यह स्वीकार्य नहीं कि एनएलयू, जोधपुर में केवल संविदा शिक्षक हों, नियमित स्टाफ के बिना उत्कृष्टता की उम्मीद नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने जोधपुर की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को केवल संविदा शिक्षकों के भरोसे संचालित होने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा, "कम से कम यह कहें तो यह अस्वीकार्य और अवांछनीय है।" कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार, केवल 10 प्रतिशत कर्मचारी ही संविदा कर्मचारी हो सकते हैं। न्यायालय को बताया गया कि एनएलयू के नियमों में हाल ही में 50 प्रतिशत स्थायी कर्मचारियों और 50 प्रतिशत संविदा कर्मचारियों को रखने के लिए संशोधन किया गया था। लेकिन, इस पर भी अमल नहीं हो सका है। कोर्ट ने आगे कहा कि विश्वविद्यालय में इस समय कोई कुलपति नहीं है और रजिस्ट्रार भी एक संविदा कर्मचारी है। विश्वविद्यालय की ओर से स्पष्टीकरण दिया गया है कि यह बिना किसी सरकारी सहायता के एक स्व-वित्तपोषित संस्थान है, हालांकि न्यायालय को यह जवाब पसंद नहीं आया। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, "मुद्दा यह है कि इन्हें उत्कृष्ट संस्थान माना जाता है और आप उन संस्थानों से उत्कृष्टता की उम्मीद नहीं कर सकते हैं, जहां शिक्षण कर्मचारियों का निरंतर आगमन और बहिर्प्रवाह होता है, क्योंकि वे संविदा पर कार्यरत हैं। अब स्थिति को सुधारने का समय आ गया है।" पीठ ने कहा कि वह न्यायालय के हस्तक्षेप के बजाय एनएलयू की ओर से स्वयं स्थिति का समाधान किया जाए, ऐसा होना पसंद करेगी। न्यायालय ने मामले में स्थगन दे दिया है और अब इसकी सुनवाई 31 अक्टूबर 2023 को होगी।