तलाक के बाद भी पति के साथ रह रही है पत्नी तो घरेलू हिंसा कानून के तहत राहत की हकदार, बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
तलाक के बाद भी पति के साथ रह रही है पत्नी तो घरेलू हिंसा कानून के तहत राहत की हकदार, बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि तलाक के 10 वर्ष बाद भी अगर पत्नी अपने पति के साथ रह रही है तो वो डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के तहत राहत की हकदार होगी। औरंगाबाद स्थित जस्टिस मग्नेश पाटिल की बेंच ने 46 साल के आत्माराम सनप की एक आपराधिक समीक्षा याचिक को रद्द कर दिया है, जिसमें उसने अपनी पत्नी संगीता द्वारा डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 की धारा 12 (महिला सुरक्षा) के तहत की गई शुरू की गई कार्यवाही में दो समवर्ती फैसलों को चुनौती दी थी। इस मामले में नवंबर 2017 को एक मजिस्ट्रेट द्वार दिए पहले फैसले में आत्माराम सनप को अपनी पहली पत्नी और और दूसरी बेटी को हर महीने 12,500 रुपए देने का आदेश दिया गया था। मजिस्ट्रेट ने सनप को पत्नी संगीता को 1 लाख रुपए मुआवजा और 2000 रुपए खर्च देने का भी आदेश दिया था। क्या है मामला डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के सेक्शन 12 के तहत दर्ज संगीता की शिकायत के मुताबिक आत्माराम सनप से 15 मई 1993 को विवाह होने के बाद वो बीड़ जिले के उसके घर में रहने लगी थी। आत्माराम शादी के बाद ही वो उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगा। आत्माराम ने संगीता से कहा था कि वो एक पढ़ी-लिखी लड़की से विवाह करना चाहता था लेकिन उस अनपढ़ लड़की से शादी करनी पड़ी। संगीता का आरोप है कि आत्माराम ने धोखे से उससे तलाक के कागजात पर दस्तखत करवा लिए और बाद में उसे और उसके दोनों बेटियों को छोड़ देने की धमकी देकर, उस पर तलाक के लिए तैयार होने का दबाव बनाने लगा। संगीता ने अपनी शिकायत में कहा कि आत्माराम ने उससे डीएड कोर्स में दाखिला लेने के नाम पर तलाक लिया था। आत्माराम ने उससे कहा था कि डीएड कोर्स में दाखिए के लिए एक कैटेगरी ऐसी है, जिसमें तलाकशुदा महिलाओं के लिए विशेष सीटें होती हैं। उसने भरोसा दिलाया था कि तलाक केवल कागज पर होगा। 20 अक्टूबर 2000 को दोंनो को तलाक मंजूर हो गया था। संगीता ने कहा कि तलाक के आदेश के बाद भी उसने अपनी पति के साथ एक ही घर में रहना जारी रखा, उसकी दोनों बेटियां भी साथ ही रहती थीं। पति-और पत्नी तलाक के आदेश के बाद भी 10 साल तक साथ रहे। उसके बाद आत्माराम ने 2010 में उसने शीतल बाडे नाम की महिला से शादी कर ली और उसे घर लाया। दूसरी शादी के बाद उसने संगीता से कहा कि चूंकि दोनों के बीच तलाक हो चुका है, इसलिए उनके बीच कोई रिश्ता नहीं है। उसने कहा कि अगर संगीता ने ऐतराज जताया तो उसके गंभीर नतीजे होंगे। अगस्त 22, 2010 को संगीता ने आरोप लगाया कि उसे पीटा गया और घर से बाहर निकाल दिया गया। संगीता ने उसके बाद पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और आत्माराम के खिलाफ अंसज्ञेय अपराध का मामला दर्ज किया गया। इससे नाराज होकर आत्माराम ने उसे 24 नवंबर 2010 को दोबारा पीटा, जिसके बाद एक और असंज्ञेय अपराध का मामला दर्ज किया गया। अक्टूबर 15, 2011 को असंज्ञेय अपराध को एक और मामला दर्ज किया गया। उस समय संगीता ने आरोप लगाया था कि शिकायत की तारीख के दिन भी वो अपने पति और बेटियों के साथ एक ही घर में रह रही थी। संगीता का कहना था कि उसे पीटा जाता रहा है और उसकी बेटियों की पढ़ाई और रोज के दूसरे खर्चों के लिए उसे गुजारा भत्ता भी नहीं दिया गया। हालांकि आत्माराम ने संगीता को मारे-पीटे जाने से इनकार किया। उसने कहा कि दोनों की पहली बेटी के जन्म के बाद से संगीता उससे झगड़ने लगी और 1997 में ही उससे अलग हो गई थी।
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उसने कहा कि 1997 से 2000 के बीच उसने अपने वैवाहिकों अधिकारों को बरकरार रखने की कोशिश की। हालांकि उसके बाद भी उस अवधि में संगीता उसके साथ एक या डेढ़ महीने से ज्यादा नहीं रही। उसने किसी भी तरह की धोखाधड़ी से इनकार किया और कहा कि चूंकि उसकी बीवी साथ रहने के लिए तैयार नहीं थी, इसलिए एक दूसरे से अलग रहने के आधार पर उसने तलाक के लिए अर्जी दी थी। ये रहा फैसला सुप्रीम कोर्ट के जुवेरिया अब्दुल मजीद पाटनी बनाम अतीफ इकबाल मंसूरी व अन्य के मामले में दिए फैसले का परीक्षण करने के बाद जस्टिस पाटिल ने कहा- 'दोनों निचली अदालतों के पास इस नतीजे तक पहुंचने के लिए पर्याप्त सबूत थे कि साल 2000 में तलाक हो जाने के बाद भी याची और प्रतिवादी एक ही घर में एक दूसरे के साथ रहना बरकरार रखा। और अगर ऐसा मामला होता है कि तो याची डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट के सेक्शन 12 के तहत मुकदमा दर्ज कराने की हकदार है। इसके अलावा, ये मानते हुए भी कि दोनों का विवाह कानून द्वारा रद्द किया जा चुका है, फिर भी जैसा कि जुवेरिया अब्दुल मजीद पाटनी (सुप्रा) के मामले में फैसला दिया गया था, याची भी डोमेस्टिक वायलेंस के पिछले सभी मामलों में सेक्शन 12 के तहत केस दर्ज कराने की हकदार होगी। अंत में कोर्ट ने कहा कि आत्मराम ने जिरह में ये स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि उसकी तनख्वाह 46 हजार रुपए महीना है और उसकी खुद की खेती की जमीन है। उसने ये भी माना हैकि उसकी दूसरी बेटी संगीता के साथ रहती है और पहली बेटी भी 2010 तक मां के साथ ही रहती थी और उसके बाद पहली बेटी उसके साथ रहना शुरू किया। कोर्ट ने कहा- आत्माराम दूसरी बेटी की शिक्षा पर खर्च की कोई भी रसीद पेश नहीं कर पाए हैं, और उन्होंने ये भी स्वीकार किया है कि उन्होंने प्रतिवादी 1 को गुजाराभत्ता नहीं दिया। दोनों निचली अदालतें उन सबूतों के आधार पर विचार कर गुजराभत्ता और मुअवाजे की राशि तय कर चुकी हैं। मुझे राशि के मामले में भी किसी प्रकार के हस्तक्षेप को कोई ठोस और पर्याप्त कारण नहीं दिखता। समीक्षा याचिका में कोई दम नहीं है और ये रद्द करने योग्य है।
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