सर्वोच्च न्यायालय के फैसले, जिन्हें भले ही स्पष्ट रूप से Ratio Decidendi न कहा जा सके, उच्च न्यायालयों पर होंगे बाध्यकारी SC ने दोहराया निर्णय पढ़ें

Jul 22, 2019

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले, जिन्हें भले ही स्पष्ट रूप से Ratio Decidendi न कहा जा सके, उच्च न्यायालयों पर होंगे बाध्यकारी SC ने दोहराया निर्णय पढ़ें

सर्वोच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्णित किया है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय, भले ही जिन्हें निश्चित रूप से 'निर्णय का औचित्य' (Ratio decidendi) नहीं कहा जा सकता है, निश्चित रूप से उच्च न्यायालय पर बाध्यकारी होंगे। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने यह कहा कि जब लेन-देन का चरित्र निर्धारिती (assessee) के हाथों में 'कैपिटल रिसीट' (capital receipt) है, तो संभवतः निर्धारिती (assessee) के हाथों में आय के रूप में इसपर कर (Tax) नहीं लगाया जा सकता है। उच्च न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या निर्धारिती-कंपनी (assessee-Company) के हाथों में सदस्यता की प्राप्तियां (receipts of subscriptions) आय (Income) के रूप में मानी जानी चाहिए न कि पूंजीगत प्राप्तियों (capital receipts) के रूप में, जैसा कि निर्धारिती ने अपने खातों में इस राशि को आय के रूप में दिखाया है। उच्च न्यायालय ने यह दावा किया कि पीयरलेस जनरल फाइनेंस एंड इन्वेस्टमेंट कंपनी लिमिटेड (सुप्रा) के मामले में शीर्ष अदालत के एक निर्णय ने कानून का ऐसा कोई पूर्ण प्रस्ताव नहीं रखा है कि यह कहा जा सके कि आकलन वर्ष 1985-86 और 1986-87 हेतु प्रासंगिक पिछले वर्ष के लिए निर्धारिती के हाथों में सदस्यता की सभी प्राप्तियों को आवश्यक रूप से पूंजीगत प्राप्तियों (capital receipts) के रूप में माना जाना चाहिए।

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कोर्ट ने पीयरलेस जनरल फाइनेंस एंड इन्वेस्टमेंट कंपनी लिमिटेड के मामले में फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि हालांकि, फैसले का सीधा फोकस यह नहीं था कि प्राप्त सदस्यताएं प्रकृति में पूंजीगत हैं या राजस्व हैं, लेकिन सामान्य सिद्धांतों पर, यह माना गया है कि इस तरह की सदस्यताएं, पूंजीगत प्राप्तियां (capital receipts) होंगी, और यदि उन्हें आय माना जाता है, तो यह कंपनी अधिनियम का उल्लंघन होगा। न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने कहा: "इसलिए यह कहना गलत है, जैसा कि उच्च न्यायालय ने कहा है, कि पीयरलेस जनरल फाइनेंस एंड इन्वेस्टमेंट कंपनी लिमिटेड (सुप्रा) के फैसले को ऐसे पढ़ा जाना चाहिए, जैसे इसने कानून के किसी भी पूर्ण प्रस्ताव को निर्धारित नहीं किया कि इन वर्षों के लिए निर्धारिती को प्राप्त सदस्यताओं को पूंजीगत प्राप्तियों (capital receipts) के रूप में माना जाना चाहिए। हम दोहराते हैं कि हालांकि कोर्ट का ध्यान सीधे इस मुद्दे पर नहीं था, फिर भी, इस कोर्ट द्वारा सुनाया गया एक निर्णय, भले ही जिसे स्पष्ट रूप से फैसले का औचित्य (ratio decidendi) नहीं कहा जा सकता , पर वह निश्चित रूप से उच्च न्यायालय के ऊपर बाध्यकारी होगा।" उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए पीठ ने कहा: "वर्तमान लेनदेन का 'सैद्धांतिक' पहलू यह तथ्य है कि निर्धारिती ने आय के रूप में सदस्यताएँ प्राप्त की। हालांकि, स्थिति की वास्तविकता यह है कि इस मामले का व्यवसायिक पहलू, जब इसे एक पूर्ण रूप में देखा जाता है, अनिवार्य रूप से इस निष्कर्ष पर जाता है कि प्राप्तियां, पूंजीगत प्राप्तियां (capital receipts) थीं और आय नहीं।"

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