शादी का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाना बलात्कार के समान, सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को सात साल की सजा सुनाई [निर्णय पढ़े]
शादी का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाना बलात्कार के समान, सुप्रीम कोर्ट ने दोषी को सात साल की सजा सुनाई [निर्णय पढ़े]
एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई व्यक्ति शादी करने का वादे कर किसी लड़की के साथ यौन संबंध बनाता है तो यह बलात्कार के समान होगा और उस लड़की की सहमति का कोई मतलब नहीं होगा क्योंकि यह धोखाधड़ी से प्राप्त की गई। यह फैसला देते हुए जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस एम. आर. शाह की पीठ ने कहा कि अभियुक्त द्वारा प्राप्त इस तरह की सहमति को कोई सहमति नहीं कहा जा सकता क्योंकि महिला इस तथ्य की गलत धारणा के तहत थी कि आरोपी उससे शादी करने का इरादा रखता है। इसलिए उसने उसके साथ संभोग करने के लिए खुद को प्रस्तुत किया।
"नहीं दिया जा सकता सहमति का नाम"
इस सहमति को गलत धारणा के तहत सहमति नहीं माना जा सकता क्योंकि अभियुक्त द्वारा स्पष्ट तौर पर अपने वादे को पूरा न करने के उद्देश्य से और लड़की को यह भरोसा दिलाकर कि वो उससे शादी करने जा रहा है और संभोग के लिए उसकी सहमति प्राप्त की गई।
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बलात्कार महिला की आत्मा को नीचा दिखाने वाला कृत्य
जस्टिस शाह ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आजकल ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। इस तरह के अपराध समाज के खिलाफ हैं। बलात्कार किसी भी समाज में नैतिक और शारीरिक रूप से सबसे निंदनीय अपराध है। यह शरीर, मन और पीड़ित की निजता पर हमला है। जैसा कि इस न्यायालय ने फैसलों में देखा है, जहां एक हत्यारा पीड़ित के शारीरिक ढांचे को नष्ट कर देता है, वहीं बलात्कारी एक असहाय महिला की आत्मा को नीचा दिखाता है और उसकी अवहेलना करता है।
यह अपराध महिला की स्थिति जानवर से भी बदतर कर देता है
पीठ ने अपीलकर्ता डॉक्टर अनुराग सोनी को 7 साल के कारावास की सजा सुनाते हुए कहा कि बलात्कार एक महिला की स्थिति को एक जानवर से भी छोटा कर देता है, क्योंकि यह उसके जीवन के बहुत ही मुख्य भाग को हिला देता है। कोई भी बलात्कार पीड़िता को साथी नहीं कह सकता। बलात्कार पीड़िता के जीवन पर एक स्थायी धब्बा छोड़ता है।
"यह अपराध महिला के सम्मान को देता है झटका"
बलात्कार पूरे समाज के खिलाफ एक अपराध है और पीड़ित के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है। सबसे अधिक घृणित अपराध होने के नाते बलात्कार एक महिला के सर्वोच्च सम्मान के लिए एक गंभीर झटका है और उसके सम्मान और गरिमा दोनों को यह अपराध ठेस पहुंचाता है। पीठ ने उल्लेख किया कि केवल इसलिए कि अभियुक्त ने दूसरी महिला के साथ शादी की थी और/या यहां तक कि अभियोजन पक्ष ने बाद में शादी की है, आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध के लिए अपीलार्थी को दोषी ना ठहराने का कोई आधार नहीं है। मामले के अपीलकर्ता को अपने द्वारा किए गए अपराध के परिणामों का सामना करना ही चाहिए।
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"ट्रायल कोर्ट को ऐसे मामलों में बरतनी चाहिए सावधानी"
पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में ट्रायल कोर्ट को बहुत सावधानी से जांच करनी चाहिए कि क्या शिकायतकर्ता वास्तव में पीड़ित से शादी करना चाहता था या उसके इरादे गलत थे और उसने इस आशय का झूठा वादा किया था ताकि वह अपनी वासना को संतुष्ट कर सके।
क्या था यह पूरा मामला
अभियोजन पक्ष का कहना था कि पीड़िता बिलासपुर की निवासी थी। वह वर्ष 2009 से आरोपी डॉक्टर से परिचित थी और उनके बीच प्रेम संबंध थे। अपीलकर्ता ने उसे शादी के लिए भी प्रस्ताव दिया था और यह तथ्य उनके परिवार के सदस्यों को ज्ञात था। उसने उसे शादी के वादे पर लालच दिया और उसके साथ यौन संबंध बनाए लेकिन बाद में शादी करने से इनकार कर दिया। बलात्कार की शिकायत पर ट्रायल कोर्ट और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आरोपी को 10 वर्ष कैद की सजा दी और वर्तमान अपील में शीर्ष अदालत ने सजा को घटाकर 7 वर्ष कर दिया।
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