बदलते समय में आधुनिक मीडिया और पर्यावरण
लेखक - विकास शिशौदिया
लेखक पर्यावरण और मीडिया पर शोध कर रहे है।
जनसंख्या में बेतहाशा वद्धि, शहरीकरण और औद्योगीकरण की ओर तेजी से बढ़ते कदम ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों तथा वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकीय विकास के फलस्वरूप, पर्यावरणीय संसाधनों का हनन लगातार जारी है । पथ्वी पर प्रदूषण बढ़ा है। एक अनुमान के हिसाब से यदि आज दुनिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ जाता है तो दुनिया भर में गर्मी के कहर से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग 15 गुना बढ़ सकती है। नए तापमान से संबंधित आंकड़ों के अनुसार अत्यधिक गर्मी के तनाव से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की संख्या आज 6.8 करोड़ से बढ़कर लगभग एक अरब हो गई है। तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से दुनिया की लगभग आधी आबादी के गर्मी से प्रभावित होने के आसार हैं।
भारत भी इस से अछूता नहीं रहेगा बंगाल की खाड़ी के आसपास के इलाकों में यह वृध्दि 2 डिग्री तक होगी, जबकि हिमालयी क्षेत्रों में पारा 4 डिग्री तक चढ जाएगा । जिस से सूखा, अतिवृष्टि, चक्रवात और समुद्री हलचलों जैसी तमाम घटनाओं में वृद्धि होगी ।
दुनिया में सबसे ज्यादा पर्यावरण और जलवायु सम्बन्धी जोखिमों का सामना कर रहे 100 शहरों में से 43 अकेले भारत में और 37 चीन में हैं| यह जानकारी वेरिस्क मैपलक्रॉफ्ट द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट एनवायर्नमेंटल रिस्क आउटलुक 2021 में सामने आई है| इस रिपोर्ट में पर्यावरण और जलवायु सम्बन्धी जोखिमों के आधार पर दुनिया के 576 शहरों को श्रेणीबद्ध किया है| इनमें से 100 शहर जो सबसे ज्यादा खतरे में हैं उनमें से 99 अकेले एशिया में हैं|
यह शहर बढ़ते प्रदूषण, पानी की घटती सप्लाई, बाढ़, सूखा, तूफान और हीटवेव जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण गंभीर खतरे में हैं| इन शहरों की कुल आबादी 140 करोड़ से भी ज्यादा है, ऐसे में इन लोगों पर भी गंभीर संकट मंडरा रहा है|
पर्यावरण में हो रहे इस बदलाव का असर न केवल लोगों की संपत्ति और रोजगार पर पड़ रहा है साथ ही उनके स्वास्थ्य और जीवन के प्रति जोखिम भी बढ़ता जा रहा है| जिसका सबसे ज्वलंत उदाहरण दिल्ली -एनसीआर है यहाँ का बढ़ता वायु प्रदूषण दिल्लीवासियों के स्वास्थ्य और रोजगार के लिए बड़ा संकट बन चुका है|
एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल तकरीबन 12 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। जिसकी वजह से देश की जीडीपी में 03 फीसदी का नुकसान होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसके पीछे खेतों की पराली, गाड़ी से निकलने वाले धुआं, फॉसिल फ्यूल और इंडस्ट्री से निकलने वाले धुएं को बढ़ते प्रदूषण का जिम्मेदार माना है। यही कारण है कि प्रदूषण ना सिर्फ दिल्ली के लिए बल्कि समूचे विश्व के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है।
प्रदूषण दिल्ली, पंजाब, हरियाणा के साथ-साथ पूरे उत्तर भारत के लिए भी मुसीबत बन चुका है। यह दिल्ली के आलावा उत्तर प्रदेश , बिहार , झारखंड और पश्चिम बंगाल को भी सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019- 20 में दिल्ली को देश के सबसे प्रदूषित शहरों की श्रेणी में रखा गया है । हालांकि दिल्ली अक्सर केंद्र में होती है। कारण है दिल्ली में मीडिया का केंद्र होना जिसके वजह से प्रदूषण का स्तर बढ़ते ही दिल्ली को ही ज्यादातर केंद्रित किया जाता है।
“IQAir” की 2020 “वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट” में 106 देशों के प्रदूषण स्तर की जांच की गई जिसमें दुनिया के 50 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 35 भारत में पाए गए। जिसमें दिल्ली को 10 वें सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर और दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानी बताया गया है। लिहाजा यह एक बेहद ही चिंताजनक स्थिति है। कुछ रिपोर्ट्स तो यह कहती हैं कि दिल्ली में रहने वाले लोगों की आयु वहां की प्रदूषित हवा के कारण 10 वर्ष कम हो रही है। लोगों के फेफड़े वक्त से पहले खराब होने लगते हैं वहीं उन्हें आगे चलकर अस्थमा जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। हालाँकि, दिल्ली की वायु गुणवत्ता में वर्ष 2019 से वर्ष 2020 के बीच लगभग 15% का सुधार दर्ज किया गया है।
