पटाखों का दायरा-सत्येन्द्र सिंह-Satendra Singh

Mar 06, 2019

पटाखों का दायरा

दिवाली जैसे त्योहार के मौके पर खुशियों का इजहार करने के लिए बेहतर खानपान और रोशनी की सजावट से पैदा जगमग के अलावा कानफोड़ू पटाखों का सहारा लोगों को कुछ देर की खुशी तो दे सकता है, लेकिन उसका असर व्यापक होता है। पटाखों की आवाज और धुएं के पर्यावरण सहित लोगों की सेहत पर पड़ने वाले घातक असर के मद्देनजर इनसे बचने की सलाह लंबे समय से दी जाती रही है। ज्यादातर लोग इनसे होने वाले नुकसानों को समझते भी हैं, मगर इनसे दूर रहने की कोशिश नहीं करते। हालांकि पर्यावरणविदों से लेकर कई जागरूक नागरिकों ने इस मसले पर लोगों को समझाने से लेकर पटाखों पर रोक लगाने के लिए अदालतों तक का सहारा लिया है, लेकिन इन पर पूरी तरह रोक लगाने में कामयाबी नहीं मिल सकी। पिछले साल शीर्ष अदालत ने दिवाली से पहले पटाखों की बिक्री पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया था, लेकिन व्यवहार में उसका कोई खास फर्क नहीं नजर आया। अब इस साल सर्वोच्च न्यायालय ने दिवाली और दूसरे त्योहारों के अवसर पर कुछ शर्तों के साथ पटाखे फोड़ने की इजाजत दे दी है। इसमें सबसे अहम शर्त यह है कि रात में आठ बजे से लेकर दस बजे तक ही पटाखे फोड़े जा सकेंगे। इसके अलावा, अदालत के निर्देश के मुताबिक सिर्फ लाइसेंस प्राप्त कारोबारी पटाखे बेच पाएंगे, जबकि आॅनलाइन व्यवसाय करने वाली वेबसाइटों पर पटाखों की बिक्री पर रोक रहेगी। जाहिर है, प्रदूषण और पर्यावरण को होने वाले नुकसान के साथ-साथ लोगों की सेहत के मद्देजनर सुप्रीम कोर्ट ने दिवाली की खुशियों का भी ध्यान रखा है। अगर लोगों को अदालत के इस फैसले में छिपे संदेशों को समझना जरूरी लगे तो निश्चित रूप से इसका फायदा सबको मिलेगा।   

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पिछले साल अदालत ने पटाखों को लेकर सख्ती दिखाई थी, उसके बावजूद पटाखों के शोर और धुएं में कोई कमी नहीं आई। यह किसी से छिपा नहीं है कि दिवाली के मौके पर लोग आमतौर पर नौ-दस बजे के बाद ही पटाखे फोड़ना शुरू करते हैं और यह सिलसिला देर तक चलता रहता है। इस बार यह देखने की बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक रात आठ से दस बजे तक की समय-सीमा का पालन अलग-अलग इलाकों के थाना प्रभारी कैसे सुनिश्चित करा पाते हैं। पर्यावरण के अनुकूल पटाखे तैयार करने और खुशी मनाने के लिए उनका उपयोग करने की सलाह भी दी जाती रही है। लेकिन आस्था और त्योहार के नाम पर आमतौर पर इस तरह की सलाहों का ध्यान रखना लोग जरूरी नहीं समझते। दरअसल, दिवाली आने के साथ ही शायद बहुत कम लोगों को इस बात का ध्यान रखना जरूरी लगता है कि खुशी जाहिर करने का अकेला विकल्प पटाखे जलाना नहीं है। खासतौर पर दिवाली का उत्सव मनाने के नाम पर जितनी बड़ी तादाद में पटाखे जलाए जाते रहे हैं, उसके बिना भी बराबर की खुशी हासिल की जा सकती है।लेकिन यह अमूमन हर साल की विडंबना रही है कि लोग पटाखों के धुएं और आवाज से परेशान और गंभीर रूप से बीमार भी होते हैं और इनके बिना उनकी दिवाली पूरी भी नहीं होती। इस दोहरी स्थिति में जीने का ही नतीजा यह होता है कि इस त्योहार की चकाचौंध के गुजर जाने के बाद पटाखों का धुआं और शोर अपने पीछे कई तरह की बीमारियां और पर्यावरण के लिए दीर्घकालिक नुकसान छोड़ जाता है।

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