Supreme Court: 14 साल की रेप पीड़िता को गर्भपात कराने की मिली इजाजत

Apr 22, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने  यौन उत्पीड़न की वजह से गर्भवती हुई 14 साल की लड़की को बड़ी राहत दी. अदालत ने अनुच्छेद 142 के तहत मिले पावर का इस्तेमाल करते का पीड़िता को 7 माह का गर्भपात कराने का आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 14 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को 29 सप्ताह से ज्यादा के गर्भ में पल रहे बच्चे का गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है. अदालत ने ये फैसला सुनाते हुए कहा कि गर्भावस्था जारी रखने से लड़की के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है. भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने नाबालिग के सुरक्षित गर्भपात का निर्देश देते हुए कहा, "ये बहुत ही असाधारण मामला हैं, जहां हमें बच्चों की रक्षा करनी है...हर बीतता समय उसके लिए बहुत महत्वपूर्ण है."

सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने बॉम्बे हाई कोर्ट के गर्भपात कराने के आदेश देने से इनकार करने के फैसले को खारिज कर दिया. अदालत ने अनुच्छेद 142 के तहत यह फैसला सुनाया है. फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा कि गर्भपात में देरी से हर घंटा बच्चे के लिए कठिनाई भरा है.

मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

4 अप्रैल को बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन के अनुरोध को अस्वीकार करने के बाद लड़की की मां सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं थी. केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाली अतिरिक्त सॉलिसिटर-जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सोमवार को पीठ से मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों को लागू करने का आग्रह किया. मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि गर्भावस्था जारी रखने से नाबालिग की सेहत पर असर पड़ेगा. इस रिपोर्ट के देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया और आज इसपर फैसला सुनाया है. अदालत ने अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए नाबालिग की गर्भपात कराने की इजाजत दी है.

पीड़िता की भलाई को ध्यान में रखते हुए SC ने सुनाया फैसला

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत, 24 सप्ताह से पहले के गर्भपात आमतौर पर प्रतिबंधित होते हैं, जब तक कि गर्भावस्था महिला के जीवन के लिए गंभीर खतरा न हो या फिर भ्रूण में महत्वपूर्ण असामान्यताएं शामिल न हों. पीठ ने मुंबई में सायन के लोकमान्य तिलक म्यूनिसिपल मेडिकल कॉलेज और जनरल हॉस्पिटल के डॉक्टरों के एक पैनल को निर्देश देते हुए कहा, "स्थिति की तात्कालिकता और नाबालिग की भलाई को ध्यान में रखते हुए,  गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए हम बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हैं."