सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Mar 20, 2023
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सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (6 मार्च, 2023 से 10 मार्च, 2023 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र। अनुच्छेद 30: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति से छूट का दावा नहीं कर सकते सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान प्रवेश और शुल्क नियामक समिति (AFRC) की कार्रवाई के खिलाफ पूर्ण प्र‌तिरक्षा का दावा नहीं कर सकता, वह भी यह कहकर कि उसे संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत सुरक्षा प्राप्त है। न्यायालय यह तय कर रहा था कि क्या मध्य प्रदेश में एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान को वो फीस, जिसे वह चार्ज कर रहा है, उसे मध्य प्रदेश निजी व्यावसायिक शिक्षण संस्थान (प्रवेश का विनियम और शुल्क का निर्धारण) अधिनियम, 2007 (संक्षेप में, 2007 का अधिनियम) के प्रावधानों के तहत प्रवेश और शुल्क नियामक समिति से तय करानी पड़ेगी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि केरल हाईकोर्ट द्वारा कार्डिनल जॉर्ज एलेनचेरी के मामले में कैनन कानून और चर्च की संपत्ति को अलग करने के लिए बिशप की शक्ति के संबंध में की गई टिप्पणियां प्रथम दृष्टया प्रकृति की हैं और उन्हें अंतिम रूप से नहीं जोड़ा जा सकता। केरल हाईकोर्ट ने सिरो-मालाबार चर्च के मेजर आर्कबिशप एलेनचेरी द्वारा एर्नाकुलम-अंगमाली आर्कडायसिस में भूमि घोटाले को लेकर दायर आपराधिक मामलों को रद्द करने के लिए दायर याचिका खारिज करते हुए कहा कि चर्च की संपत्ति को माना जाना चाहिए। सार्वजनिक न्यासों और कलीसिया की संपत्तियों को अलग करने के लिए धर्माध्यक्षों को एकतरफा अधिकार प्रदान करने वाले कैनन कानून के प्रावधानों को नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के अधीन माना जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा, कर बकाए के लिए राजस्व द्वारा जारी किए गए कुर्की आदेश केवल इसलिए खराब नहीं होंगे, क्योंकि मूल्यांकन आदेश निर्धारिती को तामील नहीं किए गए थे, जबकि उसे मूल्यांकन आदेशों के बारे में ज्ञान था। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने APGST एक्ट और तेलंगाना वैट अधिनियम के तहत जारी किए गए कुर्की आदेशों को बहाल कर दिया, जिन्हें तेलंगाना ‌हाईकोर्ट ने इस आधार पर रद्द कर दिया था कि निर्धारिती पर मूल्यांकन आदेश तामील नहीं किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में श्रम विवादों से जुड़ी व्यावहारिक कठिनाइयों को नोट किया। कोर्ट ने कहा कि श्रमिकों के अधिकांश मामले लेबर यूनियनों अी ओर से दायर किया जाता है, जिनमें श्रमिक में स्थायी पते का उल्लेख ही नहीं किया जाता हैं। इसलिए, कई मामलों में, यूनियन को नोटिस दिए जाते हैं, और यदि यूनियन मामले को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं रखती है तो प्रभावित श्रमिक का प्रतिनि‌धित्व ही नहीं हो पाता है। अदालत ने लेबर कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति को बरी कर दिया, जबकि उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोहरे हत्याकांड का दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने अपने फैसले में साक्ष्य के उन मूल्यों और परिस्थितियों पर रोशनी डाली, जिनमें अतिरिक्त-न्यायिक-स्वीकारोक्ति को स्वीकार किया जा सकता है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने कहा, "अतिरिक्त न्यायिक-स्वीकारोक्ति के बारे में अभियोजन पक्ष का मामला भरोसा पैदा नहीं करता है। इसके अलावा, ऐसी कोई अन्य परिस्थिति रिकॉर्ड पर दर्ज नहीं की गई, जिससे अभियोजन पक्ष के मामले की पुष्टि हो सके या समर्थ‌न हो सके। इसलिए, हमारे सुविचारित मत में, अतिरिक्त-न्यायिक-स्वीकारोक्ति के रूप में अपीलकर्ता का साक्ष्य खारिज किए जाने योग्य हैं। बेशक, अपीलकर्ता के खिलाफ कोई अन्य