न्यायालय अपर्याप्त/अपेक्षित स्टांप शुल्क स्वयं प्राप्त कर सकता है, जब्त किए गए समझौते को स्टांप कलेक्टर को भेजने की आवश्यकता अनिवार्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Aug 24, 2023
Source: https://hindi.livelaw.in/

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में यह दोहराया कि एएंडसी एक्‍ट की धारा 11 के तहत शक्ति का प्रयोग कर रहे न्यायालय के लिए बिना स्टांप के या अपर्याप्त स्टांप के समझौते को जब्त करना अनिवार्य है। कोर्ट ने यह माना कि न्यायालय खुद स्‍टांप एक्ट, 1899 की धारा 35 के तहत कमी/अपेक्षित स्टांप शुल्क एकत्र कर सकता है, और स्‍टांप एक्ट की धारा 35 के प्रावधान (ए) के तहत अपेक्षित जुर्माने के साथ अपेक्षित स्‍टांप शुल्क जमा करने में सक्षम बना सकता है। जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने बिना स्टांप के/अपर्याप्त स्टांप के समझौते को जब्त करने के बाद न्यायालय की ओर से अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर कई बाते स्पष्ट की। यह माना गया कि समझौते को जब्त करने के बाद न्यायालय के पास दो विकल्प होंगे (i) जब्त किए गए इंस्ट्रयूमेंट को स्टांप कलेक्टर को भेजें, जो स्टांप अधिनियम की धारा 40-42 की प्रक्रिया का पालन करेगा या (ii) धारा 35 का सहारा लेगा और इसी धारा के प्रावधान (ए) के तहत अपेक्षित दंड के साथ अपेक्षित स्‍टांप शुल्क जमा करने में सक्षम बनाएगा। न्यायालय ने माना कि उचित मामलों में, विशेष रूप से जहां देय स्टांप शुल्क की मात्रा पर विवाद नहीं है, न्यायालय के लिए धारा 35 का सहारा लेना बेहतर होगा, और उसके बाद स्टांप कलेक्टर को भेजे बिना मध्यस्थता समझौते वाले इंस्ट्रयूमेंट के आधार पर कार्य करना होगा। न्यायालय ने कहा कि ऐसी प्रक्रिया न केवल एनएन ग्लोबल के विपरीत होगी, बल्‍कि अधिनियम की धारा 11(13) के तहत अधिदेश को भी प्रभावी करेगा, और यह सुनिश्चित करेगा कि अधिनियम की धारा 11 के तहत याचिका/याचिकाओं के निपटान में स्टांप कलेक्टर द्वारा की जाने वाली न्यायिक प्रक्रिया के कारण अत्यधिक देरी न हो। इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि धारा 35 का सहारा लेते हुए न्यायालय कुछ कार्यों को किसी नियुक्त अधिकारी या न्यायालय के रजिस्ट्रार को सौंप सकता है, हालांकि, लिखत की प्रकृति और उस पर देय स्‍टांप शुल्क का निर्धारण करने का कर्तव्य नहीं सौंपा जा सकता है और इसे न्यायालय द्वारा ही निष्पादित किया जाना है। न्यायालय ने उन कार्यों/कार्यों की एक सूची तैयार की जिन्हें स्‍टांप अधिनियम की धारा 35 का सहारा लेते हुए न्यायालय द्वारा सौंपा जा सकता है- -किसी भी ऐसे उपकरण की जांच करने और जब्त करने का कर्तव्य, जिस पर स्टांप नहीं लगा है या अपर्याप्त स्टांप लगा है। -दस्तावेज़ की प्रकृति और चरित्र तथा उस पर देय शुल्क और जुर्माने की राशि पर एक "रिपोर्ट" तैयार करना; -धारा 42(1) के संदर्भ में मूल लिखत का एंडॉर्समेंट कि लिखत पर अब विधिवत मुहर लगी हुई है और उसके संबंध में उचित शुल्क और जुर्माना (प्रत्येक की राशि बताते हुए) लगाया गया है, और उन्हें भुगतान करने वाले व्यक्ति का नाम और निवास ; -मूल दस्तावेज की एक प्रति तैयार करना (एंडॉर्समेंट के बाद), जिससे उसकी सामग्री की वास्तविकता और सटीकता सुनिश्चित की जा सके, पार्टी द्वारा स्टांप शुल्क (जुर्माने के साथ) का भुगतान करने/स्टांप दोष को दूर करने की कीमत पर, और इस प्रकार तैयार की गई प्रति को मूल उपकरण की "प्रमाणित प्रति" के रूप में स्पष्ट रूप से चिह्नित किया जाए। -मूल लिखत के संबंध में लगाए गए स्टांप शुल्क और जुर्माने की राशि बताते हुए धारा 38(1) में दिए गए "प्रमाणपत्र" को तैयार करना; और -क) प्रमाणित प्रतिलिपि का ट्रांसमिशन; बी) प्रमाणपत्र; और ग) उस स्थान पर जहां लिखत निष्पादित किया गया था, संबंधित कलेक्टर को एकत्रित स्टांप शुल्क और जुर्माने की कुल राशि का ट्रांसमिशन

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