बिक्री समझौता स्वामित्व प्रदान नहीं करता, हालांकि संभावित खरीदार का स्वामित्व अधिकार धारा 53ए टीपी एक्ट के तहत संरक्षित रहता है: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भले ही बिक्री समझौता किसी अचल संपत्ति में मालिकाना हक़ का स्थानांतरण नहीं करता, हालांकि, जब संभावित खरीदार अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करता है और संपत्ति का कब्जा प्राप्त करता है, तो कहा जाता है कि उसने मालिकाना हक अधिग्रहित कर लिया है और यह संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (टीपीए) की धारा 53ए के तहत संरक्षित है। "कानूनी रूप से बिक्री समझौते को बिक्री के लेन-देन या अचल संपत्ति में मालिकाना हक को स्थानांतरित करने वाले दस्तावेज़ के रूप में नहीं माना जा सकता है, लेकिन संभावित खरीदार ने अनुबंध के अपने हिस्से का प्रदर्शन किया है और कानूनी रूप में कब्जे का अधिकार प्राप्त किया है, जो संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 53ए को ध्यान में रखते हुए संरक्षित होने के लिए उत्तरदायी है संभावित खरीदार के उक्त स्वामित्व अधिकारों को हस्तांतरणकर्ता या उसके तहत होने का दावा कर रहे किसी भी व्यक्ति द्वारा हमला नहीं किया जा सकता है। तथ्य श्री घनश्याम (अपीलकर्ता) दिल्ली स्थित एक संपत्ति (वाद संपत्ति) के मालिक थे। उन्होंने वाद संपत्ति की बिक्री के लिए श्री योगेंद्र राठी (प्रतिवादी) के साथ 10.04.2002 को एक बिक्री समझौता किया और प्रतिवादी से संपूर्ण बिक्री प्रतिफल प्राप्त किया। उसी दिन, अपीलकर्ता ने वाद संपत्ति के लिए प्रतिवादी को वसीयत निष्पादित की। अपीलकर्ता ने प्रतिवादी के पक्ष में जीपीए भी निष्पादित किया। वाद संपत्ति का कब्जा प्रतिवादी को सौंप दिया गया, हालांकि कोई बिक्री विलेख निष्पादित नहीं किया गया। प्रतिवादी ने अपीलकर्ता को लाइसेंसधारी के रूप में 3 महीने के लिए वाद संपत्ति के एक हिस्से पर कब्जा करने की अनुमति दी। तीन माह की अवधि बीत जाने के बाद भी अपीलकर्ता ने संपत्ति खाली नहीं की। प्रतिवादी ने अपीलकर्ता के खिलाफ वाद संपत्ति से बेदखली और मध्यवर्ती (Mesne) मुनाफे की वसूली के लिए मुकदमा दायर किया। प्रतिवादी ने 10.04.2002 को सेल एग्रीमेंट, जनरल पावर ऑफ अटार्नी, मेमो ऑफ पोजेशन, बिक्री के लिए भुगतान की रसीद और 10.04.2002 की वसीयत के बल पर वाद संपत्ति के स्वामित्व का दावा किया। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी द्वारा उद्धृत दस्तावेजों को कोरे कागजों पर हेरफेर किया गया है। हालांकि, उस आशय का कोई सबूत नहीं था। अपीलकर्ता ने ऐसे दस्तावेजों के निष्पादन या उसके द्वारा बिक्री प्रतिफल की प्राप्ति पर विवाद नहीं किया। ट्रायल कोर्ट ने माना कि दस्तावेजों में कोई हेरफेर नहीं हुआ था और इस प्रकार प्रतिवादी बेदखली और मध्यवर्ती मुनाफे की वसूली के लिए डिक्री का हकदार है। अपीलकर्ता ने प्रथम अपील दायर की और उसके बाद हाईकोर्ट के समक्ष दूसरी अपील दायर की और दोनों का निर्णय प्रतिवादी के पक्ष में किया गया। इसके बाद अपीलकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। निष्कर्ष खंडपीठ ने कहा कि बिक्री समझौता न तो स्वामित्व का दस्तावेज है और न ही बिक्री द्वारा संपत्ति के हस्तांतरण का विलेख है। इसलिए, यह संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 54 के मद्देनजर, वाद संपत्ति पर प्रतिवादी को कोई पूर्ण अधिकार प्रदान नहीं करता है। हालांकि, बिक्री के लिए समझौते में प्रवेश करने, बिक्री के लिए तय संपूर्ण राशि का भुगतान करने जैसे कारक और हस्तांतरणकर्ता द्वारा कब्जे में रखना यह दर्शाता है कि प्रतिवादी के पास बिक्री समझौते के आंशिक प्रदर्शन के आधार पर वास्तविक अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि वाद संपत्ति में अपीलकर्ता का प्रवेश प्रतिवादी के लाइसेंसधारी के रूप में था न कि संपत्ति के मालिक के रूप में। एक संभावित खरीदार कब संपत्ति का स्वामित्व प्राप्त करता है? खंडपीठ ने कहा कि आम तौर पर बिक्री समझौता किसी अचल संपत्ति में मालिकाना हक़ को स्थानांतरित नहीं करता। जब संभावित खरीदार अनुबंध के अपने हिस्से का प्रदर्शन करता है और संपत्ति का कब्जा प्राप्त करता है, तो कहा जाता है कि उसने संपत्ति का स्वामित्व हासिल कर लिया है और यह संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 53ए के तहत संरक्षित है। बेंच ने कहा, "कानूनी रूप से बिक्री समझौते को बिक्री के लेन-देन या एक अचल संपत्ति में मालिकाना हक़ को स्थानांतरित करने वाले दस्तावेज़ के रूप में नहीं माना जा सकता है, हालांकि संभावित खरीदार ने अनुबंध के अपने हिस्से का प्रदर्शन किया है और कानूनी रूप में कब्जे का अधिकार प्राप्त किया है, जो संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 53ए को ध्यान में रखते हुए संरक्षित होने के लिए उत्तरदायी है। संभावित खरीदार के उक्त स्वामित्व अधिकारों पर हस्तांतरणकर्ता या उसके तहत दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा हमला नहीं किया जा सकता है। खंडपीठ ने कहा कि प्रतिवादी के कब्जे के अधिकार को हस्तांतरणकर्ता (अपीलकर्ता) द्वारा डिस्टर्ब नहीं किया जा सकता है। तदनुसार, खंडपीठ ने हाईकोर्ट के इस दृष्टिकोण को बरकरार रखा कि प्रतिवादी मध्यवर्ती मुनाफे के साथ बेदखली की डिक्री का हक़दार है।