हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Aug 21, 2023
Source: https://hindi.livelaw.in/

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (14 जुलाई, 2023 से 18 अगस्त, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के पास विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 27 के तहत दायर तलाक की याचिकाओं को सुनने और निस्तारित करने का अधिकार क्षेत्र है। जस्टिस आर रघुनंदन राव ने कहा कि एपी सिविल कोर्ट अधिनियम की धारा 11(2) जिला न्यायाधीश को मामलों को अतिरिक्त जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित करने का अधिकार देती है, जिससे उपरोक्त अवलोकन मजबूत होता है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को आईडीबीआई बैंक के ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर (याचिकाकर्ता) के खिलाफ कर्मचारी/विरोधी पक्ष संख्या 2 की ओर से शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। एक महिला सहकर्मी ने उसके खिलाफ कार्यस्‍थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज की थी। जस्टिस अजॉय कुमार मुखर्जी की एकल पीठ ने यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता को विपरीत पक्ष के स्थानांतरण के मामले में आपराधिक धमकी या आपराधिक साजिश के अपराधों का दोषी नहीं माना जा सकता है। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि जब कोई नाबालिग सहमति से बने यौन संबंध से उत्पन्न गर्भावस्था को समाप्त करना चाहती है तो पंजीकृत चिकित्सक पोक्सो कानून की धारा 19 के तहत रिपोर्ट तैयार करने के लिए नाबालिग के नाम का खुलासा करने पर जोर नहीं दे सकता है। कोर्ट ने माना कि कभी-कभी नाबालिग और उनके अभिभावक मामले को आगे बढ़ाने में और खुद को कानूनी प्रक्रिया में उलझाने में रुचि नहीं रखते, ऐसे मामलों में नाबालिग के नाम का खुलासा किए बिना गर्भावस्था की समाप्ति की जा सकती है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि एक लड़की के विकास के चरण के दौरान दादी या चाची मां का विकल्प नहीं हो सकती हैं, हाल ही में कहा है कि युवावस्था की उम्र प्राप्त करने वाली लड़की की कस्टडी का निर्णय करते समय उसके पिता की तुलना में उसकी मां को प्राथमिकता दी जाती है। जस्टिस शर्मिला यू देशमुख की पीठ ने तलाक के एक मामले में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें 8 वर्षीय लड़की की अंतरिम कस्टडी उसकी मां, जो एक डॉक्टर भी है, को सौंप दी है और पिता को बच्ची से मुलाक़ात करने का अधिकार दिया गया है। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब दोषसिद्धि के आदेश के बाद पीठ की संरचना बदल जाती है तो नई सुनवाई की आवश्यकता नहीं होती है, खासकर जब पक्षकारों पर कोई पूर्वाग्रह नहीं होता। जस्टिस लिसा गिल और जस्टिस अर्चना पुरी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि पीठ से एक न्यायाधीश की सेवानिवृत्ति पूर्व निर्णय को अमान्य नहीं करती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल (प्रक्रिया) नियम, 1989 के साथ पठित रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल एक्ट, 1987 के तहत कार्यवाही पर लागू होती है। जस्टिस अजय भनोट की पीठ रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के समक्ष दायर दावा आवेदन से उत्पन्न अपील पर फैसला सुना रही थी, जिसे गैर-अभियोजन पक्ष के कारण डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज कर दिया गया। इसके बाद दावेदार ने दावा आवेदन की बहाली के लिए आवेदन दायर किया, लेकिन उसे समय बाधित होने के कारण खारिज कर दिया गया। जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि श्रम न्यायालय की ओर से पारित अवॉर्ड की वैधता या शुद्धता को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चुनौती नहीं दी जा सकती है। औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत अवॉर्ड पारित करते समय श्रम न्यायालय एक सिविल न्यायालय की शक्तियों को ग्रहण करता है। सिविल कोर्ट के किसी भी आदेश को भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत, पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का उपयोग करके, हाईकोर्ट के समक्ष ही चुनौती दी जा सकती है। जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि बीमा एजेंटों को ग्राहकों और बीमा कंपनियों के बीच मध्यस्थ के रूप में बीमा आवेदनों को पूरा करने में मदद करते हुए ग्राहकों को सावधानीपूर्वक सहायता करने की जरूरत होती है। जस्टिस ताशी रबस्तान और जस्टिस वसीम सादिक नरगल की खंडपीठ ने इस प्रकार हाइड्रोलिक एक्सकेवेटर के मालिक को राहत दी, जिसका बीमा दावा बीमा पॉलिसी में गलत चेसिस नंबर दर्ज करने के कारण अस्वीकार कर दिया गया था, यह स्पष्ट करते हुए कि ऐसे नंबरों को सत्यापित करना बीमाकृत पक्ष का नहीं, बल्‍कि बीमा एजेंट की जिम्‍मेदारी है। