एक प्रत्याशी के दो सीटों से चुनाव लड़ने के प्रावधान के खिलाफ याचिका पर दो हफ्ते बाद सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

Mar 28, 2019

एक प्रत्याशी के दो सीटों से चुनाव लड़ने के प्रावधान के खिलाफ याचिका पर दो हफ्ते बाद सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

एक उम्मीदवार के 2 सीटों से चुनाव लड़ने के प्रावधान को अंसवैधानिक बताने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए सहमत हो गया है। जस्टिस एस. ए. बोबड़े की पीठ ने बुधवार को कहा कि इस मामले में 2 हफ्ते के बाद सुनवाई होगी। दरअसल भाजपा प्रवक्ता व वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा है कि जन प्रतिनिधित्व कानून अधिनियम की धारा-33 (7) के तहत प्रावधान है कि एक उम्मीदवार 2 सीटों से चुनाव लड़ सकता है। वहीं धारा-70 कहती है कि 2 सीटों से चुनाव लड़ने के बाद अगर उम्मीदवार दोनों सीटों पर विजयी रहता है तो उसे 1 सीट से इस्तीफा देना होगा क्योंकि वो 1 सीट ही अपने पास रख सकता है।

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दो बार चुनाव होने से पड़ता है वित्तीय बोझ याचिकाकर्ता ने कहा है कि हर नागरिक का मौलिक अधिकार है कि वो उम्मीदवार का रिकार्ड, योग्यता देखे और फिर मतदान करे। अगर उम्मीदवार दोनों जगह से जीतता है तो उसे 1 सीट छोड़नी होती है और उस सीट पर दोबारा चुनाव होता है। दोबारा उपचुनाव होने से सरकार पर आर्थिक बोझ पड़ता है जो जनता के पैसे का दुरुपयोग है। याचिका में ये भी कहा गया है कि एक आदमी एक वोट की तरह एक उम्मीदवार, एक सीट होना चाहिए और ऐसे में जनप्रतिनिधित्व कानून के उस प्रावधान को गैर संवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए जिसके तहत एक उम्मीदवार को 2 सीटों से चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाती है। याचिका में कहा गया है कि विधानसभा व लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार को भी भाग लेने से हतोत्साहित किया जाना चाहिए। हालांकि चुनाव आयोग के समर्थन करने कि चुनाव के दौरान उम्मीदवार को 2 विधानसभा/संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जानी चाहिए, केंद्र सरकार ने कानून के ऐसे प्रावधान को उचित ठहराया है। जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 क्या कहता है? जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 33 (7), एक व्यक्ति को आम चुनाव या उप-चुनावों में 1 या 2 निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की अनुमति देता है, जबकि अधिनियम की धारा 70, यह निर्दिष्ट करती है कि यदि कोई व्यक्ति संसद के सदन में या राज्य विधानमंडल के सदन में एक से अधिक सीटों पर चुना गया तो वह चुनाव में जीती सीटों में से केवल एक ही रख सकता है।

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चुनाव आयोग ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि उसने वर्ष 2004 और 2016 में सरकार के प्रस्ताव को केवल एक निर्वाचन क्षेत्र से प्रतियोगिता को प्रतिबंधित करने के लिए अधिनियम के प्रावधानों में संशोधन करने का प्रस्ताव दिया था। ईसी के प्रस्ताव को खारिज करते हुए केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि प्रावधान के जरिए उन प्रत्याशियों को उचित संतुलन देने का इरादा था जो 2 निर्वाचन क्षेत्रों और मतदाताओं के अधिकारों में चुनाव लड़ना चाहते हैं। ऐसा प्रावधान राजनीति के साथ-साथ उम्मीदवार के लिए व्यापक विकल्प प्रदान करता है और देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुरूप है। यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता मतदाताओं के साथ बड़े पैमाने पर होने वाले अन्याय को साबित करने में विफल रहा है और अदालत से कानून बनाने के लिए नहीं कह सकता। यह कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार है और अधिनियम की धारा 70 केवल 1 सीट जीतने के बाद 1 निर्वाचन क्षेत्र छोड़ने के लिए पालन की जाने वाली प्रक्रिया को बताती है। केंद्र ने कहा कि चुनावी सुधार के सवाल के लिए सभी राजनीतिक दलों, न्यायविदों और जनता के सदस्यों से परामर्श की आवश्यकता है।

कानून में उपयुक्त संशोधन, जोड़ या हटाना समय-समय पर किया जाएगा। जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से मांगा गया था जवाब पिछले साल अप्रैल में इस जनहित याचिका पर 3 जजों की बेंच ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। 11 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक उम्मीदवार को 2 सीटों से चुनाव लडने पर रोक की मांग वाली याचिका पर अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल से कोर्ट का सहयोग करने के लिए कहा था। सुनवाई में चुनाव आयोग की ओर से पेश अमित शर्मा ने बेंच को बताया था कि चुनाव आयोग ने इस संबंध में पहले साल वर्ष 2004 और फिर दिसंबर 2016 में केंद्र सरकार को सिफारिश भेजी थी और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-33 (7) में संशोधन करने का प्रस्ताव दिया था। उन्होंने कहा कि 2 जगहों से चुनाव लड़ने और दोनों सीट जीतने से उम्मीदवार को 1 सीट छोडनी पडती है और वहां फिर से चुनाव कराने पडते हैं। इससे मैनपावर और अतिरिक्त वित्तीय बोझ पडता है जो सीधे-सीधे मतदाताओं का नुकसान है।

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