ख़रीददार अनिश्चितकाल तक घर पाने की प्रतीक्षा नहीं कर सकता, सुप्रीम कोर्ट ने पैसा लौटाने को कहा [निर्णय पढ़े]
घर ख़रीदने वालों को अपने मकान पर क़ब्ज़े के लिए अनिश्चितकाल तक प्रतीक्षा नहीं कराया जा सकता और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता आयोग के आदेश को सही ठहराया कि ग्राहक को उसका पैसावापस कर दिया जाए। Kolkata West International City Pvt. Ltd. vs. Devasis Rudra के इस मामले में ख़रीददार ने ₹39, 29,280 एक बिल्डर के पास जमा कराया था और दोनों के बीच जो क़रार हुआ था उसमेंकहा गया था कि ख़रीददार को Row House का क़ब्ज़ा 31 दिसम्बर 2008 को दिया जाएगा और इसमें छह महीने की छूट होगी। 2011 में, ख़रीददार ने उपभोक्ता अदालत का दरवाज़ा खटखटाया और माँग की कि उसे Row House का क़ब्ज़ा दिलाया जाए और नहीं तो उसे 12% के ब्याज के साथ उसका पैसा वापस किया जाए।
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उसने₹20 लाख के हर्ज़ाने की भी माँग की थी। राज्य आयोग ने उसकी याचिका स्वीकार कर ली और डेवलपर को 12% ब्याज के साथ यह राशि वापस करने और ₹5 लाख का मुआवज़ा भी चुकाने का आदेश दिया। राष्ट्रीय आयोग ने इस फ़ैसले में थोड़ीतब्दीली की और हर्ज़ाने की राशि को घटाकर 2 लाख कर दिया।
अब डेवलपर ने सुप्रीम कोर्ट में इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ याचिका दायर की है जिसकी सुनवाई न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की पीठ ने की। डेवलपर ने कोर्ट से पूछा कि क्या क्रेता को पैसे वापस लेनेका अधिकार है क्योंकि उसने उपभोक्ता शिकायत में हर्ज़ाने का दावा प्राथमिक राहत के रूप में किया है।
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आयोग के फ़ैसले में हस्तक्षेप करने से मना करते हुए पीठ ने कहा, "क़रार के मुताबिक़ घर का क़ब्ज़ा देने की निर्धारित तिथि छह महीने के छूट के साथ 31 दिसम्बर 2008 थी।2008 में भी जब उपभोक्ता अदालत में उसने शिकायत की, वह घर का क़ब्ज़ा लेने के लिएतैयार था। क्रेता को अनिश्चित काल तक के लिए प्रतीक्षा करने को नहीं कहा जा सकता। 2016 तक आते-आते इस बारे में हुए क़रार को क़रीब सात साल हो गया।
और डेवलपर ने ख़ुद कहा है कि उसको घर काकंप्लिशन प्रमाणपत्र 29 मार्च 2016 कोई मिला जो कि उसको क़रार के मुताबिक़ घर का वादा जिस साल किया गया था उससे 7 साल बाद है। 7 साल की देरी सामान्य से काफ़ी ज़्यादा है"
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