अपर्याप्त मुद्रांकित समझौते में मध्यस्थता खंड पर कार्रवाई नहीं की जा सकती, सुप्रीम कोर्ट अपने इस फैसले के खिलाफ सुनवाई करेगा
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अपने 2020 के एक फैसले के खिलाफ एक क्यूरेटिव पीटिशन (उपचारात्मक याचिका) सूचीबद्ध की। शीर्ष अदालत ने 2020 के अपने फैसले में कहा था कि अपर्याप्त रूप से मुद्रांकित समझौते में मध्यस्थता खंड पर अदालत कार्रवाई नहीं कर सकती है। याचिका पर 24 अगस्त 2023 को सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने मामले में नोटिस जारी किया। उक्त फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका को जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने 20 जुलाई 2021 को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने 14 फरवरी 2020 के अपने फैसले में कहा था कि एक समझौते में मध्यस्थता खंड, जिस पर विधिवत मुहर लगाई जानी आवश्यक है, यदि पर्याप्त रूप से मुहर नहीं लगाई गई है, तो अदालत उस पर कार्रवाई नहीं कर सकती है। उक्त मामले में समझौते के एक पक्ष ने कर्नाटक हाईकोर्ट के समक्ष मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11(6) के तहत एक याचिका दायर की थी। दूसरे पक्ष ने उपस्थिति दर्ज की और तर्क दिया कि लीज डीड पर अपर्याप्त रूप से मुहर लगी होने के कारण इसे कर्नाटक स्टांप अधिनियम, 1957 की धारा 33 के तहत अनिवार्य रूप से जब्त किया जाना चाहिए और जब तक उचित शुल्क और जुर्माना का भुगतान नहीं किया जाता तब तक इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। हालांकि, हाईकोर्ट ने अधिनियम की धारा 11(6) के तहत शक्ति का इस्तेमाल किया, और पक्षों के बीच विवाद का फैसला करने के लिए एक मध्यस्थ नियुक्त किया। अपील में तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और सूर्यकांत की पीठ ने माना कि दोनों लीज डीड न तो पंजीकृत हैं और न ही कर्नाटक स्टांप अधिनियम, 1957 के तहत आवश्यक रूप से पर्याप्त रूप से मुद्रांकित हैं। पीठ ने एसएमएस टी एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम चांदमारी टी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड पर भरोसा किया। अप्रैल में, सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से यह माना कि बिना मुहर लगे अनुबंध में मध्यस्थता समझौता अप्रवर्तनीय है।
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