हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
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देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (12 जून, 2023 से 16 जून, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र। केवल हायपर टेक्निकल कारणों से निर्माण करने वाले मजदूरों को पेंशन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि निर्माण श्रमिकों को केवल हायपर टेक्निकल कारणों या मूल एमआर पर्ची या नोटरी रिकॉर्ड की क्रम संख्या के उत्पादन जैसी आवश्यकताओं के कारण पेंशन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने यह देखते हुए कि बड़ी संख्या में निर्माण श्रमिक या तो निरक्षर हैं या अर्ध-निरक्षर हैं और ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं, कहा कि उनके पेंशन लाभ आवेदन को बिना किसी देरी के संसाधित किया जाना चाहिए। केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को बार काउंसिल ऑफ केरल को नामांकन के इच्छुक लॉ ग्रेजुएट से एनरोलमेंट फीस के रूप में केवल 750/- रुपये लेने का निर्देश दिया, जबकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार समान फीस संरचना पर विचार करती है। चीफ जस्टिस एस वी एन भट्टी और जस्टिस बसंत बालाजी की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के एनरोलमेंट फीस को 750 रुपये तक सीमित करने के आदेश के खिलाफ बार काउंसिल ऑफ केरला द्वारा दायर अपील में यह आदेश पारित किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद के सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज (SHUATS) के वीसी डॉ राजेंद्र बिहारी लाल और सात अन्य लोगों को उनके खिलाफ एक आदमी को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए लालच देने की पेशकश करने के आरोप में दर्ज एफआईआर में किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया। जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस गजेंद्र कुमार की बेंच ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून, 2021 की धारा 3 और 5 प्रथम दृष्टया स्पष्ट रूप से असंवैधानिक या पूर्व दृष्टया असंवैधानिक प्रतीत नहीं होती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि स्पेशल पॉक्सो अदालत सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत दायर एक आवेदन को सीआरपीसी की धारा 190 (1) (ए) के तहत एक शिकायत मामले के रूप में मान सकती है। अदालत The Protection Of Children From Sexual Offences Act 2012 (प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012) लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 (POCSO) के तहत एक मामले पर सुनवाई कर रही थी। जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि जहां नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) अस्थायी निषेधाज्ञा लागू करने में पुलिस सहायता के लिए स्पष्ट रूप से प्रावधान नहीं करती है, वहीं संहिता की धारा 151 सिविल कोर्ट को न्याय सुनिश्चित करने और कोर्ट की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए निहित शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति देती है। जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने कहा, यह प्रावधान अदालत को यह अधिकार देता है कि वह संहिता के आदेश XXXIX नियम 1 और 2 के तहत जारी किए गए अपने आदेशों की अवज्ञा या उल्लंघन होने पर पुलिस को आवश्यक सहायता प्रदान करने का निर्देश दे और इस प्रकार, यह अदालत को अपने आदेशों की अखंडता बनाए रखने और अस्थायी निषेधाज्ञा का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने में सक्षम बनाता है। केरल हाईकोर्ट ने कानून की इस स्थिति को दोहराया कि डिफ़ॉल्ट जमानत / वैधानिक जमानत देते समय मजिस्ट्रेट कैश सिक्योरिटी जमा करने की कोई अन्य शर्त नहीं लगा सकते। जस्टिस राजा विजयराघवन वी की एकल पीठ ने सरवनन बनाम राज्य, सब इंस्पेक्टर पुलिस द्वारा प्रतिनिधित्व मामले में शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत / वैधानिक जमानत देते समय नकद राशि जमा करने की शर्त नहीं लगाई जा सकती। