हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे अधिकारी जांच में कर दी तीन साल की देरी
हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे अधिकारी जांच में कर दी तीन साल की देरी
आइआइटी मद्रास ने वर्ष 2016 में बता दिया था हैक्सावेलैंट क्रोमियम का स्त्रोत
-उद्योग विहार (जुलाई 2019)- गाजियाबाद।
मेरठ औद्योगिक क्षेत्र के प्लाॅट की दो किलोमीटर परिधि में भूगर्भ जल और मिट्टी की जांच कराने में तीन साल की देरी हुई है। पहले ही यह जांच करा ली गई होती तो अब तक हैक्सावैलेंट क्रोमियम का पूर्ण उपचार संभव हो जाता। भूगर्भ जल के तहरीले होने का खतरा टल जाता। आइआइटी मद्रास ने मार्च 2016 में हैक्सावैलेंट क्रोमियम के स्त्रोत का पता लगा लिया था। बता दिया था कि यूपीएसआइडी के मेरठ रोड औद्योगिक क्षेत्र के एक प्लाॅट के नीचे यह जहरीला केमिकल कंपाउंड बहुत ज्यादा है। यहीं से जहर लोहियानगर के सी-ब्लाॅक तक पहुंचा था। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला प्रशासन और यूपीएसआइडी को इस बारे में अवगत करा दिया गया था। तीन साल से अधिकारी हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे। उपचार के लिए कभी सोचा ही नहीं गया। क्रोमियम युक्त प्लाॅट पर विवाद लंबित होने की बात कहकर अधिकारी जिम्मेदारी से बचते रहे। जबकि, जनहित में विधिक प्रक्रिया अपना कर क्रोमियम को वहां से खत्म करने का प्रयास होना चाहिए था। ऐसा करने के बजाए बढ़ते खतरे को देखे रहे। इस लापरवाही का हश्र है कि लोहियानगर के आसपास पानी को जहरीला करने वाली ‘बीमारी’ जिंदा है। आसपास के इलाकों में ‘बीमारी’ फैलने का खतरा बढ़ गया है। उसे देखते हुए श्रीराम पिस्टंस एंड रिंग्स ने उपचार से पहले जांच कराने की जिम्मेदारी अपने हाथों में ली है।
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सुरक्षा दीवार न होती तो....
यूपीएसआइडीसी औद्योगिक क्षेत्र की तरफ लोहियानगर की सीमा पर 200 बैरिकेडिंग फीड वेल की दीवार बनाई हुई है। प्रत्येक वेल डेढ़ मीटर की दूरी पर 240 फुट गहरे हैं। हर वेल में 3754 लीटर आइआइटी मद्रास का क्रोमियम रिड्यूस बैक्टीरिया डाला गया है। यह बैक्टीरिया हैक्सावैलेंट क्रोमियम को ट्राईवैलेंट क्रोमियम में तब्दील कर देता है। इस रूप में आने के बाद क्रोमियम नीचे बैठ जाता है। ऐसे में क्रोमियम के फैलने से रोका जा रहा है। बैक्टीरिया को जिंदा रखने के लिए हर दस मिनट बाद प्रत्येक वेल में 4000 लीटर पर में घोल कर न्यूट्रीएंट डाला जाता है। बैक्टीरिया का खाना है। इसका सेन करने के बाद बैक्टीरिया उर्जावान बन जाता है। वह बढ़ने लगता है। इसमें जरा-सी चूक खतरनाक हो सकती है। हर सतह पर पानी की नियमित जांच की जाती है। ये दीवार न होती तो भूजल पूरी तरह दूर हो जाता।
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