सबूत नहीं है।" केस टाइटल: पवन कुमार चौरसिया बनाम बिहार राज्य | आपराधिक अपील संख्या 2230/2010 आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें कंपनी का दिवाला समाधान धारा 138 एनआई अधिनियम के तहत निदेशक की देनदारी को समाप्त नहीं करेगा: सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 के तहत कॉरपोरेट कर्जदार की समाधान योजना की मंज़ूरी से निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत उसके पूर्व निदेशक की आपराधिक देनदारी खत्म नहीं होगी। जस्टिस संजय किशन कौल,जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि कंपनी के निदेशक एन आई अधिनियम की कार्यवाही से इस आधार पर आरोपमुक्त होने की मांग नहीं कर सकता कि लेनदार का ऋण आईबीसी के तहत कार्यवाही में तय हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दोहराया है कि सेवा न्यायशास्त्र में, सेवा नियम, जिनका वैधानिक प्रभाव होता है, प्रबल होंगे और सरकारी प्रस्ताव नियमों के विपरीत नहीं हो सकते। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओक की पीठ ने प्रकाश डाला, "सेवा न्यायशास्त्र में, सेवा नियम प्रबल होने के लिए उत्तरदायी हैं। सरकारी प्रस्ताव नियमों के अनुरूप या व्याख्या करने वाले हो सकते हैं, लेकिन इसके विरोध में नहीं।" सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को संकेत दिया कि वह एक किलोमीटर के इको-सेंसिटिव जोन (ईएसजेड) में प्रतिबंधों में ढील दे सकता है, जिसे संरक्षित वनों और वन्यजीव अभयारण्यों के पास अनिवार्य किया गया है। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की पीठ केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा दायर आवेदनों पर सुनवाई कर रही थी, जो 1-केएम बफर जोन में छूट की मांग कर रहे थे, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने जून 2022 को अपने आदेश में निर्देश दिया था कि प्रत्येक संरक्षित वन में एक किलोमीटर का इको सेंसिटिव जोन (ESZ) होना चाहिए। कोर्ट ने आगे निर्देश दिया था कि ESZ के भीतर किसी भी स्थायी ढांचे की अनुमति नहीं दी जाएगी। राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान के भीतर खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में माना कि किसी डॉक्‍टर ने अगर अल्प मात्रा में दवाएं जमा की हैं तो यह कृत्य ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 18 (सी) के तहत दवाओं के अनधिकृत स्टॉकिंग के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा। जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा, "जब एक पंजीकृत चिकित्सक के परिसर में थोड़ी मात्रा में दवा पाई जाती है, तो यह खुली दुकान के काउंटर पर दवाएं बेचने के समान नहीं होगा।" सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मैसर्स आईएल एंड एफएस तमिलनाडु पावर कंपनी लिमिटेड को अनुमति देते हुए कहा कि राज्य में अपने दो बिजली संयंत्रों को जारी रखेगी, जो पर्यावरणीय मंजूरी और इसके शुद्धिपत्र में उल्लिखित शर्तों के पूर्ण अनुपालन के अधीन है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने एनजीटी के दो आदेशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं में आदेश पारित किया- पहला, कंपनी को दी गई पर्यावरण मंजूरी (ईसी) की वैधता को बरकरार रखते हुए पुनर्विचार करने और अतिरिक्त शर्तें जोड़ने के निर्देश के साथ; दूसरा, कंपनी को जारी मूल ईसी में शर्तों को जोड़ने वाले शुद्धिपत्र रद्द करना। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि ऋणमुक्ति के लिए एक बंधक द्वारा दूसरा वाद केवल इसलिए वर्जित नहीं है क्योंकि पहला वाद डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज कर दिया गया था, जब तक कि बंधक का ऋणमुक्ति का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश IX नियम 9 (जो कार्रवाई के समान कारण पर दूसरे वाद को रोकता है यदि पहला वाद डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज कर दिया जाता है) दूसरा वाद दायर करने से गिरवी रखने वाले को रोक नहीं सकता है जब तक बंधक के लिए ऋणमुक्ति अधिकार मौजूद है। पीठ ने इस संबंध में कहा कि ऋणमुक्ति वाद में कार्रवाई का कारण बार-बार आने वाला होता है। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 90 के तहत 30 वर्ष से अधिक पुराने दस्तावेजों की वास्तविकता के बारे में अनुमान वसीयत पर लागू नहीं होता है। अदालत ने 03.05.2013 को सुनाए गए पूर्ववर्ती कानूनी वारिसों द्वारा एम बी रमेश (डी) बनाम कानूनी वारिसों द्वारा के एम वीराजे उर्स (डी) और अन्य [सिविल अपील संख्या 1071/2006 के फैसले के आधार पर कहा, "वसीयत को केवल उसकी आयु के आधार पर साबित नहीं किया जा सकता है - धारा 90 के तहत 30 साल से अधिक आयु के दस्तावेजों की नियमितता के रूप में अनुमान वसीयत के सबूत की बात आने पर लागू नहीं होता है।" सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उन फैसलों को रद्द कर दिया, जिसमें इंदौर विकास प्राधिकरण और मध्य प्रदेश राज्य द्वारा एक आवासीय योजना के लिए शुरू की गई अधिग्रहण कार्यवाही को समाप्त कर दिया गया था। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ इंदौर विकास प्राधिकरण द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मध्य प्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम, 1973 की धारा 50 के तहत योजना संख्या 97 को रद्द करने और बाद में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत मध्य प्रदेश राज्य द्वारा की गई भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही को हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में कई तरह की PIL यानी जनहित याचिकाएं दायर की जाती हैं। हाल ही मांस के सेवन पर प्रतिबंध लगाने की मांग वाली जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका में जानवरों की हत्या पर रोक लगाने और लोगों को लैब जनरेटेड मीट पर स्विच करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार किया और कहा कि देश में बड़ी आबादी को देखते हुए मांस के सेवन पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करने के लिए दायर या‌चिकाओं को संवैधानिक पीठ को सौंप दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, यह एक "मौलिक" मुद्दा है। बेंच ने आदेश में कहा, "हमारा विचार है कि यह उचित होगा कि पेश किए गए मुद्दों को पांच जजों की पीठ के समक्ष संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के आलोक में हल करने के लिए प्रस्तुत किया जाए। इस प्रकार, हम मुद्दे को संवैधानिक पीठ के समक्ष रखने का निर्देश देते हैं।" सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 2017 में "मस्जिद हाईकोर्ट" नामक एक मस्जिद को उसके परिसर से हटाने के लिए पारित आदेश की पुष्टि की। वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज करते हुए जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को मस्जिद को हटाने के लिए तीन महीने का समय दिया। पीठ ने कहा, अगर आज से 3 महीने की अवधि के भीतर निर्माण नहीं हटाया जाता है, तो यह हाईकोर्ट सहित अधिकारियों के लिए खुला होगा कि वे उन्हें हटा दें या गिरा दें। सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने मंगलवार को भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के लिए अतिरिक्त मुआवजे का दावा करने के लिए यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (अब डॉऊ केमिकल्स) के साथ समझौता फिर से शुरू करने की मांग वाली केंद्र द्वारा दायर क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया। अदालने नोट किया कि समझौते को केवल धोखाधड़ी के आधार पर रद्द किया जा सकता है, लेकिन भारत संघ द्वारा धोखाधड़ी का कोई आधार नहीं दिया गया है। हालांकि, न्यायालय ने निर्देश दिया कि आरबीआई के पास पड़ी 50 करोड़ रुपये की राशि का केंद्र सरकार द्वारा लंबित दावों को पूरा करने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए, यदि कोई हो।