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सोमवार को रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (रेरा) द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसने रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 की धारा 4 के तहत एक परियोजना के पंजीकरण के लिए एक आवेदन को खारिज कर दिया था, जिस पर ठीक से मुहर नहीं लगाई गई थी। जस्टिस विवेक रूसिया की एकल न्यायाधीश की पीठ ने पाया कि यदि रेरा इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि प्रश्न में समझौते पर विधिवत मुहर नहीं लगाई गई है, तो यह उसके लिए आवश्यक था कि वह दस्तावेज को पंजीकरण के लिए खारिज करने के बजाय जब्त करने के लिए रजिस्ट्रार ऑफ स्टैम्प्स को संदर्भित करने के लिए आवेदन को संदर्भित करे। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि एक महिला को पीएमएलए की धारा 45(1) के प्रावधान के तहत जमानत पर रिहा होने के लिए उनकी शिक्षा, व्यवसाय या सामाजिक स्थिति के आधार पर वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा, "पीएमएलए एक महिला को परिभाषित नहीं करता है। न तो भारत के संविधान का इरादा है और न ही पीएमएलए का इरादा महिलाओं को उनकी शिक्षा और व्यवसाय, सामाजिक स्थिति, समाज के संपर्क आदि के आधार पर वर्गीकृत करना है।" बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि सरपंच को उसके चुनाव से पहले उसके द्वारा किए गए पंचायत कार्य के लिए उसके पति को भुगतान करने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, हाल ही में अयोग्य महिला की पंचायत सदस्यता और सरपंच पद को बहाल कर दिया। जस्टिस अरुण पेडनेकर ने कहा कि महाराष्ट्र ग्राम पंचायत एक्ट, 1958 की धारा 14(1)(जी) के तहत अयोग्यता केवल एक सदस्य द्वारा की जाती है, जब निर्वाचित सदस्य के रूप में उसके कार्यकाल के दौरान अनुबंध प्रदान या बढ़ाया जाता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि पार्टियों के बीच मध्यस्थता के लिए मंच के चयन के संबंध में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED एक्ट) की धारा 18 (3) के तहत फैसिलिटेशन काउंसिल को दिया गया विवेक पूर्ण है और किसी भी अन्य कानून पर ओवरराइडिंग प्रभाव रखता है। कोर्ट ने कहा, उक्त विवेक के प्रयोग में, धारा 80 में निहित निषेध सहित मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C एक्ट) के प्रावधानों का कोई आवेदन नहीं होगा। इसलिए, अदालत ने कहा कि MSMED अधिनियम की धारा 18(2) के तहत परिषद द्वारा की गई सुलह की कार्यवाही विफल होने की स्थिति में, परिषद स्वयं पक्षों के बीच विवाद की मध्यस्थता के लिए आगे बढ़ सकती है। जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि बैंक द्वारा SARFAESI एक्ट की धारा 13 (2) के तहत उधारकर्ता को अपनी देनदारियों को पूरा करने के लिए नोटिस भेजना, एक आधिकारिक कार्य है, इस धारणा के साथ कि यह नियमित रूप से किया गया था। साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 (ई) एक धारणा स्थापित करती है कि न्यायिक और आधिकारिक कार्य नियमित रूप से किए जाते हैं और SARFAESI एक्ट के संदर्भ में, एक बैंक द्वारा एक उधारकर्ता को नोटिस भेजना आधिकारिक कृत्यों की इस श्रेणी के अंतर्गत आता है। मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ में जस्टिस अतुल श्रीधन जस्टिस मोहन लाल शामिल थे। केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कानून लिव इन रिलेशनशिप को शादी के रूप में मान्यता नहीं देता। इसलिए इस तरह के रिश्ते को तलाक के उद्देश्य से भी मान्यता नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि कानून केवल पक्षकारों को तलाक देने की अनुमति देता है यदि वे व्यक्तिगत कानून या धर्मनिरपेक्ष कानून के अनुसार विवाह के मान्यता प्राप्त रूप में विवाहित हैं। अदालत ने कहा कि अब तक अनुबंध के माध्यम से पक्षों के बीच किए गए विवाह को तलाक के उद्देश्य से कानून के तहत कोई मान्यता नहीं है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई के लिए आगे बढ़ने के लिए शिकायतकर्ता या