शिकायतकर्ता एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी की गवाही की बहुत सावधानी से जांच की जरूरत: सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले में जहां अपीलकर्ता/शिकायतकर्ता मृतक का पिता होने के नाते एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी गवाह हो और आरोपी व्यक्तियों के साथ उसकी लंबी दुश्मनी हो, उसकी गवाही की बहुत सावधानी से जांच की जानी चाहिए। जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि रद्द करने के हाईकोर्ट के आदेश की पुष्टि करते हुए ये टिप्पणियां कीं। आरोपी व्यक्तियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 के कई प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया।सुप्रीम की खंडपीठ ने कहा, “यह उल्लेख करना संदर्भ से बाहर नहीं होगा कि अपीलकर्ता/शिकायतकर्ता एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी मृतक का पिता होने के नाते सबसे अधिक दिलचस्पी वाला गवाह है और जिस समूह से आरोपी व्यक्ति संबंधित हैं, उसके साथ उसकी लंबी दुश्मनी है। इसलिए उसकी गवाही की जांच बहुत सावधानी से की जानी है और हाईकोर्ट का ऐसा करना और उस पर संदेह करना उचित है, जिससे उसके एकमात्र साक्ष्य पर दोषसिद्धि को बरकरार रखा जा सके।''मौजूदा मामले में 1986 से दो प्रतिद्वंद्वी समूहों के बीच गंभीर दुश्मनी है। यह सार्वजनिक सड़क तक पहुंच के संबंध में है, जिसे एक पक्ष द्वारा अवरुद्ध किया जा रहा था। विवाद जारी रहा और परिणामस्वरूप राम किशन नामक व्यक्ति की हत्या हो गई। जाहिर तौर पर बदला लेने के लिए दूसरे समूह ने किशन सरूप (पीड़ित) की हत्या कर दी। इसके सम्बन्ध में दिनांक 05.11.2000 को एफआईआर दर्ज करायी गयी। जबकि निचली अदालत ने 10 आरोपियों में से 6 को दोषी ठहराया, हाईकोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि रद्द कर दी। आरोपी व्यक्तियों को बरी किए जाने के खिलाफ अपीलकर्ता/शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।अपीलकर्ता की यह दलील कि ऐसे मामलों में जहां आरोपी व्यक्तियों को ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषी ठहराया जाता है और सजा सुनाई जाती है, अपीलीय अदालत आम तौर पर दोषसिद्धि खारिज नहीं करती, खासकर प्रत्यक्षदर्शी के साक्ष्य के प्रकाश में अदालत के पक्ष में नहीं आई। अदालत ने कहा कि हालांकि अपीलकर्ता एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी है, लेकिन उसने किसी को भी अपने बेटे किशन सरूप की हत्या करते नहीं देखा। अदालत ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता ने इस बारे में कुछ भी नहीं बताया कि उसने हस्तक्षेप करने और अपने बेटे को हमले से बचाने की कोशिश क्यों नहीं की।यह बयान कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा दी गई धमकियों के कारण वह ऐसा नहीं कर सका, बेतुका बयान प्रतीत होता है, क्योंकि ऐसी स्थिति में जहां उसके बेटे पर हमला किया जा रहा हो और उसे ले जाया जा रहा हो, कोई भी केवल दर्शक नहीं बना रहेगा।" इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि एफआईआर में अपीलकर्ता के बयान के अनुसार, आरोपी ने उसके बेटे पर चाकू और लोहे की रॉड से हमला किया। आरोपी द्वारा पिस्तौल के इस्तेमाल का जिक्र नहीं किया गया। हालांकि पुलिस ने खाली कारतूस बरामद किया। इसके अलावा, पोस्टमॉर्टम के अनुसार मौत का कारण भी करीब से गोली मारना है।इसके अनुसरण में, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सजा उन सबूतों पर आधारित होनी चाहिए, जो आरोपी को उचित संदेह से परे दोषी साबित करते हैं। इन टिप्पणियों के आधार पर यह राय दी गई कि अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शी के साक्ष्य दोनों द्वारा अभियुक्त के अपराध को साबित करने में विफल रहा है। अदालत ने कहा, “हालांकि, सजा उन सबूतों पर आधारित होनी चाहिए, जो आरोपी को उचित संदेह से परे दोषी साबित करते हैं। इस मामले में अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य और प्रत्यक्षदर्शी के साक्ष्य दोनों के माध्यम से आरोपी का अपराध साबित करने में विफल रहा है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य के संबंध में घटनाओं की श्रृंखला पूरी नहीं है, जबकि प्रत्यक्षदर्शी की उपस्थिति भी संदिग्ध है।” इसे देखते हुए न्यायालय ने आरोपी व्यक्तियों को संदेह का लाभ देने में हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी।