शव की बरामदगी ना होना परिस्थितियों की कड़ी पर विचार करने के लिए प्रासंगिक': सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में दोषसिद्धि को पलटा
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ट्रायल कोर्ट के सजा के एक फैसले को उलट दिया। त्रिपुरा हाईकोर्ट ने भी फैसले की पुष्टि की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित मामले में अभियोजन की ओर से पेश साक्ष्यों के जरिए परिस्थितियों की श्रृंखला की प्रमुख कड़ियों को साबित नहीं किया गया है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ का विचार था कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, जहां परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित कोई मामला नहीं बनाया गया है, दोषसिद्धि को बरकरार रखना अन्यायपूर्ण होगा।उसी पर विचार करते हुए, खंडपीठ ने कहा कि आरोपी संदेह का लाभ पाने का हकदार है। कोर्ट ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया और उसे रिहा करने का निर्देश दिया। उल्लेखनीय है कि मंगलवार को आरोपी न्यायिक हिरासत में था, उसे राज्य ने पैरोल दी है। पृष्ठभूमि सड़क पर खून फैले होने की सूचना पाकर फैली पुलिस को वोजली (बड़ा चाकू), धागा और कांच के कुछ टूटे हुए टुकड़े प्राप्त हुए थे। कांच के टुकडे़ मोटरसाइकिल के रियर-व्यू मिरर के लग रहे थे।पुलिस ने सड़क के किनारे जंगल में किसी भारी वस्तु को घसीटने के निशान देखे। जब वे अपनी जांच कर रहे थे, अर्जुन दास नामक एक व्यक्ति ने पुलिस स्टेशन को सूचित किया कि उनका भतीजा कौशिक सरकार पिछली शाम से लापता है। पुलिस ने कौशिक की मां का बयान दर्ज किया, जिन्होंने उन्हें बताया कि पिछली शाम वह अपने दो दोस्तों (अपीलकर्ता इंद्रजीत दास सहित) के साथ बाहर गया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, दोनों दोस्तों ने जांच अधिकारी के समक्ष कबूल किया था कि जिस शाम मृतक लापता हुआ वे शाम को उसकी बाइक पर उसी के साथ थे।जांच अधिकारी के अनुसार, दोनों दोस्तों ने कौशिक पर वोजली से हमला किया और उसके शव और मोटरसाइकिल को पास की नदी में फेंक दिया। एक अभियुक्त पर किशोर के रूप में मुकदमा चलाया गया, जबकि इंद्रजीत को नियमित मुकदमे का सामना करना पड़ा। मुकदमे में इंद्रजीत ने दोषी नहीं होने की दलील दी और मुकदमा चलाने का दावा किया। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 34 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दोषी ठहराया। उन्हें आजीवन कारावास और संबंद्ध सजाएं दी गईं, जिन्हें साथ चलने था। हाईकोर्ट ने अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे आरोपों को साबित करने में सफल रहा है।फिलहाल मामले में शव बरामद नहीं हुआ है। केवल एक अंग बरामद किया गया है, हालांकि यह स्थापित करने के लिए कोई डीएनए परीक्षण नहीं किया गया था कि यह अंग मृतक कौशिक सरकार का ही था। इस तरह अभियोजन पक्ष का पूरा मामला इस अनुमान पर चलता है कि कौशिक सरकार की मृत्यु हो चुकी है। निष्कर्ष न्यायालय ने शुरुआत में ही कहा कि मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य का है और इसे दोहरी शर्तों को पूरा करना चाहिए - -अपराध को स्थापित करने के लिए आवश्यक परिस्थितियों की श्रृंखला में हर कड़ी को उचित संदेह से परे स्थापित किया जाना चाहिए; और -सभी परिस्थितियों को लगातार आरोपी के अपराध की ओर इशारा करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, "परिस्थितियों की श्रृंखला में मूल कड़ी मकसद से शुरू होती है, फिर अंतिम बार देखे गए सिद्धांत, रिकवरी, चिकित्सा साक्ष्य, विशेषज्ञ की राय यदि कोई हो और कोई अन्य अतिरिक्त कड़ी, जो परिस्थितियों की श्रृंखला का हिस्सा हो सकती है, पर बढ़ते हैं।" मकसद अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष वह मकसद स्थापित नहीं कर पाया, जिसके लिए आरोपी ने अपराध किया। कोर्ट ने कहा, निचली अदालत और हाईकोर्ट ने भी मकसद पर कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया है। न्यायालय का मत था कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर तय किसी मामले में मकसद अधिक महत्व रखता है। अदालत ने इस संबंध में कुना उर्फ संजय बेहरा बनाम ओडिशा राज्य (2018) 1 एससीसी 296 और रंगनायकी बनाम राज्य पुलिस निरीक्षक (2004) 12 एससीसी 521 के फैसलों का हवाला दिया। शव की बरामदगी शव बरामद नहीं किया गया था और वर्तमान मामला इस अनुमान पर आधारित था कि कौशिक सरकार की मृत्यु हो गई थी। बरामद अंग का कोई डीएनए परीक्षण नहीं किया गया था। कॉर्पस डेलिक्टी के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों मे फैसले मौजूद हैं - कॉर्पस की रिकवरी के अभाव में भी सजा दी जा सकती है और कॉर्पस की अनुपस्थिति में कोई सजा नहीं दी जा सकती है। बाद वाले दृष्टिकोण के पीछे कारण यह है कि यदि मृत्यु नहीं हुई है तो बिना किसी अपराध के किसी को सजा भुगतनी होगी। न्यायालय ने दर्ज किया कि लाश की रिकवरी ना होना परिस्थितियों की श्रृंखला की कड़ी पर विचार करने में प्रासंगिक होगी। लास्ट सीन थ्योरी अदालत ने कहा कि कौशिक की मां ने अपने बयान में कहा था कि पूछताछ में कौशिक ने बताया था कि वह आरोपी के साथ बाहर जा रहा है। कौशिक के पीछे-पीछे गेट तक उसने दोनों दोस्तों को भी देखा था। जबकि जिरह में, उसने ऐसा कोई बयान देने से मना कर दिया था। हालांकि उसने स्वीकार किया कि उसने जांच अधिकारी को बताया था कि उसने आरोपी को अपने गेट पर देखा था। न्यायेतर स्वीकारोक्ति जांच अधिकारी के समक्ष अभियुक्तों के न्यायेतर स्वीकारोक्ति के अनुसार, कौशिक सरकार उनसे तब मिले जब वे एक बाजार के पास प्रतीक्षा कर रहे थे। कोर्ट ने कहा कि अगर न्यायिकेत्तर स्वीकारोक्ति को स्वीकार किया जाता है तो मां की लास्ट सीन थ्योरी धराशायी हो जाएगी। कोर्ट ने कहा कि मां का बयान लास्ट सीन थ्योरी को विकसित करने का प्रयास है। कोर्ट ने कहा, “न्यायेतर स्वीकारोक्ति कमजोर सबूत है, विशेष रूप से जब इसे परीक्षण के दरमियान वापस ले लिया गया हो। इसकी पुष्टि करने के लिए मजबूत सबूत की आवश्यकता है और यह भी स्थापित किया जाना चाहिए कि यह पूरी तरह से स्वैच्छिक और सच्चा है। रिकवरी रिकवरी एक खुली जगह से की गई थी और आरोपी व्यक्तियों के अनन्य और विशेष ज्ञान में नहीं हो सकती थी।