मात्र हथियार बरामद न होने से अभियोजन पक्ष का मामला समाप्त नहीं हो सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 41 साल पुराने हत्या के मामले में दो की उम्रकैद की पुष्टि की
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि केवल हथियार की बरामदगी नहीं होने से अभियोजन पक्ष के मामले को समाप्त नहीं किया जा सकता, 41 साल पुराने एक मामले में हत्या के दो दोषियों को ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा और उम्रकैद की सजा का फैसला बरकरार रखा। जस्टिस अताउ रहमान मसूदी और जस्टिस सरोज यादव की पीठ ने आगे कहा कि अपराध में शामिल अन्य अभियुक्तों का पता नहीं चल पाया, इससे यह नहीं माना जा सकता कि पूरी घटना ही झूठी है पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि मामले के चश्मदीद गवाह अभियोजन पक्ष के मामले को सभी उचित संदेह से परे साबित कर सकते हैं और यह कि चश्मदीदों की गवाही पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने कहा, " इसलिए रिकॉर्ड में मौजूद सबूतों से यह अच्छी तरह से स्थापित है कि मृतक की हत्या दोषियों/अपीलकर्ताओं अर्थात् करुणा शंकर और राजकिशोर ने दो अज्ञात बदमाशों के साथ मिलकर की थी।" संक्षेप में मामला मामले में एफआईआर 17 जून, 1982 को दो नामजद व्यक्तियों (अपीलकर्ताओं/दोषियों) और दो अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता, उसके पिता (मृतक) और उसका ममेरा भाई बाजार से जब घर वापस आ रहे थे, तब आरोपी नं. 1 करुणा शंकर बंदूक से लैस होकर और आरोपी नं 2 राजकिशोर कट्टा (देशी पिस्तौल) और उनके दो साथी, फरसा (कुदाल) और एक कुल्हारी (कुल्हाड़ी) से लैस होकर अचानक वहां आ पहुंचे। अपीलकर्ता राजकिशोर ने अपने सहयोगियों को शिकायतकर्ता के पिता को मारने के लिए उकसाया ताकि उसे दूसरों की ज़मीन लेने के लिए सबक सिखाया जा सके, इस पर वे (शिकायतकर्ता, उसके मृत पिता और चचेरे भाई) ने भागने की कोशिश के। इसी दौरान राजकिशोर ने मृतक पर कट्टे से गोली चला दी जो उसके पेट के दाहिनी ओर लगी। इसके बाद शिकायतकर्ता, पिता और भाई तीनों रोते हुए भागे, लेकिन राजकिशोर व उसके साथियों ने मृतक का पीछा कर पिस्टल व देशी पिस्टल से एक-एक गोली दाग दी। इससे मृतक नीचे गिर गया और उसके बाद आरोपी के दो साथियों ने कुल्हाड़ी और कुदाल से हमला कर उसकी हत्या कर दी और इसके बाद वे सभी भाग गए। ट्रायल कोर्ट ने गवाहों PW 1- अशोक कुमार (शिकायतकर्ता) और PW 2- राधे के मेडिकल सबूत और अन्य सबूतों के समर्थन पर भरोसा किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अभियोजन पक्ष का मामला साबित हो चुका है। अत: विचारण न्यायालय ने दोषियों/अपीलार्थियों को आईपीसी की धारा 302/34 के तहत दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सजा के आदेश और फैसले को चुनौती देते हुए दोनों आरोपी हाईकोर्ट चले गए। अभियोजन पक्ष द्वारा जोड़े गए सबूतों के साथ मामले के तथ्यों का विश्लेषण करने के बाद अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची कि दोनों चश्मदीद गवाह यानी पीडब्लू 1 और पीडब्लू 2 ने घटना का चरण-दर-चरण विवरण देकर घटना को साबित किया और बचाव पक्ष द्वारा विस्तार से क्रॉस एक्ज़ामिनेशन किए जाने के बावजूद, ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया जिससे उनके बयानों को अविश्वसनीय बनाया जा सके। अदालत ने आगे अभियुक्त के वकील द्वारा दिए गए तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि जांच अधिकारी द्वारा दो अज्ञात अभियुक्तों का पता नहीं लगाया जा सका और उनकी पहचान नहीं की जा सकी, इसलिए शिकायतकर्ता द्वारा बताई गई घटना पर विश्वास नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने अपीलकर्ताओं के वकील के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि न तो फायर आर्म और न ही 'फरसा' (कुदाल) या कुल्हारी (कुल्हाड़ी) बरामद की गई, घटना को साबित नहीं माना जा सकता। " अपीलकर्ताओं के वकील का यह तर्क भी मान्य नहीं है क्योंकि अभियोजन पक्ष के मामले को साबित करने के लिए हथियार की बरामदगी हमेशा आवश्यक नहीं होती है, खासकर अगर चश्मदीद गवाह मौजूद हो। वर्तमान मामले में घटना के चश्मदीद दो गवाहों ने घटना को साबित किया है. हथियार की बरामदगी न होने मात्र से अभियोजन पक्ष का मामला खत्म नहीं हो सकता।' इस संबंध में कोर्ट ने मेकला शिवैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य 2022 लाइवलॉ (एससी) 604 और कलुआ उर्फ कौशल किशोर बनाम राजस्थान राज्य (2019) के मामलों में शीर्ष अदालत के फैसलों पर भरोसा किया। न्यायालय ने आगे जोर देकर कहा कि यह सुस्थापित कानून है कि संबंधित गवाह की गवाही को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वह संबंधित गवाह है। अदालत ने कहा, " एक व्यक्ति जिसके करीबी रिश्तेदार को मार दिया गया है, वह वास्तविक अपराधी को दूसरों को झूठा फंसाने के लिए कभी नहीं बख्शेगा।" अदालत ने कहा कि चश्मदीद गवाहों की गवाही पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है, जो मृतक से संबंधित थे, इसलिए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों को दोषी मानते हुए उन्हें दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। नतीजतन अदालत ने दोषियों/अपीलकर्ताओं करुणा शंकर और राजकिशोर जो जमानत पर हैं, उन्हें सुनाई गई सजा पूरी करने के लिए दस दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।