सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को लोकसभा में विपक्ष के नेता नियुक्त करने की याचिका पर दिल्ली HC ने जल्द सुनवाई से इनकार किया
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को लोकसभा में विपक्ष के नेता की नियुक्ति के लिए निर्देश देने वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। "जल्द सुनवाई की आवश्यकता नहीं" जस्टिस ज्योति सिंह और जस्टिस मनोज ओहरी की अवकाश पीठ ने कहा कि इस मामले में जल्द सुनवाई की आवश्यकता नहीं है। पीठ ने 8 जुलाई को मामले को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया है। लोकसभा स्पीकर ने विपक्ष के नेता के रूप में नहीं किया है किसी को नियुक्त वकील मनमोहन सिंह नरूला और सिष्मिता कुमारी द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि लोकसभा स्पीकर ने विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता के रूप में नियुक्त नहीं किया है। यद्यपि विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने मुर्शिदाबाद के सांसद अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में अपना नेता घोषित किया है लेकिन नव नियुक्त लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने उन्हें विपक्ष के नेता के रूप में नियुक्त/घोषित नहीं किया है। इस याचिका में विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्तों को संदर्भित करने वाले संसद अधिनियम, 1977 का हवाला दिया गया है जो "सबसे बड़ी संख्यात्मक शक्ति वाली सरकार की विरोधी पार्टी के नेता को उस सदन में नेता के रूप में परिभाषित करता है और लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उसे मान्यता प्राप्त है।" लोकसभा में 10% सीट एवं विपक्ष के नेता का उससे संबंध इस याचिका में यह कहा गया है कि चूंकि 52 सांसदों वाली कांग्रेस के पास लोकसभा में 10% सीटें नहीं हैं इसलिए उसे विपक्ष के नेता का पद नहीं दिया जा रहा है। इस 10% नियम को क़ानून द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है और संसद के अधिनियम, 1977 में विपक्ष के नेताओं के वेतन और भत्ते में इसका कोई उल्लेख नहीं है।
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दिया गया दिल्ली विधानसभा का उदाहरण
इस संबंध में इस याचिका में दिल्ली विधानसभा का उदाहरण दिया गया है जहां भाजपा को 70 सदस्यीय सदन में 3 सीटें होने के बावजूद विपक्ष के नेता का पद दिया गया है। याचिका में यह कहा गया है विपक्ष का नेता संसदीय लोकतंत्र में एक प्रमुख प्राधिकारी है और सीवीसी, सीबीआई निदेशक, लोक पाल आदि की नियुक्तियों में वैधानिक भूमिकाएँ निभाता है।
याचिका में की गयी मांग
याचिका में नेता विपक्ष के लिए पॉलिसी तैयार करने की मांग भी की गई है, "एक विपक्षी पार्टी को दिए गए जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए और सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को विपक्ष के नेता का वैधानिक पद दिया जाना चाहिए।"
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