विश्व पर्यावरण दिवस: अब रोशनी नहीं, अंधेरे की जरूरत है - रोशनी का प्रदूषण
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लेखक - विकास शिशौदिया (रिसर्च स्कॉलर)लेखक - विकास शिशौदिया (रिसर्च स्कॉलर)
कोई आप से पूछे आप के पहले और अब के जीवन में क्या अतंर है? आप कहेंगे एक नहीं बल्कि कई अंतर हैं। हो सकता है आप अंतरों की एक पूरी लिस्ट गिना दें। मै निश्चित तौर पर कह सकता हूँ उसमें एक बदलाव रोशनी को लेकर भी होगा आप कहेंगे पहले की रात बिना बिजली के कटती थी। बल्ब के बदले लालटेन या ढिबरी की रोशनी में कटती थी। अब तो सिर्फ रोशनी और उजाला है। जी हाँ यही रोशनी अब आप के पर्यावरण के लिए नई परेशानी बन गयी है।
आप ने आखिरी बार सितारे कब देखे थे ? आधुनिक जीवन शैली ने चमचमाती लाइट तो दी है लेकिन इनसे होने वाले प्रदूषण से वायुमंडल में ऐसी चादर बिछा दी है की आसमान अपने असली रूप में दिखता ही नहीं है। आज चारों तरफ़ चमचमाती लाइट है जिन्होंने रात को दिन बना दिया है लेकिन इस से पर्यारण को भरी नुकसान हो रहा है। इस से जानवर और कीट-पतंग दिन और रात में फ़र्क करना भूल गए है। दुनिया से अब अँधेरा गायब हो रहा है। इन लाइटों ने यूनिवर्स का पूरा हिसाब बदल दिया है। आज दुनिय की 80 परसेंट आबादी को घने अँधेरे वाला आसमान नहीं दिखता है।
लाइट पॉल्यूशन क्या है-
पानी, हवा और जल प्रदूषण के बारे में आप बचपन से पढ़ते आ रहे हैं। आज रोशनी से होने वाले प्रदूषण के बारे में जानिए। सर्वप्रथम तो यह जानना होगा कि लाइट प्रदूषण होता क्या है। साधारण शब्दों में कहें तो बनावटी या मानव निर्मित रोशनी का हद से अधिक इस्तेमाल ही लाइट पॉल्यूशन है। इस प्रदूषण ने इंसानी जिंदगी को कौन कहे, जानवरों और अति सूक्ष्म जीवों की जिंदगी भी खतरे में डाल दिया है। लाइट पॉल्यूशन के 4 अलग-अलग प्रकार बताए गए हैं-
- ग्लेयर- रोशनी की अत्यधिक चमक जिससे आंखें चौंधिया जाएं, थोड़ी सी लाइट मद्धम होने पर अंधेरे सा दिखने लगे।
- स्काईग्लो– घनी बसावट वाले इलाकों में रात के अंधेरे में भी आसमान का चमकना।
- लाइट ट्रेसपास- उन जगहों पर भी लाइट का पड़ना जहां उसकी जररूत नहीं।
- क्लटर- किसी एक स्थान पर एक साथ कई चमकदार लाइटों का लगाना।
ऊपर बताए ये 4 कंपोनेंट लाइट पॉल्यूशन की श्रेणी में आते हैं। तकनीकी भाषा में कहें तो लाइट पॉल्यूशन औद्योगिक सभ्यता का साइड इफेक्ट है। इस साइड इफेक्ट के सोर्स की बात करें तो इनमें एक्सटीरियर और इंटीरियर लाइटिंग, एडवर्टाइजिंग, कॉमर्शियल प्रॉपर्टिज, ऑफिस, फैक्ट्री, स्ट्रीटलाइट और रातभर जगमगाते स्पोर्ट्स स्टेडियम शामिल हैं। ये लाइटें इतनी चमकदार होती हैं कि इंसानों से लेकर जानवरों तक की जिंदगी को मुश्किल बनाती हैं. ऐसी लाइटें ज्यादातर स्थिति में बिना काम की होती हैं। अगर इतनी चमकदार लाइटें न भी लगाई जाएं तो कम चल सकता है. ऐसी लाइटें भारी संसाधन के खर्च के बाद आसमान में विलीन होती रहती हैं। अगर तकनीक का इस्तेमाल कर सिर्फ उतने ही स्थान पर लाइट रोशन की जाए जितने स्थान पर रोशनी की जरूरत है तो यह प्रदूषण बहुत हद तक कम हो सकता है।
सेहत पर असर
2016 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ आर्टिफिशियल नाइट स्काई ब्राइटनेस नाम की एक स्टडी बताती है कि दुनिया की 80 परसेंट शहरी आबादी स्काईग्लो पॉल्यूशन के प्रभाव में है। यह प्रभाव ऐसा होता है कि लोग कुदरती रोशनी और बनावटी रोशनी में फर्क महसूस नहीं कर पाते। अमेरिका और यूरोप के 99 परसेंट लोग नेचुरल लाइट और आर्टिफिशियर लाइट में फर्क नहीं कर पाते। उन्हें पता नहीं होता कि बल्ब की रोशनी और सूर्य की रोशनी में कैसा अंतर होता है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लोगों 24 घंटे बनावटी रोशनी में रहते हैं। वे अंधेरे में कभी रहे नहीं। रोशनी भी मिली तो बल्ब और ट्यूब की। ऐसे में कुदरती रोशनी पहचानने में दिक्कत पेश आती है।
रोशनी का प्रदूषण वातावरण पर किस तरह और क्या असर डालता है
