उद्योगपतियों ने कर्मचारियों को अप्रैल माह की सैलरी देने से हाथ खड़े किये

Apr 15, 2020

उद्योगपतियों ने कर्मचारियों को अप्रैल माह की सैलरी देने से हाथ खड़े किये

•    सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को सरकार एक ही दिन में मारकर सारे अंडे लेना चाहती है
•    जब उद्योग ही नहीं रहेंगे तो श्रमिकों का क्या होगा ?
•    विजय सोच रहा हैं की जब अजय की सैलरी नहीं कटी तो मेरी क्यों कट गयी
•    पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया
•    हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उद्योगजगत के लिए राहत माँग की

भारत सरकार द्वारा उद्योगों में कार्य करने वाले कर्मचारियों  के सामने रोजीरोटी का संकट खड़ा होने के कारण उद्योग पतियों के सर पर ही सारा ठीकरा फोड़ दिया है। जिसकी वजह से उद्योगपतियों में काफी निराशा एवं असंतोष है। सरकार ने सभी मालिकों से अपने कर्मचारियों की सैलरी देने को कहा है तथा कहा है की आप उनकी लॉकडाउन की अनुपस्थिति को कार्य पर उपस्थिति की तरह मानेंगे और उसी तरह से सभी को पूरी सैलरी देंगे कोई भी कटौती नहीं करेंगे। अब प्रश्न यह उठता है की जब कर्मचारियों को "ऑन ड्यूटी " माना जायेगा तो बाकी सारे खर्चे जो की  "ऑन ड्यूटी " कर्मचारी को मिलते हैं वे मिलेंगे या नहीं ? इसका उत्तर यह है की जब कर्मचारी "ऑन ड्यूटी " होगा या माना जायेगा तो उसको सभी खर्चे भी मिलेंगे जैसे उसकी ग्रैच्चुयटी,बोनस ,अर्जित अवकाश इत्यादि सभी की गणना उसी हिसाब से होगी और उस कर्मचारी का ई एस आई और पी एफ भी कटेगा (यदि वह प्रधानमंत्री गरीब रोजगार योजना के अन्तर्गत नहीं आता है) . यहाँ पर यह भी स्पष्ट करना जरुरी है की उन सभी कंपनियों को जहाँ पर 100 से कम कर्मचारी कार्य करते हैं और 90 प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों का मासिक वेतन रूपये15000 /- से कम है वहीँ पर इस सुविधा (प्रधानमंत्री गरीब रोजगार योजना) का लाभ कर्मचारियों के साथ साथ मालिकों को भी मिलेगा क्योंकि पी एफ का कर्मचारी और नियोक्ता दोनों का अंशदान (12 + 12 = 24 प्रतिशत ) सरकार द्वारा वहन किया जायेगा। अब सरकार ने यहाँ पर भी चालाकी करी है क्योंकि एक कर्मचारी (अजय ) जिसकी मासिक सैलरी रुपये 14999 /- है जो ऐसी कम्पनी में कार्य करता है जो की प्रधानमंत्री गरीब रोजगार योजना में आती है, तो यहाँ पर उसका अंशदान नहीं कटेगा और उसको अधिक सैलरी मिलेगी, और दूसरा कर्मचारी (विजय ) जिसकी भी मासिक सैलरी रुपये 14999 /- है और वो ऐसी कम्पनी में कार्य करता है जो की प्रधानमंत्री गरीब रोजगार योजना में नहीं आती है तो यहाँ पर विजय की सैलरी कटेगी और उसको कम सैलरी मिलेगी। अब विजय सोच रहा हैं की जब अजय की सैलरी नहीं कटी तो मेरी क्यों कट गयी और उसने सरकार द्वारा दी गई हेल्पलाइन न पर कम्पनी के मालिक की शिकायत कर दी क्योंकि विजय को तो इस नियम की बारीकी नहीं मालूम थी और इस तरह कारखाना मालिक के खिलाफ शिकायत दर्ज हो गई और उसे अब स्पष्टीकरण देने के लिए परेशांन किया जा रहा है। अब एक कारखाना मालिक जिसका कोई कसूर नहीं है और उसने नियमानुसार सैलरी भी दी है और वह कारखाने के बंद होने से परेशांन भी है की उसके सभी खर्चे जो की चालू हैं जैसे बिजली, किराया, कई तरह के टैक्स, सैलरी, ई एस आई और ई पी एफ इत्यादि सभी देना है जबकि लाभ जीरो है यानि सभी कुछ उसको ही झेलना पड़ेगा साथ में मानसिक प्रताड़ना भी चालू है। यही नहीं उसकेसाथ साथ जितने भी एक्सपोर्टर हैं उनके आर्डर कैंसल हो गए हैं और बहुतों की शिपमेन्ट वापस आ गई है। और अभी आर्डर मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं है |

