सुप्रीम कोर्ट ने LGBTQIA+ समुदाय और लैंगिकता संवेदीकरण को शामिल करने के लिए कदम उठाए
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के निर्देश के तहत सुप्रीम कोर्ट परिसर के भीतर LGBTQIA+ समुदाय को शामिल करने की दिशा में कदम उठा रहा है। न्यायालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, मुख्य भवन के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के अतिरिक्त भवन परिसर में विभिन्न स्थानों पर नौ सार्वभौमिक विश्राम कक्ष बनाए जा रहे हैं। इस साल की शुरुआत में लॉन्च किए गए ऑनलाइन अपीयरेंस पोर्टल को भी जेंडर न्यूट्रल बनाया गया है। सीनियर एडवोकेट डॉ मेनका गुरुस्वामी को लिंग संवेदीकरण और आंतरिक शिकायत समिति (जीएसआईसीसी) के सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। हाल ही में विचित्र गैर-बाइनरी वकील रोहिन भट्ट ने GSICC में LGBTQIA+ प्रतिनिधित्व की मांग करते हुए सीजेआई को पत्र लिखा था जेंडर संवेदीकरण और आंतरिक शिकायत समिति के लिए लिंग और यौनिकता संवेदीकरण और आंतरिक शिकायत समिति के दायरे को व्यापक बनाने का यह प्रस्ताव भी सक्रिय रूप से विचाराधीन है। बदलते समय और समाज और संस्था की उभरती जरूरतों के साथ तालमेल बिठाते हुए नियमों में उपयुक्त संशोधन की परिकल्पना की जा रही है। संगठनात्मक और स्थानिक विकास के तौर-तरीकों पर फिर से विचार करने के लिए इन ऐतिहासिक पहलों का उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट में एक सम्मानजनक कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिए LGBTQIA+ समुदाय के प्रति संवेदनशीलता और समावेशन है।