अभियोजन एजेंसी को प्रथम दृष्टया ऐसी सामग्री दिखानी होगी, जिससे किसी व्यक्ति के साथ कथित अपराध के लिए कुछ सांठगांठ स्थापित की जा सके। यदि ऐसी सामग्री उपलब्ध नहीं है तो ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज करना निश्चित रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित नागरिक के अधिकार को प्रभावित करने वाली कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। कर्नाटक हाईकोर्ट ने निचली अदालत के समक्ष मौत की सजा की मांग करते समय और अपीलीय अदालत में सजा की पुष्टि के दौरान अभियोजन पक्ष के लिए दिशानिर्देश जारी किए। जस्टिस सूरज गोविंदराज और जस्टिस जी बसवराज की खंडपीठ ने अपनी पत्नी, भाभी और 10 साल से कम उम्र के तीन बच्चों की हत्या के आरोपी बाइलुरु थिप्पैया (43) की दोषसिद्धि और मौत की सजा को बरकरार रखते हुए दिशा-निर्देश जारी किए। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 की धारा 36-ए (4) के अनुसार जांच की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए 180 दिनों की वैधानिक अवधि बढ़ाने के लिए इस संबंध में लोक अभियोजक की रिपोर्ट द्वारा अनिवार्य रूप से दायर की जानी चाहिए। जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की बेंच ने यह टिप्पणी की " ...यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 36-ए के तहत जांच की समय अवधि को यांत्रिक रूप से नहीं बढ़ाया जा सकता। जहां तक जांच एजेंसी के लिए समय बढ़ाने का विकल्प नहीं छोड़ा गया है, विधायी मंशा काफी स्पष्ट है। प्रासंगिक प्रावधान स्पष्ट रूप से प्रदान करते हैं कि न्यायालय समय सीमा का विस्तार दे सकता है लेकिन केवल लोक अभियोजक की एक रिपोर्ट पर।" दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पुनरीक्षण अदालत सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पारित अंतरिम भरणपोषण आदेश पर रोक लगाने पर विचार करते हुए, मामले की परिस्थितियों के तथ्यों की अनदेखी करके पूरी भरणपोषण राशि जमा करने का सामान्य निर्देश नहीं दे सकती है। जस्टिस गिरीश कठपालिया की अवकाश पीठ ने कहा, "सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही में पारित एक अंतरिम भरणपोषण आदेश की पुनरीक्षण जांच करते समय, पुनरीक्षण न्यायालय एक अन्य कारण से, आक्षेपित अंतरिम भरणपोषण आदेश के संचालन पर रोक लगाने के लिए मामले की समग्र परिस्थितियों की अनदेखी करते हुए पूर्व-शर्त के रूप में इस तरह के सामान्य राइडर नहीं लगा सकता, भरणपोषण की पूरी राशि जमा की जाए।" दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि पहचान का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का एक स्वाभाविक हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि एक व्यक्ति को यह अनुमति है कि वह अपने सरनेम को बदल ले ताकि वह किस विशेष जाति के साथ न पहचाना जा सके, जो उसके लिए पूर्वाग्रह का कारण हो सकती है। कोर्ट ने कहा इस बदलाव से आरक्षण या अन्य कोई कोई लाभ प्राप्त नहीं होगा, जो अपनाई गई जाति/उपनाम के लिए उपलब्ध हो सकता है। जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर सहकारी समिति पंजीकरण अधिनियम की धारा 70 उन पक्षों के बीच विवादों को हल करने के लिए एक आंतरिक तंत्र के रूप में कार्य करती है, जिनके बीच विवाद उत्पन्न होने से पहले ही एक दूसरे के साथ कानूनी संबंध हैं। यह उन व्यक्तियों पर लागू नहीं किया जा सकता है, जिनका समाज के मामलों में शामिल व्यक्तियों के साथ कोई 'पूर्व कानूनी संबंध' नहीं है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत याचिका दायर करने के लिए हाईकोर्ट या निचली अदालत में से किसी एक को चुनने के आवेदक के विवेक को सीआरपीसी की धारा 438 को संकीर्ण रूप से परिभाषित करके प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। जस्टिस चंद्र धारी सिंह की एक अवकाश पीठ ने प्रावधान का विश्लेषण करते हुए कहा कि अग्रिम जमानत मांगने के लिए सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर कोई रोक नहीं है और ऐसे मामलों से निपटने के लिए दोनों अदालतों का समवर्ती अधिकार क्षेत्र है।