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खासतौर से रेडीमेड वस्त्र के कारखानों का जिनका सीजन तो अभी शुरू ही हुआ था और सर मुँड़ाते ही ओले पड़ गए।
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि वह लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का उद्योगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को दिए गए निर्देशों पर पुन:विचार करें क्योंकि यह उन्हें दिवालियापन की ओर धकेल सकता है। उन्होंने केन्द्र से अनुरोध किया कि इस मुश्किल वक्त में उद्योगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को अपूरणीय क्षति पहुंचाए बगैर वह कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के लिए नवोन्मेषी तरीके तलाशें। सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में सिंह ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश पर पुन:विचार करने का अनुरोध किया है। मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में लिखा है, इससे जुड़े आदेश में कहा गया है,

सभी नियोक्ता, फिर चाहे वह उद्योग हों या फिर दुकानें और व्यावसायिक प्रतिष्ठान, लॉकडाउन के अवधि मे अपना प्रतिष्ठान बंद करने के दौरान अपने सभी कर्मचारियों को बिना किसी कटौती के तय तिथि पर वेतन का भुगतान करें। उन्होंने लिखा है कि आदेश के इस हिस्से पर पुन:विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि इसका उद्योगों, दुकानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर वित्तीय कुप्रभाव होगा और वह दिवालियापन की ओर से जा सकते हैं क्योंकि लॉकडाउन के दौरान इनमें से ज्यादातर उद्योगों की आय बिल्कुल बंद हो गयी है। सिंह का कहना है कि केन्द्र सरकार उद्योगों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों कह वित्तीय स्थिति को ज्यादा नुकसान पहुंचाए बगैर कर्मचारियों के हितों की रक्षा करने के लिए कुछ नए/नवोन्मेषी तरीके खोजे। यह रेखांकित करते हुए कि पंजाब सरकार ने इस सबंध में केन्द्रीय श्रम मंत्रालय को भी पत्र लिखा है, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से अनुरोध किया कि वह मंत्रालय को इस संबंध मे जल्दी कार्रवाई करने की सलाह दें। कोरोनावायरस संक्रमण के मद्देनजर प्रधानमंत्री मोदी ने देश की 1.3 अरब जनता से अनुरोध किया कि वे 25 मार्च से 14 अप्रैल तक, 21 दिन के लिए अपने-अपने घरों में ही रहें।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर उद्योगजगत के लिए राहत माँग की है इसी तरह कई सांसदों एवं प्रतिनिधियों ने भी उद्योग जगत को राहत प्रदान करने की माँग की है। सभी का कहना है की सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी को सरकार एक ही दिन में मारकर सारे अंडे लेना चाहती है लेकिन उसको यह भी ध्यान में रखना होगा की जब उद्योग ही नहीं रहेंगे तो श्रमिकों का क्या होगा ?

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हालाँकि सभी व्यापारियों एवं व्यापारियों के संगठनों ने चाहे नॉएडा हो या हरियाणा सभी ने अप्रैल माह की सैलरी देने से साफ़ मना कर दिया है और अब देखना है की सरकार उद्योगों को कोई राहत देती है या नहीं। हालाँकि वर्तमान अवधि में क्योंकि आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 लागू है अतः और कोई भी अन्य अधिनियम इस समय  प्रभावी नहीं है इसीलिए सभी नियोक्ताओं के हाथ बंधे हुए हैं।नॉएडा में एन ए इ सी के अध्यक्ष ललित ठुकराल, एन इ ए के अध्यक्ष विपिन मल्हन, आई आई ए के राजीव बंसल, गाज़ियाबाद-कवी नगर इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल शर्मा , बुलंदशहर इंडस्ट्रियल एरिया एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीवसचदेवा के साथ साथ "लॉ ऑफ़ लेबर" एडवाइजर एसोसिएशन उ. प्र. के अध्यक्ष सत्येन्द्र सिंह ने भी श्रम मंत्री एवं प्रधानमन्त्री को ज्ञापन देकर उद्योगों को राहत पैकेज की माँग की है तथा सैलरी का बोझ नियोक्ताओं पर न डालने का अनुरोध किया है।

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