बाद के दायित्व के लिए जारी चेक का बाउंस होना स्पष्टतौर पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट यानि परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत-छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट आर्डर पढ़े

May 23, 2019

बाद के दायित्व के लिए जारी चेक का बाउंस होना स्पष्टतौर पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट यानि परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत-छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट आर्डर पढ़े

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मदन तिवारी बनाम यशंत कुमार साहू और अन्य के केस में माना है कि बाद के दायित्व के निर्वहन के लिए जारी किया गया चेक अगर बाउंस हो जाता है तो वह स्पष्ट तौर परनेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट यानि परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881के तहत आता है। जस्टिस रजनी दूबे की पीठ ने आगे कहा कि चेक निस्संदेह बकाया जिम्मेदारी का प्रतिनिधित्व करते है। जब एक बार जब ऋण का वितरण हो जाता है और समझौते के अनुसार किश्त चेक की तारीख पर लंबित हो जातीहै तो ऐसे चेक का अनादर या बाउंस होना नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट यानि परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत 1881 की धारा 138 के तहत आता है। क्या था मामला प्रतिवादी ने इस मामले में दायर शिकायत में आरोप लगाया था कि याचिकाकर्ता या आवेदक डोंगरगांव में एक संस्थान(प्लीजेंट हेल्थ वेल्फेयर फाउंडेशन) चलाता था। उसने प्रतिवादी यानि शिकायतकर्ता व 21 अन्य कोअनुबंध के तहत नियुक्त किया। शिकायतकर्ता व अन्य ने इस अनुबंध के अनुसार कुछ राशि संस्थान के पास जमा करा दी। अनुबंध के अनुसार जो पैसा संस्थान के पास जमा कराया गया था,वह प्रोबेशन यानि परिवीक्षा कीअवधि का एक साल पूरा होने के बाद वापिस कर दिया जाएगा। शिकायतकर्ता व अन्य का आरोप है कि एक साल के प्रोबेशन की अवधि पूरी होने के बाद भी उनको नियमित नहीं किया गया। जिसके बाद शिकायतकर्ता व अन्य लोगों ने याचिकाकर्ता/संस्थान से अपने 3,16000 रुपए वापिसमांगे। याचिकाकर्ता ने 3,16000 रुपए की राशि का चेक शिकायतकर्ता के नाम पर काट दिया। जब शिकायतकर्ता ने यह चेक बैंक में जमा कराया तो चेक बाउंस हो गया। बैंक की तरफ से बताया गया कि चेक जारी करने वालेके खाते में पर्याप्त राशि नहीं है,इसलिए चेक का भुगतान नहीं किया जा सकता है। इसके बाद याचिकाकर्ता को 10 मई 2004 को एक कानूनी नोटिस भेजा गया और जब याचिकाकर्ता ने उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसके खिलाफ नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत आपराधिकशिकायत दर्ज करा दी गई। आरोप तय करने और साक्ष्य दर्ज करने कके बाद निचली अदालत ने प्रतिवादी की तरफ से दायर शिकायत को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि आवेदक या याचिकाकर्ता नेनेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध किया है। अदालत ने आवेदक को दोषी करार देते हुए उसे दो साल के कठोर कारावास व पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई। इस आदेश के खिलाफआवेदक ने अपीलेटकोर्ट के समक्ष आपराधिक अपील दायर कर दी। परंतु अपीलेट कोर्ट ने भी निचली अदालत के आदेश को सही ठहराया। जिसके बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के समक्ष पुनःविचार याचिका दायर की।

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चेक पर हस्ताक्षर करना है जिम्मेदारी स्वीकारना कोर्ट ने कहा कि आवेदक द्वारा चेक पर हस्ताक्षर करना यह दर्शाता है कि उसने अपनी देनदारी स्वीकार कर ली है और 139 नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट में दी गई संभावना या धारणा को नहीं झूठलाएगा या अस्वीकार नहींकरेगा। इसके बाद पैसे की देनदारी ही नहीं बनती है बल्कि अधिनियम के तहत आपराधिक कार्यवाही की जिम्मेदारी भी बन जाती है। इस मामले में पेश गवाहों के बयानों को करीब से देखने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि आवेदक ने चेक पर हस्ताक्षर किए थे और शिकायतकर्ता को चेक दिया था। कोर्ट ने रंगापा बनाम श्रीमोहन (2010)11 एससीसी मामले मेंसुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया। इस मामले में कहा गया था कि एक बार चेक को जारी करना और उस पर किए हुए हस्ताक्षर को स्वीकार कर लिया जाता है तो चेक धारक के पक्ष में एक कानूनी रूप सेऋण को वसूलने की संभावना (presumption ) लागू हो जाती है। इसके बाद यह आरोपी पर निर्भर करता है कि वह इस संभावना को झूठा साबित करे। हालांकि आरोपी को अपने स्वंय के साक्ष्य पेश करने की जरूरत नहीं हैऔर वह शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत सामग्री पर भी भरोसा कर सकता है। परंतु इस संभावना को झूठलाने के लिए सिर्फ आरोपी का बयान काफी नहीं होगा। कोर्ट ने पुनःविचार याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इसमें कोई योग्यता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत के साथ-साथ अपीलेट कोर्ट ने पाया कि चेक में आरोपी या आवेदक के हस्ताक्षरे थे और इसे बैंक में पेशकिया गया ,इसलिए धारा 139 की संभावनाओं को ठीक उठाया गया है,जिसे आरोपी नकार नहीं पाया।निचली अदालत व अपीलेट कोर्ट ने आरोपी को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत दोषी पाया है। दोनों कोर्टनेसमान रूप से यही पाया कि आवेदक या आरोपी द्वारा चेक पर हस्ताक्षर किए गए थे।

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