दी। इस समूह ने वर्ष 2021 में इसके विरोध में राष्ट्रीय राजधानी में जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की अनुमति की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अब कृषि कानूनों को रद्द कर दिया। हालांकि, न्यायालय ने किसानों के समूह को दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की छूट दी है। किसान महापंचायत कृषि समुदाय और किसानों का संगठन है। उल्लेखनीय है कि यह याचिका 2020 में संसद द्वारा पारित तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर में किसानों के विरोध की पृष्ठभूमि में दायर की गई थी। उल्लेखनीय है कि अक्टूबर 2021 में इस मामले पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विचार के लिए कानूनी प्रश्न तैयार किया था कि क्या जिस पक्षकार ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है, वह उसी विषय के संबंध में सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन करने के अधिकार का दावा कर सकती है। जस्टिस एएम खानविलकर (रिटायर्ड) की अगुवाई वाली पीठ ने इस मुद्दे पर भारत के अटॉर्नी जनरल से प्रतिक्रिया मांगी थी। इस मामले की सुनवाई करने वाली बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया शामिल थे। मामला जब सुनवाई के लिए उठाया गया तो जस्टिस धूलिया ने याचिकाकर्ता से पूछा, "क्या यह निष्फल नहीं हो गया है?" साथ ही इस तथ्य का जिक्र किया था कि दिसंबर 2021 में संसद द्वारा कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने नकारात्मक जवाब दिया और कहा, "हम जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन करना चाहते हैं।" जस्टिस कौल ने पूछा, "वह सब खत्म हो गया है, विरोध किस बारे में है?" हालांकि, वकील ने तर्क दिया कि "हमारे मुद्दों का समाधान नहीं किया गया।" जस्टिस धूलिया, “आप कह रहे हैं कि आपको जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की अनुमति दी जाए?...क्यों? यह सब ख़त्म हो गया है ना?” इस पर वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता की मांग है कि सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने के लिए एक कानून बनाना चाहिए। जस्टिस धूलिया ने बताया कि प्रार्थना में इसका कहीं भी उल्लेख नहीं है और इसमें केवल सत्याग्रह का उल्लेख है। जस्टिस कौल ने कहा, "आप चाहते हैं कि 200 किसान वहां विरोध प्रदर्शन करें, क्योंकि आपके पास कुछ अन्य दावे भी हैं?" पीठ ने वकील से आगे कहा कि वे कानून बनाने के लिए निर्देश जारी नहीं कर सकते। फिर भी वकील ने बेंच को समझाने की कोशिश की कि अदालत के समक्ष प्रार्थना उक्त विरोध के लिए अनुमति देने की है। हालांकि, बेंच ने दलीलों से संतुष्ट नहीं होकर रिट याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता को इसे दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष दायर करने की छूट दे दी। न्यायालय ने दर्ज किया, "जब यह रिट याचिका दायर की गई थी तब यह मुद्दा संभवतः किसी स्तर पर था। याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि याचिकाकर्ता अभी भी किसी ऐसे मुद्दे के लिए विरोध करना चाहता है जिसे संबोधित नहीं किया गया और दिल्ली पुलिस को व्यवस्था करनी चाहिए। यही स्थिति है याचिकाकर्ता को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका पर विचार करने के बजाय दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष विशिष्ट दलील देनी चाहिए।