उत्तरप्रदेश में 15% आबादी वाले क्षत्रिय वोटरों का,2019 में क्या रहेगा रुख.ये रहे सभी लोकसभा के आंकड़े

Mar 23, 2019

उत्तरप्रदेश में 15% आबादी वाले क्षत्रिय वोटरों का,2019 में क्या रहेगा रुख.ये रहे सभी लोकसभा के आंकड़े

उत्तरप्रदेश में कई ऐसी जातियां हैं जो राजनैतिक समीकरण साधने का काम करती हैं.लेकिन हर चुनाव में ठाकुर वोटों की अहमियत जोरो-शोरो से दिखाई देती है। बैसे तो क्षत्रिय वोट को किसी एक पार्टी का नही माना जाता रहा है.लेकिन पिछले 2 दशकों से इस समाज का ज्यादातर झुकाव भाजपा के पक्ष में ही रहा है.हां 2012 में जरूर क्षत्रिय समाज ने सपा को खुलकर वोट दिया था और सपा सत्ता में भी आयी.जिसमे ठाकुर विधायकों की संख्या भी अच्छी खासी थी. लेकिन सत्ता में आने के बाद पार्टी द्वारा क्षत्रिय नेताओ व समाज की उपेक्षा करनी शुरू कर दी.शुरुआत में मंत्रिमंडल गठन में समाजवादी पार्टी ने क्षत्रियों को विशेष महत्व दियो लेकिन 1 वर्ष पश्चात ही समाजवादी पार्टी द्वारा अज्ञात कारणोंवश ,क्षत्रियों को महत्व देना बंद कर दिया और क्षत्रिय मंत्रियों से महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारी को वापस भी ले लिया गया  और इन्ही सब बजह से क्षत्रिय समाज ने फिर सपा से दूरियां बनाली. और 2014 में भाजपा की तरफ रुख कर लिया. 2014 के बाद 2017 के चुनाव में भी क्षत्रिय समाज ने मोदी व भाजपा का खुलकर समर्थन भी दिया.पर 2019 के चुनाव में काफी चीजे बदलती नज़र आ रही हैं.जिसमे 2014 के बाद भाजपा द्वारा क्षत्रिय समाज को अनदेखा किया जाना भी शामिल है.सबसे बड़ी बात ये भी सामने आ रही है कि 2019 के इन चुनाव में भाजपा की तरफ से क्षत्रिय समाज के खाते में काफी कम टिकट ही आने वालीं है. जिसके बाद समाज का रुख क्या होगा ये कहना अभी मुश्किल है.

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आरक्षित सीटों पर क्षत्रिय वोटरों का रोल .

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर क्षत्रियों के महत्व को कभी भी रेखांकित नहीं किया जातो जबकि अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर केवल क्षत्रियों के द्वारा एकतरफा मतदान करने से ही किसी भी राजनीतिक दल को जीत हासिल हो सकती है|अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों पर भाजपा को जब जीत हासिल होती है |तो उस जीत में क्षत्रियों का विशेष योगदान होता हैे अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित , इन लोकसभा सीटों पर ,क्षत्रियों के इस विशेष योगदान को कभी रेखांकित नहीं किया गयो उत्तर प्रदेश में क्षत्रियों के 15% वोट का जिस राजनीतिक दल की तरफ ध्रुवीकरण हो जाता है उस राजनीतिक दल को सत्ता प्राप्ति में आसानी होती हैे|

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क्षत्रिय वोटरों को लुभाने के लिए हर चुनाव में होड़ लगी रहती है। यूपी में क्षत्रिय वोटर करीब 14-15 % प्रतिशत हैं। सबसे खास बात इनकी ये है इनकी पकड़ प्रदेश के हर जिले में हैं चाहें वो पूर्वांचल हो या पश्चिमी उत्तरप्रदेश. हर जिले में ठाकुर वोटरों की संख्या अच्छी खासी हैव ज्यादातर जिलों में निर्णायक भी . हमेशा से ही इस 15% क्षत्रिय समाज के वोटरों का समर्थन हर राजनीतिक दलों के लिए ख़ास रहा है। इस संख्या का अनुभव आप हर लोकसभा या जिले स्तर पर भी देख सकते है.हर पार्टी छुपकर या खुलकर इनके वोटो के लिए अपने अपने पैंतरे बिछाती रहती है.2017 की हार के बाद 2018 मे समाजबादी पार्टी की तरफ से लखनऊ में महाराणा प्रताप जयंती के आयोजन जोरों शोरो से किया गया था.जिसमे सभी समाजबादी के क्षत्रिय नेता व खुद अखिलेश यादव बतौर मुख्यातिथि थे.ये अखिलेश यादव का अपना पैंतरा था जिससे ठाकुर वोट सपा से जुड़ सकें.और 2012 जैसा समर्थन ये समाज दोवारा सपा को दे सके.समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अगर राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया होता|और क्षत्रियों की राजनीतिक उपेक्षा ना की होती तो 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को इतना बड़ा नुकसान ना उठाना पड़तो मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्षत्रियों के वोटों की निर्णायक भूमिका को समझते थे इसीलिए 2012 के विधानसभा चुनाव में क्षत्रियों को अधिक सीटें दी गई थीे उत्तर प्रदेश की 160 विधानसभा सीटों और 32 लोकसभा सीटों पर क्षत्रिय आबादी निर्णायक भूमिका में है| जो भी राजनीतिक दल क्षत्रिय वोटों को अपने पक्ष में ध्रुवीकृत कर लेगा चुनावी जीत में उसका पलड़ा भारी होगो |

