क्या दोष सिद्ध होने पर निर्वाचित प्रतिनिधि की अयोग्यता अपराध की प्रकृति के आधार पर होनी चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने अब्दुल्ला आजम खान की याचिका पर सवाल पूछा

May 02, 2023
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सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी पार्टी के नेता मोहम्मद अब्दुल्ला आज़म खान की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह सवाल उठाया कि क्या एक आपराधिक मामले में सजा के कारण एक विधायक का निलंबन अपराध में शामिल नैतिक पतन पर आधारित होना चाहिए? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले माह मोहम्मद अब्दुल्ला आज़म खान की ओर से 15 साल पुराने एक मामले में उनकी दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया था। दोषसिद्धि के कारण विधायक के रूप में अब्दुल्ला आज़म खान को आयोग्य घो‌षित कर ‌दिया गया था। इसी को चुनौती देते हुए अब्दुल्ला आज़म खान ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। जस्टिस अजय रस्तोगी ने मौखिक रूप से पूछा, "किसी को दो साल के लिए दोषी ठहराया गया है और वह अयोग्य है। लेकिन क्या हम उस व्यक्ति की नैतिकता का परीक्षण नहीं कर सकते हैं जिसे दोषी ठहराया गया है कि क्या किसी भी तरह की सजा उसे जनप्रतिनिधि बनने के लिए अयोग्य बनाती है।" उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने जवाब दिया कि न्यायालय द्वारा इस तरह की जांच आवश्यक नहीं है, क्योंकि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में दोषसिद्धि पर विधायक की स्वत: अयोग्यता का प्रावधान है, जिसमें दो वर्ष या उससे अधिक की अवधि की सज़ा मिली हो। जस्टिस रस्तोगी ने एएसजी से कहा, "हम केवल एक बिंदु पर हैं। हम एक बात जानना चाहते हैं। यदि आप यह साबित करने में सक्षम हैं कि जिस व्यक्ति को अपराध की प्रकृति के लिए दोषी ठहराया गया है, जो उसे जनप्रतिनिधि होने के लिए अयोग्य बनाता है तो आपको लाभ मिलता है, क्योंकि नैतिकता है।"  न्यायाधीश ने दोहराया कि प्रश्न यह है कि क्या न्यायालय को यह देखना चाहिए कि क्या अपराध व्यक्ति को प्रतिनिधि बनने के अयोग्य बनाता है। पीठ ने याचिका के जवाब में उत्तर प्रदेश सरकार से जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए कहते हुए स्पष्ट किया कि खान की अयोग्यता के परिणामस्वरूप 10 मई को होने वाले उपचुनाव के परिणाम स्वार विधानसभा क्षेत्र में होने वाले उपचुनाव याचिका के परिणाम के अधीन होंगे। जब पीठ ने कहा कि वह मामले को जुलाई तक के लिए स्थगित कर रही है तो खान के वकील सीनियर एडवोकेट विवेक तंखा और कपिल सिब्बल ने पीठ से इस तरह का स्पष्टीकरण देने का अनुरोध किया। खान के वकीलों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को उनके पिता के साथ धरने पर बैठने के लिए सजा सुनाई गई, जब वह केवल 15 वर्ष के थे। तन्खा ने प्रस्तुत किया, "मैं 15 साल का हूं और मैं अपने पिता के साथ हूं। पिता गुस्सा हो जाते हैं और सड़क पर उतर जाते हैं, और मैं उनके साथ बैठ जाता हूं। मुझे उनके साथ धरने पर बैठने के लिए दो साल की सजा हुई है।" सीनियर एडवोकेट ने प्रस्तुत किया कि खान के एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के अनुसार , कथित अपराध (2008) होने पर वह एक किशोर होगा। पीठ ने हालांकि कहा कि वह किशोर उम्र के पहलू की जांच नहीं करेगी। सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश का उल्लेख किया, जिसने एक आपराधिक मामले में हार्दिक पटेल की दोषसिद्धि पर रोक लगा दी, जिसने अंततः उन्हें 2022 में गुजरात विधानसभा चुनाव लड़ने में सक्षम बनाया। इस साल फरवरी में पंद्रह साल पहले अपने पिता के साथ धरने के दौरान खान को एक अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था। आरोप है कि पुलिस ने जब उनके वाहन को चेकिंग के लिए रोका तो उन्होंने ट्रैफिक जाम कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें आईपीसी की धारा 353 (सरकारी कर्मचारी को अपने कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल) के तहत अपराध के लिए दो साल के कारावास की सजा सुनाई। इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 14 अप्रैल को दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग वाली उनकी याचिका खारिज करने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। जस्टिस राजीव गुप्ता की एचसी खंडपीठ ने कहा था, "राजनीति में शुचिता रखना समय की मांग है। जनप्रतिनिधियों का साफसुथरा अतीत होना चाहिए।"