संकट का संकेत
संकट का संकेत
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के संग्रह में जिस तेजी से गिरावट आ रही है, वह अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर संकट का संकेत है। पिछले कई महीनों से अर्थव्यवस्था मंदी का सामना कर रही है। संकेतक बता रहे हैं कि किसी भी क्षेत्र में हालत अच्छी नहीं है। सरकार ने हर महीने जीएसटी संग्रह का लक्ष्य एक लाख अठारह हजार करोड़ रुपए तय किया हुआ है, लेकिन देखने को यही मिल रहा है कि जीएसटी संग्रह निर्धारित लक्ष्य से काफी दूर रह जा रहा है। इस बार ज्यादा चिंता की बात यह है कि सितंबर में जीएसटी संग्रह पिछले उन्नीस महीनों में सबसे कम इनक्यानवे हजार नौ सौ सोलह करोड़ रुपए ही रहा है। अगर पिछले साल की इसी अवधि से तुलना करें तो यह 2.67 फीसद कम रहा और अगस्त, 2019 के मुकाबले तो इसमें 6.4 फीसद की कमी दर्ज की गई। पिछले दो महीनों से जीएसटी संग्रह एक लाख करोड़ रुपए से कम रहा है। जाहिर है, उद्योग और कारोबारी कर जमा नहीं कर पा रहे हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। लंबे समय से छोटे कारोबारियों से लेकर बड़े उद्योग तक मंदी की मार झेल रहे हैं। लोगों का रोजगार खत्म हो रहा है। बाजार में मांग नहीं है। नगदी संकट भी बड़ा कारण माना जा रहा है, लेकिन सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। पूरे देश में एक कर प्रणाली लागू करने के मकसद से जीएसटी की व्यवस्था शुरू हुई थी। तब इसे लेकर लंबे-चौड़े दावे किए गए थे और सरकार को उम्मीद थी कि इससे उसका खजाना तेजी से भरेगा और कर चोरी करने वाले किसी भी सूरत में बच नहीं पाएंगे। इसके लिए कड़े प्रावधान भी किए गए। पर आज के हालात बता रहे हैं कि हकीकत इसके उलट है। अगर आज सरकार जीएसटी संग्रह का लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रही है तो इसका सीधा-सा मतलब यही है कि छोटे-मझोले कारोबारी हों या बड़े उद्योग, जीएसटी भरने में सबके हाथ-पांव फूल रहे हैं। जीएसटी को जितना आसान बनाने का दावा किया गया, वह छोटे कारोबारियों के लिए उतना ही भारी पड़ा है। हर तरफ से यही सुनने को मिल रहा है कि धंधा ठप है। मांग और उत्पादन का चक्र थम गया है। आॅटोमोबाइल क्षेत्र की हालत तो इतनी खराब है कि ज्यादातर कंपनियों ने उत्पादन में भारी कटौती कर दी है। ऐसे में कैसे तो माल बने और बिके! यह तो साफ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में आज जो सुस्ती दिखाई पड़ रही है, उसका वैश्विक कारण कम, घरेलू कारण ज्यादा हैं। जीएसटी और नोटबंदी जैसे फैसलों ने अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया। सरकार का खजाना करों से ही भरता है। लेकिन जब कर मिलने ही बंद होने लगें तो जाहिर है सरकार की चिंताएं बढ़ेंगी। सरकार को बार-बार जीएसटी संग्रह के लक्ष्य में कटौती करनी पड़ रही है। जब जीएसटी लागू किया गया था तब राज्यों को भरोसा दिया गया था कि पांच साल तक उनके राजस्व में कमी की भरपाई केंद्र करेगा। ऐसे में अगर कर राजस्व निर्धारित लक्ष्य से कम होगा तो सरकार पर उसके नुकसान की भरपाई करने का दबाव बढ़ेगा। हालांकि पिछले एक महीने में सरकार ने अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए कदम तो उठाए हैं, लेकिन इनका असर दिखने में अभी वक्त लगेगा। सरकार को लग रहा है कि त्योहारी मौसम में मांग निकलेगी और रीयल एस्टेट क्षेत्र सहित उपभोक्ता बाजार में मांग बनेगी और जीएसटी संग्रह बढ़ेगा। फिलहाल, आने वाले दिनों के लिए यही एकमात्र उम्मीद है।
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