सुप्रीम कोर्ट ने गोद लेने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए निर्देश जारी किए; राज्यों को बच्चों की पहचान करने, दत्तक ग्रहण एजेंसियां स्थापित करने के लिए अभियान चलाने का निर्देश दिया
Source: https://hindi.livelaw.in/
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (20.11.2023) को सभी राज्यों में किशोर न्याय (जेजे एक्ट) अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार नोडल विभागों के प्रभारी सचिव को अनाथ, छोड़े गए बच्चों की पहचान करने के लिए द्विमासिक पहचान अभियान चलाने का निर्देश दिया, जिससे ऐसे बच्चे भारत में गोद लेने की प्रक्रिया में शामिल हो सकें। यह कहा गया कि इनमें से पहला पहचान अभियान 7 दिसंबर, 2023 को चलाया जाना चाहिए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) को 31 जनवरी 2024 तक प्रत्येक जिले के भीतर विशेष दत्तक ग्रहण एजेंसियों (एसएए) की स्थापना सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया। पीठ ने नोडल विभाग को निर्देश दिया जेजे एक्ट को लागू करने के प्रभारी को 31 जनवरी, 2024 तक निदेशक या सीएआरए और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव को अदालत के आदेश के अनुपालन के बारे में सकारात्मक रूप से सूचित करना होगा। यह आदेश धर्मार्थ ट्रस्ट "द टेम्पल ऑफ हीलिंग" द्वारा दायर देश में गोद लेने की प्रक्रियाओं को सरल बनाने की मांग करने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) की सुनवाई के दौरान पारित किया गया था। मामले में पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने गोद लेने की प्रक्रिया में देरी और इच्छुक माता-पिता और प्यारे घरों की ज़रूरत वाले बच्चों दोनों पर संभावित प्रभाव पर गंभीर चिंता जताई। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने भारत में गोद लेने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए पीठ को कुछ सुझाव दिये। उन्होंने जोर देकर कहा कि देश में गोद लेने की प्रक्रिया में तीन मुद्दों का सामना करना पड़ता है, जिनका समाधान किया जाना चाहिए। उनके दिए सुझाव कुछ इस प्रकार है- 1. अनाथ, छोड़े गए या आत्मसमर्पण किए गए बच्चों की पहचान करना और अंततः उक्त बच्चों को सिस्टम में लाना। 2. राज्य दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसियों (एसएआरए), विशिष्ट दत्तक ग्रहण एजेंसियों (एसएए) और जिला बाल संरक्षण इकाइयों (डीसीपीयू) के लिए स्टाफ की रिक्तियों को भरना। 3. पर्याप्त डेटा का संकलन, जिससे बच्चों को गोद लेने के लिए पालन-पोषण देखभाल में शामिल किया जा सके। एएसजी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि बाल दत्तक ग्रहण संसाधन सूचना और मार्गदर्शन प्रणाली (CARINGS) पोर्टल ने 33967 संभावित दत्तक माता-पिता (PaPs) को रजिस्टर्ड किया था। हालांकि, इसके विपरीत गोद लेने के लिए उपलब्ध बच्चों की संख्या केवल 7107 थी, जिसमें बिना किसी विशेष आवश्यकता वाले 5656 बच्चे और विशेष आवश्यकता वाले 1451 बच्चे शामिल थे। उन्होंने कहा कि पीएपी को सिस्टम से "स्वस्थ युवा बच्चे" को गोद लेने के लिए 3 से 4 साल तक इंतजार करना पड़ता है। यह भी बताया गया कि 760 जिलों में से 370 जिलों में कोई SAA कार्य नहीं कर रहा है और इसके अभाव में CARA नियमों का पालन नहीं किया जा सका। एएसजी भाटी द्वारा दिए गए सुझावों को स्वीकार करते हुए अदालत ने सभी जिलों में द्विमासिक पहचान अभियान और एसएए की स्थापना का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि जारी किए गए निर्देश बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों के साथ-साथ समुदाय से गोद लेने के लिए संभावित बच्चों की पहचान की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाएंगे। डॉ. पीयूष सक्सेना (याचिकाकर्ता-व्यक्ति) टेम्पल ऑफ हीलिंग के लिए उपस्थित हुए। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि जेजे एक्ट की धारा 56(3) के अनुसार, जेजे एक्ट हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम (एचएएमए), 1956 के तहत किए गए गोद लेने पर लागू नहीं होता है। उन्होंने तर्क दिया कि जमीनी स्तर पर बच्चों का पालन-पोषण नहीं किया जा रहा है। किशोरों को गोद लेने के प्रभारी अधिकारी बहुत सतर्क है और एचएएमए के तहत जोड़ों को गोद लेने की अनुमति देने से इनकार कर रहे है। यहां एएसजी भाटी ने जोर देकर कहा कि एचएएमए के तहत गोद लेने की प्रक्रिया जेजे एक्ट के तहत प्रक्रिया से स्वतंत्र है। अदालत ने इससे सहमति जताई और कहा कि HAMA प्रक्रिया CARA के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। पीठ ने कहा, "जहां तक एचएएमए के प्रावधानों का संबंध है, एएसजी द्वारा यह कहा गया कि एचएएमए के तहत गोद लेने की प्रक्रिया सीएआरए के नियमों से स्वतंत्र है। सीएआरए केवल तभी हस्तक्षेप करता है जब दत्तक माता-पिता को गोद लेने के प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है।"