सभी नागरिकों के लिए स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करना है राज्य का संवैधानिक दायित्व-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
सभी नागरिकों के लिए स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करना है राज्य का संवैधानिक दायित्व-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
राज्य सरकार का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह अपने सभी नागरिकों के लिए स्वच्छ पर्यावरण सुनिश्चित करे,यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण के उस फैसले को सही बताया है,जिसमें मेघालय राज्य को निर्देश दिया गया था कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष सौ करोड़ रुपए जमा कराए। एनजीटी ने पाया था कि राज्य अपने यहां हो रही कोयले की अवैध खनन की देखरेख करने के मामले में अपनी ड्यूटी नहीं निभा पाया।हालांकि जस्टिस अशोक भूषण व जस्टिस के.एम जोशेफ की पीठ ने राज्य की अपील को आंशिक तौर पर स्वीकार कर लिया है और इस बात की अनुमति दे दी है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सौ करोड़ रुपए मेघालय पर्यावरण संरक्षण और बहाली कोष से दे दिए जाए। पीठ ने कहा है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस पैसे को सिफ मेघालय में पर्यावरण की बहाली या पुनःस्थापित करने में ही प्रयोग करे। पीठ ने कहा कि एनजीटी ने जो राशि मेघालय राज्य को जमा कराने का निर्देश दिया है,वह न तो राज्य पर लगाया गया न तो जुर्माना है या न ही हर्जाना।
कोर्ट ने राज्य सरकार के वकील की दलीलें सुनने के बाद अपने आदेश में बदलाव कर दिया। राज्य सरकार के वकील ने कहा था कि उनके पास आय के बहुत सीमित स्रोत है। ऐसे में अपने वित्तिय स्र्रोत पर अतिरिक्त बोझ ड़ालने से राज्य को बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। कोर्ट ने अपने फैसले(स्टेट आॅफ मेघालय बनाम आॅल दिमासा स्टूडेंट यूनियन) में यह भी कहा कि मेघालय राज्य के पास अवैध कोयला खनन को चेक करने,नियंत्रित करने व प्रतिबंधित करने के लिए विस्तृत अधिकारक्षेत्र या शक्ति है,जो राज्य के पहाड़ी जिलों में की जा रही थी।मेघालय राज्य के पहाड़ी जिलो में खनन कार्य करने के लिए वैधानिक शासन लागू करते समय,मेघालय राज्य को इस बात को भी सुनिश्चित करना होगा कि एमएमडीआर एक्ट 1957 का ही पालन न किया जाए बल्कि माइंस एक्ट 1952 व पर्यावरण संरक्षण एक्ट 1986 का भी पालन किया जाए।
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प्रकृति का खजाना है आने वाली सभी पीढ़ियों के लिए
जस्टिस भूषण द्वारा लिखे गए फैसले के शुरूआत में एक संक्षिप्त नोट लिखा गया है,जिसमें वर्तमान की पीढ़ी की पर्यावरण के प्रति ड्यूटी के बारे में बताया गया है। जज ने कहा कि-
'' देश के प्राकृति स्रोत सिर्फ वर्तमान की पीढ़ी के उन आदमी या औरतों के उपयोग के लिए नहीं है,जो प्राकृतिक स्रोत से निक्षेपित इलाकों में रहते है। यह प्राकृतिक खजाने सभी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी है और पूरे देश के लिए समझदारी से प्रयोग के लिए है। वर्तमान की पीढ़ी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह प्राकृतिक स्रोत का संरक्षण करे ताकि इनका उपयोग आने वाली पीढ़ी के लिए भी हो सके और साथ ही पूरे देश को फायदा मिल सके।''
राज्य को सहायक या समन्वयक के रूप में कार्य करना होता है न कि अवरोधक के रूप में
राज्य सरकार की उस दलील पर कोर्ट ने असमति जताई कि इस मामले में एनजीटी का अधिकारक्षेत्र नहीं बनता है,पीठ ने कहा कि-
''यह राज्य सरकार की संवैधानिक ड्यूटी बनती है कि वह सुनिश्चित करे कि उसके सभी नागरिकों को स्वच्छ पर्यावरण मिल सके। पर्यावरण से जुड़े मामलों में राज्य को समन्वयक या सहायक के रूप में काम करना चाहिए,न कि अवरोधक के रूप में।''
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एनजीटी को है कमेटी बनाने का अधिकार
कोर्ट ने यह भी माना कि एनजीटी ने इस मामले में कमेटी गठित करने,कमेटी से रिपोर्ट मांगने व ''मेघालय पर्यावरण संरक्षण और बहाली कोष'' नामक फंड के गठन का निर्देश देकर कुछ गलत नहीं किया है। यह उनके अधिकारक्षेत्र में आता है। कोर्ट ने कहा कि-
''सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 26 नियम 10ए के तहत एक कोर्ट वैज्ञानिक जांच के लिए आयोग नियुक्त कर सकती है। ऐसे में जो अधिकार कोर्ट द्वारा सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 26 नियम 10ए के तहत प्रयोग किया जाता है,वहीं अधिकार एनजीटी द्वारा भी प्रयोग किया जा सकता है। एनजीटी ने जब विशेषज्ञ से रिपोर्ट देने के लिए कहा तो यह नियम 10ए के चार कोनों तक ही सीमित नहीं है और उसके अधिकार क्षेत्र को आदेश 21 नियम 10ए की कठिन शर्तो के कारण एनजीटी अधिनियम के 19(1) के प्रभाव से भी रोका नहीं जा सकता है।''
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