यह एक हकीकत है कि तेज रोशनी जो घर के अन्दर या बाहर से घुस आती हो, हर हाल में कुछ अरसा के बाद अपना असर दिखाती है। बरसों के अन्वेषण से पता चला है कि घरों के अन्दर फ्लोरेसन्ट ट्यूब और तेज रोशनी से माइग्रेन, सिर दर्द, थकावट, चिड़चिड़ाहट जैसी शिकायत पैदा हो जाती है। घर के बाहर सड़कों पर पब्लिक इमारतों में रात के वक्त दुर्घटनाओं को रोकने के लिये खूब तेज रोशनी का इस्तेमाल किया जाता है। जिससे पर्यावरण में प्रदूषण बढ़ जाता है।
अनुभव और खोज से पता चला है कि ऐसी रोशनी से अपराध में कोई खास कमी तो नहीं आई अलबत्ता हर साल सिर्फ एक लाइट पर कई टन कोयला खर्च हो जाता है। अगर आप रात के वक्त आसमान की चमक-दमक की तरफ नजर करें तो आप को उसमें मध्यम रोशनी की धुन्ध भी दिखाई देगी। यही रोशनी के प्रदूषण का सबूत है। इस मसले पर सालों से खोज व अध्ययन का काम जारी है और रात के वक्त शहरों और देहातों के साफ आसमान की अलग-अलग तस्वीरें खींची जाती हैं जिसमें मालूम होता है कि रात के वक्त रोशनी से कैसा प्रदूषण माहौल में घुल रहा है और यह बहुत ही खतरनाक समस्या है। इस तरह स्थाई तेज रोशनी के इन्तजाम से फसलों, दरख्तों और जानवरों को जबरदस्त नुकसान हो सकता है। पौधों को बढ़ने और जिन्दा रहने के लिये अंधेरा और रोशनी दोनों ही की जरूरत पड़ती है अंधेरा बीज को फूल में बदलने और पौधे को जिन्दगी देने में मदद देता है। रात के वक्त रोशनी की ज्यादती से घबराकर चिड़िया खिड़कियों, मीनारों और वीरान इमारतों की तरफ उड़कर जाने की कोशिश करती हैं।
रोशनी का दुष्प्रभाव मेढकों और रात के वक्त जागने वाले कीड़े-मकोड़ों की प्रजनन क्षमता पर भी पड़ता है। इन्सानी आँख को कुदरत ने इतनी ताकत दी है कि वह मानसूनी रोशनी और उसके दबाव को बर्दाश्त कर लेती है, मगर तेज और चौंधिया देने वाली रोशनी और उसकी ज्यादती उसको नुकसान पहुँचाती है। इससे देखने की क्षमता प्रभावित होती है। यह ऐसा खतरा है जो आने वाली नस्लों को और ज्यादा परेशान और प्रभावित करेगा। कुदरत ने जो साफ-स्वच्छ वातावरण मानव जीवन को कायम रखने के लिये बनाया है हमें उसकी हर कीमत पर हिफाजत करना चाहिए यह हमारा फर्ज है कि इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे को हल करने का प्रयास करें।
जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद सतेंद्र सिंह से जब इस विषय पर बात की तो उन्होंने कहा - इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। इसके सम्बन्धी जरूरी जानकारी और उपाय बताने के लिये हमें इस विषय को महत्वपूर्ण मंचों पर उठाना होगा , जिससे लोग रोशनी से जुड़े प्रदूषण के बारे में जान सके। और यह जान सकते हैं कि रोशनी के प्रदूषण को कैसे कम किया जा सकता है।
तेज रोशनी एक कष्टदायक चीज है। रात के वक्त सुरक्षा और माहौल को ठीक रखने के लिये यह जरूरी भी है। रोशनी के प्रदूषण को आसानी से कम किया जा सकता है-
1. रोशनी (बिजली) की फिटिंग इस तरह की जाय कि उससे निकलने वाली रोशनी कम मात्रा में ऊपर की तरफ जाये।
2. बल्ब, ट्यूब वगैरह उचित जगहों पर फासलों पर नीचे की तरफ झुकाकर लगाये जायें।
3. रोशनी का इस्तेमाल कम-से-कम किया जाये।
4. गैर जरूरी रोशनी को बुझा दिया जाये। खासकर सजावट करने वाली रोशनी और इश्तेहारों के पोस्टरों और खेमों में देखा जाता है कि रात भर बल्ब जलते रहते हैं। यह गलत तरीका है। सुबह होने पर रोशनियों को गुल कर देना चाहिए।
खुशी की बात है कि रोशनी प्रदूषण के खिलाफ बहुत सी संस्थाएं हरकत में आ गई हैं। खासकर आसमान पर रोशनी के प्रदूषण के खिलाफ उनका कहना है कि आसमान पर ज्यादा अंधेरा रहना चाहिये। शहरी महकमों, लोकल सेल्फ कौंसिल और कॉर्पोरेशन रोशनी के डिजाइन बनाने वाले इंजीनियरों को इस बात का एहसास हो रहा है कि रोशनी के प्रदूषण को कम करने की जरूरत है।
कानून बनाने की जरूरत
रोशनी के प्रदूषण को एक कानूनन अपराध करार देना चाहिए और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।