दावे और हकीकत

Jul 08, 2019

दावे और हकीकत

वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को अमल में आए दो साल पूरे चुके हैं। लेकिन जीएसटी को लेकर इन दो सालों में उद्योग जगत और कारोबार के किसी भी हिस्से से कोई ऐसी संतोषजनक प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली, जिससे इसकी सफलता और स्वीकार्यता का संकेत मिलता। शुरूआत में कर की दरों के जो वर्ग बनाए गए, वे इतने ज्यादा अतार्किक थे कि लग ही नहीं रहा था कि यह कोई अच्छी कर व्यवस्था का रूप लेगी। इसकी आड़ में कर संग्रह के नाम पर सरकारी खजाना भरता गया। इसीलिए अभी तक जीएसटी को एक जबरन थोपी हुई कर व्यवस्था के रूप में ही देखा जा रहा है। छोटे और मझोले कारोबारियों को तो इस नई कर व्यवस्था की वजह से सबसे ज्यादा पीड़ा झेलनी पड़ी है। ऐसे उद्योग-धंधों की संख्या कोई मामूली नहीं है जिनकी जीएसटी ने कमर तोड़ कर रख दी। कारोबार ठप पड़ गए। इन सबके मूल में सबसे बड़ा और पहला कारण जीएसटी की जटिलता और इसे लागू करने में जल्दबाजी माना जाता रहा है। आर्थिक और कर विशेषज्ञ तक इसकी खामियों और लागू करने के तरीके को लेकर सवाल उठाते रहे। एक देश, एक कर-व्यवस्था की अवधारणा अच्छी जरूर है, लेकिन इसमें जो झोल रह गए हैं और जिस आधी-अधूरी तैयारी से इसे लागू किया गया, उसका नतीजा अब सरकार के गिरते राजस्व संग्रह लक्ष्यों के रूप में सामने आ रहा है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने बताया है कि इस बार जून में जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ तक भी नहीं पहुंच पाया। अर्थव्यवस्था के लिए यह चिंताजनक है।

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सरकार खुद मान रही है कि जीएसटी वसूली उम्मीदों के मुताबिक नहीं रही। पिछले दो साल के आंकड़े जीएसटी संग्रह की हकीकत को बयान करने के लिए काफी हैं। दो साल यानी चौबीस महीनों में सिर्फ छह महीने ऐसे रहे जब जीएसटी संग्रह का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रहा। जबकि नई कर व्यवस्था लागू करते वक्त दावा यह किया गया था कि इससे कर संग्रह तेजी से बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा। उलटे निराशाजनक तस्वीर ही सामने आ रही है। जीएसटी में कर चोरी रोकने के लिए पुख्ता व्यवस्था का अभाव साफ नजर आ रहा है। कारोबारियों द्वारा फर्जी बिल दाखिल करने के मामले सामने आते रहे हैं। सरकार भी इस बात को मान रही है। इसीलिए केंद्र और राज्यों को मिल कर जीएसटी की चोरी करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है। दूसरी महत्त्वपूर्ण बात इसके अमल को लेकर है। कारोबारी अभी तक रिटर्न फाइल करने से बच रहे हैं। सरकारी अमले को भी जिस तेजी से इस दिशा में बढ़ना चाहिए था, उसकी सुस्त रफ्तातर भी कर संग्रह के लक्ष्य को पूरा करने में बड़ी बाधा साबित हुई है। जीएसटी को सरल और तर्कसंगत बनाने की दिशा में समयस मय पर सरकार ने कदम उठाए हैं। सबसे बड़ा परिवर्तन कर की दरों में बदलाव करके किया है। अभी जीएसटी की चार दरें हैं- पांच, बारह, अठारह और अट्ठाईस फीसद। ज्यादातर उपभोक्ता वस्तुएं बारह और अठारह फीसद वाले वर्ग में आ चुकी हैं। अट्ठाईस फीसद वाले वर्ग में बहुत ही कम वस्तुएं रह गई हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि दरें घटाने से पिछले दो साल में नब्बे हजार करोड़ रुपए का राजस्व नुकसान हुआ है।

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