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● आइये जाने लोकसभा के हिसाब से क्षत्रिय वोटरों का प्रतिशत .
सहारनपुर- 1.50 लाख
कैराना- 1.20 लाख
मुजफ्फरनगर- 1.50 लाख
बिजनोर- 80 हजार
बागपत- 1.10 लाख
मेरठ- 1.20 लाख
अमरोहा- 1.50 लाख
गाज़ियाबाद- 2 लाख
गौतमबुद्धनगर- 4.50 लाख
बुलंदशहर- 2 लाख
अलीगढ़- 2.50 लाख
हाथरस- 2.80 लाख
मथुरा- 3 लाख
आगरा- 2.70 लाख
फतेहपुर सीकरी- 3.50 लाख
फिरोजाबाद- 2.50 लाख
एटा- 2.50 लाख
फर्रुखाबाद- 2.60 लाख
मैनपुरी- 3 लाख
कन्नौज- 2.20 लाख
इटावा- 2.50 लाख
नगीना- 2.20 लाख
मुरादाबाद- 2.40 लाख
संभल- 2.25 लाख
रामपुर- 80 हजार
बदायूं- 2 लाख
आंवला- 3 लाख
बरेली- 1.20 लाख
पीलीभीत- 1 लाख
शाहजहांपुर- 2.60 लाख
हरदोई- 2.50 लाख
मिश्रिख- 2.20 लाख
लखीमपुर खीरी- 1.75 लाख
धौरहरा- 3 लाख
सीतापुर- 1.75 लाख
मोहनलालगंज- 2.60 लाख
बाराबंकी- 2.50 लाख
लखनऊ- 1.60 लाख
उन्नाव- 4 लाख
कानपुर- 1 लाख
अकबरपुर(कानपुर देहात)- 3.40 लाख
जालौन- 3 लाख
झाँसी- 2.10 लाख
हमीरपुर- 2.80 लाख
बांदा- 2.20 लाख
फतेहपुर- 2.90 लाख
राय बरेली- 3.50 लाख
अमेठी- 3 लाख
फैजाबाद- 3 लाख
बहराइच- 2 लाख
कैसरगंज- 3.40 लाख
गोंडा- 3.50 लाख
श्रावस्ती- 2.50 लाख
बस्ती- 3.20 लाख
डुमरियागंज- 3 लाख
संतकबीरनगर- 2.80 लाख
महाराजगंज- 3.20 लाख
गोरखपुर- 2.50 लाख
बांसगांव- 3.50 लाख
कुशीनगर- 1.70 लाख
देवरिया- 2 लाख
सलेमपुर- 3.10 लाख
बलिया- 3 लाख
घोसी- 3.50 लाख
गाजीपुर- 3.25 लाख
चंदौली- 4 लाख
सोनभद्र- 1.60 लाख
मिर्जापुर- 2.40 लाख
वाराणसी- 1.80 लाख
आजमगढ़- 2.10 लाख
लालगंज- 2 लाख
अकबरपुर(अम्बेडकरनगर)- 1.80 लाख
सुल्तानपुर- 3.20 लाख
जौनपुर- 3.50 लाख
मछलीशहर- 2.80 लाख
भदोही- 2.50 लाख
फूलपुर- 1.50 लाख
इलाहाबाद- 1.80 लाख
कौशांबी- 2 लाख
प्रतापगढ़- 3.50 लाख

वर्तमान में उत्तरप्रदेश में करीब 14 सांसद व 58 विधायक राजपूत समाज से हैं.

क्षत्रिय समाज की संख्या भले ही 15% हो पर ये समाज व इनके नेता अभी भी मीडिया मैनेजमेंट में पीछे है. तभी तो विरोधी पक्ष पैड मीडिया द्वारा इनके जातिगत आंकड़े हमेशा ही कम दिखाकर इनका मनोबल गिराने का काम करते आये हैं.

*लेकिन अब जमीनी जागरूकता व सोशल मीडिया के उपयोग द्वारा सच्चाई बाहर आने लगी है. पश्चिमी उत्तरप्रदेश की स्थिति को पूर्वांचल का वोटर जानता है. और पश्चिमी उत्तरप्रदेस के आंकड़ पूर्वांचल का वोटर .जिससे मीडिया व विरोधी द्वारा फैलाने वाले झूंठे आकड़ो के प्रोपगैंडा को अब समाज नकारने लगा है.. विरोधी पक्ष व पैड मिडिया ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कुछ आंकड़े ऐसे पेश किए जिससे इन झूंठे न्यूज संस्थानों की पोल सबके सामने खुल गयी . ऐसा ही एक किस्सा एटा लोकसभा की अलीगंज विधानसभा सीट का था जंहा ठाकुर सबसे बाहुल्य सीट है. और वर्तमान बिधायक भी ठाकुर जाति से हैं. लेकिन विपक्ष द्वारा चली चाल से एक नामीग्रामी अखबार ने इस विधानसभा पर 60 हज़ार ठाकुर वोटरों को सिर्फ 10 हज़ार दिखाया. ऐसे ही कारनामे बड़े बड़े पैड चैनल समय समय पर करते रहते हैं जो क्षत्रिय समाज के वोटरों की संख्या कभी 12% कभी 10% तो कई बार 8% तक बताते रहते हैं..लेकिन अब समाज अपने जातिगत आंकड़े जिले स्तर पर इकठ्ठे करने में सक्षम है जिससे झूंठे प्रोपगैंडा की पोल खुलती जा रही है.और इसे हर राजनीतिक पार्टी बखूवी समझती है

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