राजधानी दिल्ली में जब कभी प्रदूषण का स्तर अधिक हो जाता है तो यहां सरकार द्वारा एक (GRADED RESPONSE ACTION PLAN) को लागू कर दिया जाता है। जिसके अंर्तगत प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए दिल्ली में फैक्ट्रियां , कंस्ट्रक्शन वर्क के साथ साथ स्कूलों को बंद कर दिया जाता है , साथ ही ऑड-इवेन जैसे फार्मूले लागू कर दिए जाते हैं। जिससे प्रदूषण को कम करने में बहुत कम ही सही पर मदद मिलती है।
दिल्ली में वायु प्रदूषण का एक प्रमुख कारण शहर की लैंडलॉक भौगोलिक स्थिति के साथ साथ पड़ोसी राज्यों (पंजाब, हरियाणा और राजस्थान) में पराली जलाने की घटनाएँ , वाहन उत्सर्जन , औद्योगिक प्रदूषण , बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियाँ मुख्य रूप से शामिल हैं। मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज के अंर्तगत आने वाली एक एजेंसी “SAFAR” अर्थात (सिस्टम ऑफ एयर क्वॉलिटी & वेदर फॉरकेस्टिंग) ने दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के पीछे 46 % ज़िम्मेदार “पराली” को माना है। यह एजेंसी वायु गुणवक्ता की जांच कर उस पर रिसर्च करती है , और प्रदूषण के पीछे की मुख्य वजह का पता लगा कर अपना रिपोर्ट्स तैयार करती है। पड़ोसी राज्य जैसे पंजाब और हरियाणा में अक्सर किसान अपने समय और पैसे बचाने के लिए खेतों की पराली जला देते हैं। जिससे की पराली का धुंआ सीधे दिल्ली की तरफ आने लगता है और उसके कारण दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। पिछले साल नवंबर में जब पराली जलाए गए उस पूरे समय में दिल्ली में PM 2.5 का औसत स्तर 144 माइक्रोग्राम्स प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया था। जबकि, दिसंबर में यह 157 माइक्रोग्राम्स प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया।
परन्तु एक सच्चाई यह भी है कि जब प्रदुषण का स्तर बेहद ही खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है तब सरकार को या फिर मीडिया को इस विषय को उठाने का मौका मिलता है उससे पहले ना ही मीडिया पर्यावरण को लेकर कभी सजग रही है ना ही सरकारें।
दिल्ली और उसके आस पास के इलाकों में जब वे मौसम धुंध छाती है जब लोगों को साँस लेना मुश्किल हो जाता है और जब सड़कों पर गाड़ियों की टकर शुरू हो जाती है तो टेलीविजन की स्क्रीन पर्यावरण से जुड़ी खबरों से भर जाती है यहाँ तक की प्राइम टाइम में भी पर्यावरण से जुड़ी खबरें दिखने लगती है। रिपोर्टर अचानक पर्यावरण को लेकर गंभीर देखने लगते है और पर्यावरण परिवर्तन से लेकर ग्लोबल वार्मिंग तक की बात करने लगते है। चैनल के संपादक अचानक पर्यावरण पर गहरी चिंता देखने लगते है। लेकिन जैसे ही मौसम बदलता है और मौसम सामान्य होता है पर्यावरण से जुड़ी खबरें टेलीविजन की स्क्रीन से गायब हो जाती है फिर ना कोई रिपोर्टर पर्यावरण पर रिपोर्टिंग करता नज़र आता है और ना कोई संपादक पर्यावरण पर चिंता व्यक्त करता दिखता है। विश्व में पर्यावरण को लेकर बहुत से महत्वपूर्ण कार्य हो रहे है लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए तरह तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे है लेकिन जिस मीडिया पर जन जन को जागरूक करने की जिम्मेदारी है वह मीडिया पर्यावरण को लेकर चिंतित दिखाई नही देती है। मीडिया के इसी दोहरे चरित्र के कारण पर्यावरण जागरूकता जैसा गंभीर मुद्दा पीछे छूट गया है।
आपको जान कर हैरानी होगी कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कही जाने वाली मीडिया संस्थानों में पर्यावरण को लेकर कोई डेस्क नहीं है, जहां पर्यावरण जैसे गंभीर मसले पर रिपोर्टिंग करने वाले विषय की समझ रखने वाले पत्रकारों की तैनाती हो।
इस धरती पर अब तक न जाने कितनी ही सभ्यताएं उदिय हुई है जो अपने और पर्यावरण के बीच समन्वय ना बैठा पाने के कारण खत्म हो गई। हम उन सभ्यताओं को ढूंढते-ढूंढते स्वयं भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक पूर्ण रूप से पर्यावरण पर निर्भर रहता है लेकि