प्रदूषण की हवा-सत्येन्द्र सिंह-Satendra Singh
प्रदूषण की हवा
दिल्ली और आसपास के राज्यों की हवा फिर से जिस स्तर पर प्रदूषित हो गई है, वह चिंताजनक है। हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और चंडीगढ़ तक इस वायु प्रदूषण की जद में हैं। राजस्थान और बलूचिस्तान की ओर से जो गरम और धूल भरी हवाएं उठीं हैं, उससे आसमान में धूल की चादर बन गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी प्रदूषण के इस स्तर को बेहद खतरनाक बताया है। इससे हालात की गंभीरता का पता चलता है। मौसम वैज्ञानिकों ने धूल की चादर बनने की वजह पश्चिमी विक्षोभ बताई है। फिलहाल हालत यह हो गई है कि हवा में नमी नहीं होने की वजह से धूल का असर कई दिनों तक बना रहने का खतरा बन गया है। जिस हवा में लोग सांस ले रहे हैं उसमें धूल के खतरनाक कण भी अंदर जा रहे हैं। पिछले कुछ सालों के दौरान पश्चिमी विक्षोभ की वजह से मौसम में अचानक बदलाव और उसके दुष्प्रभाव देखने को मिले हैं। बेमौसम की बारिश, आंधी-तूफान, चक्रवात को इसी की देन कहा जा सकता है। पिछले महीने उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में आंधी-तूफान ने जो तबाही मचाई थी, उसका कारण भी पश्चिमी विक्षोभ ही माना गया था। दिल्ली पहले ही दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में शुमार है।
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ऐसे में हवा में धूल की मात्रा बढ़ जाने से इससे पैदा होने वाला जोखिम कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है। दिल्ली, इसके आसापास के इलाके और पड़ोसी राज्य लंबे समय से वायु प्रदूषण की मार झेल रहे हैं। धूल की परत की वजह से दस मिलीमीटर से कम मोटाई वाले कणों की मौजूदगी का स्तर खतरे के मानक से कई गुना ज्यादा बढ़ गया है। ये कण सीधे सांस से भीतर जाते हैं और गंभीर रोगों का कारण बनते हैं। कुल मिला कर हालत यह है जैसे लोग किसी गैस चैंबर में रह रहे हों। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी इस बात की तसदीक की है कि राजस्थान से जो धूल भरी आंधी उठी है, उससे हवा एकदम खराब हो गई है और उसमें मोटे कणों की मात्रा बढ़ गई है। हवा से धूल के ये कण लगातार फैल रहे हैं।
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इससे वातावरण में घुटन-सी पैदा हो गई है। ऐसे हालात अभी कुछ दिन बने रह सकते हैं। इसीलिए बोर्ड ने यह चेतावनी जारी की है कि लोग तीन-चार घंटे से ज्यादा बाहर न निकलें और खुले में कम से कम आवाजाही करें। केंद्रीय नियंत्रण प्रदूषण बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि इस साल मार्च से मई के बीच राजधानी और इसके आसपास की हवा बहुत खराब रही है। यह चिंताजनक बात है। लेकिन खतरे की ऐसी घंटी तो बार-बार बजती रही है। सवाल है कि क्या इससे अभी तक कोई सबक लिया गया है। न तो नागरिक चौकस हुए हैं, न ही सरकारों ने अपनी जिम्मेदारियों को निभा पाने में संजीदगी दिखाई है। हवा खराब न हो, इसके लिए शायद ही कोई ठोस कदम उठाए गए हों। पिछले साल सर्दी में राजधानी में जब प्रदूषण खतरे के सारे पैमानों को लांघता हुआ जान पर बन आया था और इमर्जेंसी जैसे हालात घोषित करने पड़े थे, तब लगा था कि अब तो लोगों और सरकारों की आंख खुलेगी। लेकिन लगता है कि किसी ने भी उस चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया। अदालती आदेशों के बावजूद निर्माण गतिविधियों और खुले में कचरा जलाने पर रोक नहीं लग पाई है। दिल्ली में पहाड़ जैसे खड़े कूड़ाघर जहरीली हवा फैला रहे हैं।
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