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने देखते हुए कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 तब लागू नहीं होता जब समान लिंग के लोग एक साथ रहने का फैसला करते हैं, गुरुवार को सैम सेक्स वाले लिव-इन जोड़े को पुलिस सुरक्षा दी। जस्टिस अनूप चितकारा की पीठ ने यह आदेश एक प्रमुख समलैंगिक जोड़े द्वारा दायर सुरक्षा याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जो पिछले चार वर्षों से लिव-इन रिलेशनशिप में एक साथ रह रहे हैं। कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा, "छह साल तक सहमति से किए गए यौन संबंधों के बाद अंतरंगता खत्म होने का मतलब यह नहीं हो सकता कि यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 [बलात्कार] के तहत अपराध में आएगा।" जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस प्रकार महिला द्वारा अपने लिव-इन पार्टनर के खिलाफ दर्ज बलात्कार का मामला रद्द कर दिया, जिससे उसने फेसबुक पर दोस्ती की थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा मानसिक क्रूरता के आधार पर पति को तलाक देने की फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि अवैध संबंध के झूठे आरोप "अंतिम प्रकार की क्रूरता" हैं। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा, "अवैध संबंध के झूठे आरोप चरम प्रकार की क्रूरता हैं, क्योंकि यह पति-पत्नी के बीच विश्वास के पूरी तरह से टूटने को दर्शाता है, जिसके बिना कोई भी वैवाहिक रिश्ता टिक नहीं सकता।" कर्नाटक हाईकोर्ट ने नोवा मेडिकल सेंटर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर मुकदमे को इस आधार पर खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया कि विवाद आर्बिट्रेशन योग्य है। कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार के संबंध में आपत्ति उठाने में विफल रहा है। जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "यह कानून का सुस्थापित सिद्धांत है कि आर्बिट्रेशन क्लॉज के आधार पर मुकदमे पर विचार करने की आपत्ति पहली उपस्थिति में अदालत के समक्ष उठाई जानी है, बाद में नहीं।" छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा कि जब एक पत्नी विभिन्न मंचों पर यह आरोप लगाती है कि उसके पति का अपनी मां के साथ अवैध संबंध है, तो यह निश्चित रूप से मानसिक क्रूरता का कारण होगा। ज‌स्टिस गौतम भादुड़ी और ज‌स्टिस संजय एस अग्रवाल की पीठ ने कहा कि जब पत्नी द्वारा अपने पति के खिलाफ ऐसा आरोप लगाया जाता है, तो पति की मां का भी चरित्र हनन होता है और इससे पति और पत्नी का एक दूसरे की नज़रों में प्रतिष्ठा और मूल्य नष्ट हो जाता है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि यदि पति अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करने के बजाय अत्यधिक शराब पीने की आदत में शामिल हो जाता है और इससे पारिवारिक स्थिति खराब हो जाती है, तो यह स्वाभाविक रूप से पत्नी और बच्चों सहित पूरे परिवार के लिए मानसिक क्रूरता का कारण बनेगा। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की पीठ ने यह भी कहा कि यदि बच्चे विवाह से पैदा हुए हैं, तो एक पुरुष, पिता होने के नाते, अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकता, खासकर जब पत्नी एक कामकाजी महिला न हो। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में वन रक्षक पद के लिए भर्ती पात्रता के उस मानदंड को 'मनमाना', 'अपमानजनक' और 'महिला की गरिमा का अपमान' करार दिया है, जिसमें महिला उम्मीदवारों से छाती माप परीक्षण से गुजरने की उम्मीद की जाती है। जस्टिस दिनेश मेहता की पीठ ने यह कहते हुए कि किसी महिला की छाती का आकार उसकी ताकत निर्धारित करने के प्रयोजनों के लिए अप्रासंगिक है, जोर देकर कहा कि छाती माप का मानदंड न केवल "वैज्ञानिक रूप से निराधार" प्रतीत होता है, बल्कि "अशोभनीय" भी है। जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम, 2005 के तहत ‘‘अस्थायी निवास’’ शब्द की व्याख्या को स्पष्ट करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि ‘‘अस्थायी निवास’’ उन स्थितियों को शामिल करता है जहां एक व्यक्ति को घरेलू हिंसा (या जहां उन्हें अपने वैवाहिक घर से बाहर निकाला गया हो) के कारण आश्रय/शरण लेने के लिए मजबूर किया जाता है। जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा, ‘‘घरेलू हिंसा अधिनियम,2005 के तहत परिकल्पित ‘‘अस्थायी निवास’’ एक ऐसा निवास हो सकता है जिसमें एक पीड़ित व्यक्ति को उसके साथ हुई घरेलू हिंसा के मद्देनजर(या जहां उन्हें अपने वैवाहिक घर से बाहर निकाला गया हो या वैवाहिक घर छोड़ना पड़ा हो) आश्रय लेने के लिए मजबूर किया जाता है या नौकरी लेने या कुछ व्यवसाय करने के लिए मजबूर किया जाता है।’’ कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि वादी की पत्नी, उसे जारी की गई पावर ऑफ अटॉर्नी के अभाव में भी एक सिविल मुकदमे में मूल वादी की ओर से गवाही देने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम है। धारवाड़ में बैठे जस्टिस वी श्रीशानंद की एकल न्यायाधीश पीठ ने हाल ही में शशिकला और अन्य द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलट दिया था, जिसमें लक्ष्मण यदु कदम द्वारा दायर मुकदमे को खारिज कर दिया गया था, जिसमें विवादित संपत्ति पर अधिकार और प्रतिवादियों को वादी के वास्तविक कब्जे और वैध अधिकार को परेशान करने से रोकने के लिए घोषणा की मांग की गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता के निजी अंगों पर चोटों का न होना यह मानने का आधार नहीं हो सकता कि पॉक्सो एक्ट के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट नहीं हुआ। जस्टिस अमित बंसल ने जून 2017 में साढ़े चार साल की बच्ची से बलात्कार करने के लिए व्यक्ति की सजा को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने पाया कि वह व्यक्ति, जो नाबालिग का पड़ोसी था, अभियोजन पक्ष के वर्जन को हिला नहीं सका, जिसने उचित संदेह से परे अपने मामले को सफलतापूर्वक साबित कर दिया। श्री कृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट ने शाही ईदगाह मस्जिद परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि इसे कृष्ण जन्मभूमि के ऊपर बनाया गया है। यह घटनाक्रम एक महीने बाद आया है जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रस्ट द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उत्तर प्रदेश के मथुरा में मस्जिद के परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए एक आवेदन पर निर्णय लेने के लिए स्थानीय अदालत को निर्देश देने की मांग की गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि देरी माफ़ करना एक अपवाद है जिसका उपयोग सरकारी विभागों की सुविधा के अनुसार नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि देरी की माफ़ी के लिए आवेदनों पर निर्णय लेते समय अदालतों को सरकारी एजेंसियों के साथ अलग व्यवहार नहीं करना चाहिए और सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए "विशेष दायित्व" के तहत है कि उनके कर्तव्यों का ठीक से पालन किया जाए। केरल हाईकोर्ट ने केरल लोक सेवा आयोग की ओर से परीक्षा देने से राकी गई एक उम्मीदवार की याचिका खारिज कर दी। उक्त उम्मीदवार ने सहायक लोक अभियोजक पद पर नियुक्ति की मांग की थी। केरल लोक सेवा आयोग ने उसे हॉल-टिकट भी जारी किया था, हालांकि उसे परीक्षा देने का अवसर नहीं दिया गया, क्योंकि मूल आवेदन पत्र को दोषपूर्ण पाया गया था। ज‌स्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता ने स्वयं स्वीकार किया है कि उसके आवेदन में उसका नाम या वह तारीख नहीं थी, जिस पर इसे लिया गया था, इसलिए यह कानूनी रूप से दोषपूर्ण था। मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी मरीज को दिए गए उपचार से संबंधित जानकारी प्रदान करने में अस्पताल की विफलता को पेशेवर कदाचार माना जाएगा। इसके परिणामस्वरूप गंभीर दायित्व होगा, क्योंकि यह मरीज के अधिकार का उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा, "संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में सूचना प्राप्त करने का अधिकार शामिल है। जाहिर है, मरीज इस अधिकार का इस्तेमाल करने का हकदार है। किसी भी स्थिति में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की घोषणा के बाद सरकारी अस्पताल अब मरीजों या उनके तीमारदारों से जानकारी छिपा नहीं सकते।